दम्भ पर कविता – बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
दम्भ पर कविता घाव ढाल बन रहे. स्वप्न साज बह गये।. पीत वर्ण पात हो. चूमते विरह गये।। काल के कपाल पर. बैठ गीत रच रहा. प्राण के अकाल कवि. सुकाल को पच रहा. सुन विनाश गान खगरोम की तरह गये।पीत वर्ण……….।। फूल शूल से लगेमीत भयभीत छंदरुक गये विकास नव. छा रहा प्राण द्वंद. … Read more