सौ प्यास कैसे बुझे पर कविता
मुझे कुछ ना सुझे
भला एक बूंद में
सौ प्यास कैसे बुझे ?
तू मेरी ना सोच ,
जा किसी चोंच
अमृत बन .
मेरी यही नियति है
कि तड़प मरूँ
अति महत्वाकांक्षा में.
अब जान पाया हूं
कि उचित है
सफर करना शून्य से शिखर तक.
जीवन की ढलान
होती है भयानक
और उससे भी कटु
मेरी ये अकड़
जो झुके तो भी ना टूटे .
जो बचाया ना कभी एक बूंद
उसके सूखे अधर को
भला एक बूंद कैसे रूचे?
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