लावणी छंद – पुण्य तिरंगे की रक्षा में
पुण्य तिरंगे की रक्षा में,
कुछ भी हम कर जाएंगे।
शीश कटा देंगे अपना पर,
शीश कभी न झुकाएंगे।
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आँख दिखाने वालों सुन लो,
बासठ का यह देश नहीं।
आडम्बर जिसमें होता हैं,
वह अपना संदेश नहीं।
बहुत खेल अब खेल चुके हो,
केशर वाली घाटी में।
सदा सुराख बनाया तुमने,
भारत की परिपाटी में।
बदल गया है वक्त हमारा,
अब नहीं धोखा खाएंगे।
शीश कटा देंगे अपना पर,
शीश कभी न झुकाएंगे।
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समझ गए है हम तो तुम्हारे,
अब सारे ही फंदों को।
कर प्रयोग आतंक मचाते,
गद्दारों जयचंदो को।
बंदूक लेकर आ जाते हो,
श्वानों जैसे मरने को।
हम भी सीमा में बैठे है,
प्राण तुम्हारे हरने को।
भारत माँ की लाज बचाने,
हद से गुजर भी जाएंगे।
शीश कटा देंगे अपना पर,
शीश कभी न झुकाएंगे।
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जितने भी भेदी थे घर में,
उन सबको है जेल मिला।
पहले ही हम बलशाली थे,
उस पर अब राफेल मिला।
अब भी नहीं सुधरे तो तुमकों,
देश के वीर सुधारेंगे।
सीमा की क्या बात तुम्हारे,
घर में घुसकर मारेंगें।
राणा साँगा के वंशज हम,
अपना फर्ज निभाएंगे।
शीश कटा देंगे अपना पर,
शीश कभी न झुकाएंगे।
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याद करो सन संतावन में,
आँधी बन जो आई थी।
मर्दो से बढ़ कर मर्दानी,
रानी लक्ष्मीबाई थी।
निज घोड़ा में बैठ शिवाजी,
भाला तीक्ष्ण चलाते थे।
अरिदल भाग खड़े होते थे,
जब मैदान में आते थे।
इनसे पाई पौरुष से तुम,
पर प्रहार कर जाएंगे।
शीश कटा देंगे अपना पर,
शीश कभी न झुकाएंगे।
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रचनाकार-डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभावना,बलौदाबाजार(छ.ग.)