सिमटी हुई कली/मनीभाई नवरत्न
सिमटी हुई कली ,मेरे आंगन में खिली।
शाम मेरी ढली,तब वह मोती सी मिली।
रोशनी छुपाए जुगनू सा
सारी सारी रात मेरे घर में जली ।
चंचलता ऐसी जैसे कोई पंछी
ओढ़े हुए आसमां की चिर मखमली।
खुशबू फैल जाए जहां वह मुस्कुराए
कदम पड़े उसकी गली गली।
सिमटी हुई कली , मेरे आंगन में खिली।
- मनीभाई नवरत्न