गोवर्धन कर धरते हो/ प्रवीण त्रिपाठी
नटवर नागर प्यारे कान्हा, गोवर्धन कर धरते हो।
इंद्र देव का माधव मोहन, सर्व दर्प तुम हरते हो।
ब्रज मंडल के सब नर-नारी, इंद्र पूजते सदियों से।
लीलाधारी कृष्ण चन्द्र को, कभी न भाया अँखियों से।
उनके कहने पर ब्रजवासी, लगे पूजने गोवर्धन।
देवराज का दम्भ तोडने, लीलाएँ नव करते हो।1
गोवर्धन का अन्य पक्ष है, रक्षा गौ की नित करना।
इनके वंशों का वर्धन हो, भाव सभी के मन भरना।
देख-भाल हो उचित ढंग से, फिरें न मारी-मारी वो।
धेनु चरा कर उन्हें प्यार कर, धर्म मार्ग पर चलते हो।2
गिरि को धारण करके तुमने,एक नया संदेश दिया।
सदा प्रकृति की रक्षा करना, कठिन काम यह हाथ लिया।
पर्यावरण सुरक्षित रखना, हर युग की थी मांग बड़ी।
सही राह जो दिखलाई थी, उसी राह तुम चलते हो।3
नटवर नागर प्यारे कान्हा, गोवर्धन कर धरते हो।
इंद्र देव का माधव मोहन, सर्व दर्प तुम हरते हो।
प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 28 अक्टूबर 2019
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद