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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०दुर्गेश मेघवाल के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • देश की आभा

    देश की आभा

    tiranga

    स्वार्थ के वश सब अपनी सोचे ,

    देश की है किसको चिंता ।

    एक स्वार्थ से सब स्वार्थ सधेंगे,

    सोचो तुम जो हो जिन्दा ।

    बाग ही गर जो उजड़ गया तो ,

    फूल कहाँ रह पायेगा ।

    गुलशन भले ही आज सजा हो ,

    पतझड़ में मुरझाएगा ।

    एक-एक से मिलकर हम अब ,

    सवा अरब के पार हुए ।

    एक पेट और हाथ है दो , फिर भी,

    पूर्ण आबाद न आज हुए ।

    माना यह कि दो सौ बरसों की ,

    हमने गुलामी भी सही ।

    पर सत्तर बरसों की आजादी ,

    कम भी तो होती नहीँ ।

    कहीँ चूक तो हमसे हुई ना ,

    सोचो फिर चिंतन करके ।

    आजादी की हाला पीकर ,

    होश हमारे हुए फुर्र से ।

    आजादी मिलने भर से न ,

    लक्ष्य हमें मिल पायेगा ।

    दौड़ में जो हम सुसुप्त हुए तो ,

    कछुआ जीत ही जायेगा ।

    देखो फिर से’ उगते सूर्य ‘(जापान) को,

    देशों में जो मिसाल बना ।

    कोप न जाने कितने सहकर ,

    आबाद (विकसित) सम्भल
    कर आज बना ।

    राष्ट्रभक्ति का वो ही जज्बा , गर ,

    देश-जन न ला पायेगा ।

    लघु पड़ोसी होते हुए भी ,

    कोई भी आँख दिखाएगा ।

    अब भी समय है लोकतन्त्र की ,

    ज्वाला और प्रज्वलित करो ।

    एक-एक कर सब मिलकर ही ,

    देश को फिर संगठित करो ।

    राष्ट्र यज्ञ में एक आहुति ,

    हर-जन की जब भी होगी ।

    देश की आभा फिर हो सोने सी ,

    उन्मुक्त गगन का हो पंछी ।

    ✍✍ *डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल,बून्दी/राज)*

  • नवरात्र शक्ति आराधना

    आश्विन नवरात्र की शुभकामनाओं के साथ माँ शक्ति को प्रसन्न करने हेतु स्वरचित आराधना

    माँ जगदम्बे
    मां दुर्गा

    नवरात्र-शक्ति-आराधना

    (सर्व अमंगल , मंगलकारी ,
    दुःख-पीड़ा से तारण हारी ।
    जग-तम में तू ही उजियारी ,
    जीव कंटको में फुलवारी ।
    अब तो आजा , हे जग माँ तू ,
    यह दुनियां तुझ ही को पुकारी ।)…..2

    स्मरण तेरा शुरू करें हम ,
    घट को स्थापित करके।
    घट-घट में है तू ही बसती ,
    शक्ति जागृत करके ।
    अखण्ड जोत तेरी नव दिन बालूं ,
    मन से ज्ञापित करके ।
    धूप ,अगर और करूँ क्या अर्पण ,
    तू ही मुझे समझा री ।
    सर्व अमंगल , मंगलकारी ,
    दुःख पीड़ा से तारण हारी ।
    जग-तम में तू ही उजियारी ,
    जीव कंटको में फुलवारी ।
    अब तो आजा ,हे जग माँ तू ,
    यह दुनियां तुझ ही को पुकारी ।

    भक्ति ये मन की पाट धरूँ माँ ,
    चौक को पूरित करके ।
    अन्न अंकुरित करना भी है ,
    माट में मिट्टी भरके ।
    झांकी तेरी लगती है निश्छल ,
    देख-देख मन हरखे ।
    मन के अब सब , द्वार में खोलूं ,
    आ इसमें बस जा री ।
    सर्व अमंगल , मंगलकारी ,
    दुःख पीड़ा से तारण हारी ।
    जग-तम में तू ही उजियारी ,
    जीव कंटको में फुलवारी ।
    अब तो आजा ,हे जग माँ तू ,
    यह दुनियां तुझ ही को पुकारी ।

    चैत्र-आश्विन ,शुक्ल प्रतिपदा ,
    पूजन शुरू करें हम ।
    अगर जला कर ज्योति जलाएं ,
    अभी मिटे यह जग-तम ।
    थाल सजा कर करें आरती ,
    नाचे गाएँ सब हम ।
    तेरा साथ रहे अब निश दिन ,
    आशीष तू अपना लूटा री ।
    सर्व अमंगल , मंगलकारी ,
    दुःख पीड़ा से तारण हारी ।
    जग-तम में तू ही उजियारी ,
    जीव कंटको में फुलवारी ।
    अब तो आजा ,हे जग माँ तू ,
    यह दुनियां तुझ ही को पुकारी ।

    नव दिन तक नव रूप हैं तेरे ,
    एक-एक करूँ पूजन ।
    पूजूँ-गाऊँ तुझे सुनाऊँ,
    नव दिन तक और क्षण-क्षण ।
    महिमा तेरी सब जग जाने ,
    क्या री करूँ अब वर्णन ।
    इस जग को सब तू बतलाती ,
    अब क्या-क्या लिखूं बतला री ।
    सर्व अमंगल , मंगलकारी ,
    दुःख पीड़ा से तारण हारी ।
    जग-तम में तू ही उजियारी ,
    जीव-कंटको में फुलवारी ।
    अब तो आजा, हे जग माँ तू ,
    यह दुनियां तुझ ही को पुकारी ।

    नव दिन जग करे शक्ति पासना ,
    विध-विध रूप की तेरे ।
    हो ब्रह्मी या गृहस्थ भले हो ,
    सन्यासी बहुतेरे ।
    शक्ति सभी को तू वर देती ,
    मनुज हो दनुज भलेरे ।
    कन्या रूप को करके पूजित ,
    जग सिद्धि प्राप्त करे री ।
    (सर्व अमंगल , मंगलकारी ,
    दुःख पीड़ा से तारण हारी ।
    जग-तम में तू ही उजियारी ,
    जीव कंटको में फुलवारी ।
    अब तो आजा ,हे जग माँ तू ,
    यह दुनियां तुझ ही को पुकारी ।)…2

    ✍✍ *डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल,बून्दी/राज.)*

  • श्रीगणेश पर हिंदी कविता

    गणपति को विघ्ननाशक, बुद्धिदाता माना जाता है। कोई भी कार्य ठीक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उसके प्रारम्भ में गणपति का पूजन किया जाता है।

    भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन “गणेश चतुर्थी” के नाम से जाना जाता हैं। इसे “विनायक चतुर्थी” भी कहते हैं । महाराष्ट्र में यह उत्सव सर्वाधिक लोक प्रिय हैं। घर-घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते हैं।

    kavita

    श्रीगणेश पर हिंदी कविता

    गजानन आराधना

    गजानन आओ नी इक बार …।
    गजानन आओ नी इक बार ….।
    निसदिन तेरी बाट में जोहूं ,
    बैठूं पलक बुहार …।
    गजानन आओ नी इक बार….।

    धूप दीप और फल फूलों से ,
    तुझ को भोग लगाऊँ ।
    लगा तेरे अगर और चंदन ,
    मैं श्रृंगार सजाऊँ ।
    तुमसे करूं एक ही बिनती ,
    दर्शन अब दे जाओ ।
    गजानन आओ नी इक बार …।
    गजानन आओ नी इक बार ….।
    निसदिन तेरी बाट में जोहूं ,
    बैठूं पलक बुहार …।
    गजानन आओ नी इक बार….।

    रिद्धि-सिद्धि के तुम हो दाता ,
    ज्ञान-बुद्धि के सागर ।
    जीवन मेरा कोरा कागज ,
    रीती पड़ी है गागर ।
    बूंद-बूंद से प्यास बुझे न ,
    बन के मेघ बरसाओ ।
    गजानन आओ नी इक बार …।
    गजानन आओ नी इक बार ….।
    निसदिन तेरी बाट में जोहूं ,
    बैठूं पलक बुहार …।
    गजानन आओ नी इक बार….।

    यह दुनिया मद में है आंधी ,
    मैं मंदबुद्धि कहलाऊँ ।
    ज्ञान-सरिता मुझ तक मोडों ,
    मैं ‘अजस्र’ बन जाऊँ ।
    रख के हाथ शीश पर मेरे ,
    कृपा-आशीष बरसाओ ।
    गजानन आओ नी इक बार …।
    गजानन आओ नी इक बार ….।
    निसदिन तेरी बाट में जोहूं ,
    बैठूं पलक बुहार …।
    गजानन आओ नी इक बार….।

    शुभ और लाभ , रिद्धि और सिद्धि ,
    विद्या-लक्ष्मी साथ ।
    घर आंगन में मेरे पधारो ,
    सबको लेकर आप ।
    मूषक-सवार मेरे मन-मंदिर ,
    आकर के बस जाओ ।
    गजानन आओ नी इक बार …।
    गजानन आओ नी इक बार ….।
    निसदिन तेरी बाट में जोहूं ,
    बैठूं पलक बुहार …।
    गजानन आओ नी इक बार….।

    ✍✍ *डी कुमार–अजस्र (दुर्गेश मेघवाल)*
    पता:- पुराना माटुदा रोड इंद्रा कॉलोनी बून्दी (राजस्थान)