बलात्कार पर आक्रोश कविता

बलात्कार पर आक्रोश कविता

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तीन बरस की गुड़िया तिल तिल मरके आखिर चली गयी,
आज अली के गढ़ में बिटिया राम कृष्ण की छली गयी,
नन्हे नन्हे पंख उखाड़े, मज़हब के मक्कारों ने,
देखो कैसे ईद मनाई,दो दो रोज़ेदारों ने,


कोमल अंग काट कर खाये, कुत्तों ने इफ्तारों में,
नोच कुचल कर लाश फेंक दी रमजानी बाज़ारो में
आस्तीन में खंज़र रखकर कलियों से गुलफाम मिले,
हमको देखो कैसे भाई चारे के परिणाम मिले,


आओ थोड़ा शोर मचा लें,हम अपनी लाचारी पे,
चार दिवस हो हल्ला कर लें,उस ज़ाहिद व्यभिचारी पर,
लेकिन हम कब समझेंगे,मज़हब के कुटिल इरादों को,
तहज़ीबें जो सीखा गयी हैं दहशत कत्ल फसादों को,


पूछ रहा हूँ,कहाँ मर गए कठुआ पर रोने वाले,
शर्मिंदा होने की तख्ती छाती पर ढोने वाले,
बॉलीवुड के बेशर्मो की टोली आखिर कहां गयी,
और दोगलों की वो सूरत भोली आखिर कहां गयी,


स्वरा भास्कर कहाँ मर गयी,कहाँ गया वो ददलानी,
तैमूरी अम्मा गायब है,कहाँ गयी सोनम रानी,
टीवी वाले वो रवीश क्या जीभ कटाने चले गए,
डी जे वाले बाबू भी क्या बेस घटाने चले गए,


कहाँ गया बेगूसराय का किशन कन्हैया ढूंढों तो,
और आसिफा पर रोता वो राहुल भैया ढूंढो तो,
कोई नही मिलेगा,सबने पट्टी आंख लपेटी है,
क्योंकि अभागिन ट्विंकल देखो इक हिन्दू की बेटी है,


और किसी हिन्दू की बेटी इसी हश्र को पाएगी,
अरबी आयत पढ़ के देखो,समझ तुम्हे आ जायेगी,
सोच रहा था योगी जैसा हिन्दू शेर दहाड़ेगा,
मोदी अपना जेहादी गुर्गों के जबड़े फाडेगा,


लेकिन ये भी जब्त हो गए वोट बैंक के बक्से में,
पाकिस्तान नज़र आता है अब भारत के नक्से में,
ईद सवेरे देखो बस में तोड़ फोड़ की जाती है,
सड़कों पर होती नमाज़ फिर जाम रोड हो जाती है,


सोच था छुटकारा होगा अब जेहादी रोगी से,
सन्नाटे की आस नही थी हमको मोदी योगी से,
ये कौमी भेड़िये,बुझेगी इन सबकी ना प्यास कभी,
जीत नही पाओगे मोदी इन सबका विश्वास कभी,


ट्विंकल बिटिया चीख रही है,इंसाफी दरबारों में,
कुछ ऐसा कर दो,भय भर दो इन दुष्टों गद्दारों में,
ऐसी आग लगा दो मोदी इस जेहादी जंगल को,
कोई ज़ाहिद आंख उठाकर देख न पाए ट्विंकल को,


वरना यूँ ही सिर्फ आंसुओं से ज़ख्मो को धोएंगे,
आज किसी ट्विंकल पर,कल सीता गीता पर रौएँगे,

रचनाकार-कवि गौरव चौहान इटावा उ प्र*

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