सरस के दोहे
1-
जय माता हे शारदे ,मेटो मन का मैल|
हस्त रखा जब शीश पर, गया उजाला फैल||
2-
साफ सफाई जो करे, रहता स्वस्थ निरोग|
तन मन जिसका स्वस्थ है,उसके सारे भोग||
3-
जय जय हिन्दी घर मिला, प्यार मिला भरपूर|
आप सभी इस दास को, करना मत अब दूर||
4-
कूड़ा कूड़ादान में, डाले हर परिवार |
दूर रखो हर गन्दगी, खुशियाँ आतीं द्वार||
5-
दूर प्रदूषण से रहो,कहते सारे लोग|
पेड़ लगाएँ आप हम, स्वागत पुष्प प्रयोग ||
6
खानपान पर ध्यान दें,तन मन रहे निरोग|
करते अच्छे काम जो, नाम लेत जग लोग||
7-
फुलवारी फूली रहे, घर आँगन मम द्वार|
मिलकर हँसकर काट लें, जीवन के दिन चार ||
8-
जीवन जल से है मिला, जल के रूप अनेक|
जल की सत्ता सृष्टि है, सृष्टा जल का एक||
9-
रोग शोक हर दूर हो, मिटे हृदय संताप|
जीवन में हर पल सदा, हँसते रहिए आप ||
10-
स्नान ध्यान पूजा करो, होय सुमंगल भोर|
ईश हाथ हो शीश पर, रहे कृपा की कोर ||
11-
प्रेम प्यास बढती रहे, चढ़े हृदय से शीश|
सीख सकूँ सानिध्य में, नित देना आशीष||
12-
जो करता अभ्यास है, उसका सफल प्रयास|
गणपति के आशीष से, सब सुख होते पास||
दिलीप कुमार पाठक “सरस”