सार छंद विधान – बाबूलालशर्मा
सार छंद विधान ऋतु बसंत लाई पछुआई, बीत रही शीतलता।पतझड़ आए कुहुके,कोयल,विरहा मानस जलता। नव कोंपल नवकली खिली है,भृंगों का आकर्षण।तितली मधु मक्खी रस चूषक,करते पुष्प समर्पण। बिना देह के कामदेव जग, रति को ढूँढ रहा है।रति खोजे निर्मलमनपति को,मन व्यापार बहा है। वृक्ष बौर से लदे चाहते, लिपट लता तरुणाई।चाह लता की लिपटे तरु … Read more