Tag: घनाक्षरी

घनाक्षरी एक वार्णिक छन्द है। इसे कवित्त भी कहा जाता है। हिन्दी साहित्य में घनाक्षरी छन्द के प्रथम दर्शन भक्तिकाल में होते हैं। निश्चित रूप से यह कहना कठिन है कि हिन्दी में घनाक्षरी वृत्तों का प्रचलन कब से हुआ। घनाक्षरी छन्द में मधुर भावों की अभिव्यक्ति उतनी सफलता के साथ नहीं हो सकती, जितनी ओजपूर्ण भावों की हो सकती है।

  • शिव – मनहरण घनाक्षरी

    शिव – मनहरण घनाक्षरी

    उमा कंत शिव भोले,

    डमरू की तान डोले,

    भंग संग  भस्म धारी,

    नाग कंठ हार है।

    शीश जटा चंद्रछवि,

    लेख रचे ब्रह्म कवि,

    गंग का विहार शीश,

    पुण्य प्राण धार है।

    नील कंठ  महादेव,

    शिव शिवा एकमेव,

    शुभ्र वेष  मृग छाल,

    शैल ही विहार है।

    किए काम नाश देह,

    सृष्टि सार  शम्भु नेह,

    पूज्य  वर  गेह   गेह,

    चाह भव पार है।

    आक चढ़े बेल भंग,

    पुहुप   धतूरा   संग,

    नीर  क्षीर अभिषेक,

    करे जन सावनी।

    कावड़ धरे  है भक्ति,

    बोल बम शिव शक्ति,

    भाव से  चढाए भक्त,

    मान गंग पावनी।

    वृषभ सवार  प्रभो,

    सृष्टि करतार विभो,

    हिम गिरि  शैल पर,

    छवि मनभावनी।

    राम भजे शिव शिव,

    शिव रखे  राम हिय,

    माया  हरि त्रिपुरारि,

    नीलछत्र छावनी।

    बाबू लाल शर्मा बौहरा ‘विज्ञ’

    सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान

  • मुख पर कविता – राजेश पांडेय वत्स

    मुख पर कविता -मनहरण घनाक्षरी

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    गैया बोली शुभ शुभ, सुबह से रात तक,
    कौआ बोली हितकारी,
    चपल जासूस के!

    हाथी मुख चिंघाड़े हैं, शुभ मानो गजानन,
    सियार के मुख कहे,
    बोली चापलूस के!

    मीठे स्वर कोयल के, बसंत में मधु घोले,
    तोता कहे राम राम,
    मिर्ची रस चूस के!

    राम के भजन बिन, मुख किस काम आये,
    वत्स कहे ब्यर्थ अंग,
    खाये मात्र ठूस के!

    -राजेश पाण्डेय वत्स

  • रसोईघर पर कविता – राजेश पांडेय वत्स

    रसोईघर पर कविता (छंद-मनहरण घनाक्षरी)

    छंद
    छंद

    अँगीठी माचीस काठ,कंडा चूल्हा और राख,
    गोरसी सिगड़ी भट्टी,
    *देवता रसोई के!*

    सिल बट्टा झाँपी चक्की,मथनी चलनी चौकी,
    कड़ाही तसला तवा,
    *वस्तु कोई-कोई के!*

    केतली कटोरा कुप्पी,बर्तन मूसल पीढ़ा,
    गिलास चम्मच थाली,
    *रखे सब धोई के!*

    मटका सुराही घड़ा,ढक्कन चम्मच बड़ा,
    कोना बाल्टी सजा वत्स,
    *भवन नंदोई के!*

    -राजेश पाण्डेय वत्स

  • सुभाष चंद्र बोस – डॉ एन के सेठी

    subhashchandra bos

    सुभाष चंद्र बोस – डॉ एन के सेठी

    आजादी के नायक थे
    मातृभू उन्नायक थे
    जीवन अर्पण किया
    ऐसे त्यागी वीर थे।।

    भारत माँ हुई धन्य
    देशभक्ति थी अनन्य
    जयहिन्द किया घोष
    कर्मयोगी वीर थे।।

    त्याग दिया घर बार
    किया वतन को प्यार
    शत्रु के लिए सदा वो
    तेज शमशीर थे।।

    भारत माँ के सपूत
    साहस भरा अकूत
    झुके नहीं रुके नहीं
    देश तकदीर थे।।

    नाम सुभाष बोस था
    दिल मेंभरा जोश था
    देशभक्ति का जुनून
    ज्ञानवान धीर थे।।

    त्याग दिए सुख चैन
    देखे नहीं दिन रैन
    देश हित लगे रहे
    मातृभूमि वीर थे।।

    हिन्द हित सेना जोड़
    शत्रुमुख दिया तोड़
    पीठ न दिखाई कभी
    ऐसे रणधीर थे।।

    कभी नहीं मानी हार
    शत्रु झुका हर बार
    आजादी के लिए लड़े
    सुधीर गम्भीर थे।।


    डॉ एन के सेठी

  • पर्यावरण और मानव/ अशोक शर्मा

    पर्यावरण और मानव/ अशोक शर्मा

    पर्यावरण और मानव/ अशोक शर्मा

    Save environment

    धरा का श्रृंगार देता, चारो ओर पाया जाता,
    इसकी आगोश में ही, दुनिया ये रहती।
    धूप छाँव जल नमीं, वायु वृक्ष और जमीं,
    जीव सहभागिता को, पर्यावरण कहती।

    पर देखो मूढ़ बुद्धि, नही रही नर सुधि,
    काट दिए वृक्ष देखो, धरा लगे जलती।
    कहीं सूखा तूफ़ां कहीं, प्रकृति बीमार रही,
    मही पर मानवता, बाढ़ में है बहती।

    वायु बेच देता नर, सांसों की कमीं अगर,
    लाशों से भी बेच देता, भाग ठीक रहती।
    किला खड़ा किया नर, जंगलों को काटकर ,
    खुशहाली देखो अब, भू कम्पनों में ढहती।

    भू हो रही उदास, वन दहके पलाश,
    जले नर संग तरु, जब चिता जलती।
    बरस जहर रहा, प्रकृति कहर रहा,
    खोट कारनामों से, जल विष बहती।

    वृक्ष अपने पास हों, तो दस पुत्र साथ हों,
    गिरे तरु एक,धरा, बड़ा दर्द सहती।
    ऐसे करो नित काम, स्वस्थ बने तेरा धाम,
    स्वच्छ वात्तरु जल से, धरा खुश रहती।


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    ◆अशोक शर्मा, लक्ष्मीगंज,कुशीनगर,उ.प्र.◆
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