सच में लिपटा झूठ

सच में लिपटा झूठ

सच में लिपटा झूठ,सरासर बिकते देखा!
कलुषित कर्म को, धवल सूट में सजते देखा!
लीपापोती सब जग होती,
कुलटा नार हाथ ले ज्योती!
खसम मार वो निज हाथों से’
सती सावित्री बनते देखा!
सचमें लिपटा झूठ,सरासर  बिकते देखा!!…..(१)
बाजारों का हाल बुरा है।
हाट हाट में ये पसरा है।
मीठी बातों से जनता को,
व्यापारी से ठगते देखा!
सचमें लिपटा झूठ,सरासर  बिकते देखा!!…..(२)
अखबारों के वारे न्यारे,
लुच्चे नेता दिखे बैचारे!
राजनिती की कच्ची रोटी,
उल्टे तव्वै सिकते देखा!
सचमें लिपटा झूठ,सरासर बिकते देखा!!……(३)
आडंबर का गोरखधंधा,
गेरू रंग का कसता फँदा!
बाबाओं के आश्रमों में,
बालाओं को लुटते देखा!
सचमें लिपटा झूठ,सरासर बिकते देखा!!…..(४)
~~~भवानीसिंह राठौड़ ‘भावुक’
टापरवाड़ा!!
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

You might also like