धनतेरस पर कविताएं: कार्तिक माह (पूर्णिमान्त) की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र-मंन्थन के समय भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूँकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी प्रथा है; जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चाँदी के बने बर्तन खरीदते हैं।
- धनतेरस पर कविता
- माँ लक्ष्मी वंदना
- दीप जले दीवाली आई
- धन्वंतरि जी
- सजा धजा बाजार
- धनतेरस
- धनतेरस त्यौहार पर कविता
- धनतेरस के दोहे
धनतेरस पर कविता
माँ लक्ष्मी वंदना
चाँदी जैसी चमके काया, रूप निराला सोने सा।
धन की देवी माँ लक्ष्मी का, ताज चमकता हीरे सा।
जिस प्राणी पर कृपा बरसती, वैभव जीवन में पाये।
तर जाते जो भजते माँ को, सुख समृद्धि घर पर आये।
पावन यह उत्सव दीपों का,करते ध्यान सदा तेरा।
धनतेरस से पूजा करके, सब चाहे तेरा डेरा।
जगमग जब दीवाली आये,जीवन को चहकाती है।
माँ लक्ष्मी के शुभ कदमों से, आँगन को महकाती है
तेरे साये में सुख सारे, बिन तेरे अँधियारा है।
सुख-सुविधा की ठंडी छाया, लगता जीवन प्यारा है।
गोद सदा तेरी चाहें हम, वन्दन तुमको करते हैं।
कृपादायिनी सुखप्रदायिनी,शुचिता रूप निरखते हैं।
डॉ.सुचिता अग्रवाल”सुचिसंदीप”
दीप जले दीवाली आई
दीप जले दीवाली आई
खुशियों की सौगाती।
सुख दुख बाँटो मिलकर ऐसे,
जैसे दीया बाती।
धनतेरस जन्म धनवंतरी,
अमृत औषधी लाये।
जिनकी कृपा प्रसादी मानव
स्वस्थ धनी हो पाये।
औषध धन है,सुधा रोग में,
मानवता के हित में।
सभी निरोगी समृद्ध होवे,
करें कामना चित में।
दीन हीन दुर्बल जन मन को,
आओ धीर बँधाए।
बिना औषधी कोई प्राणी,
जीवन नहीं गँवाए।
एक दीप यदि मन से रखलें,
धनतेरस मन जाए।
मनो भावना शुद्ध रखें सब,
ज्ञान गंध महकाए।
स्वस्थ शरीर बड़ा धन समझो,
धन से भी स्वास्थ्य मिले।
धन काया में रहे संतुलन,
हर जन को पथ्य मिले।
बाबू लाल शर्मा, बौहरा , विज्ञ
धन्वंतरि जी
अमृत कलश के धारक,सागर मंथन से निकले।
सुख समृद्धि स्वास्थ्य के,देव आर्युवेद के विरले।
चार भुजा शंख चक्र,औषध अमृत कलश धारी।
विष्णु के अवतार हैं देव,करें कमल पर सवारी।
आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि,हैं आरोग्य के देवता।
कार्तिक त्रयोदशी जन्म हुआ,कृपा करें धनदेवता।
पीतल कलश शुभ संकेत,देते हैं यश वैभव भंडार।
आर्युवेद की औषध खोज,किया जगत का उद्धार।
धनतेरस को यम देवता की पूजा कर 13 दीये जलाएं।
धन्वंतरि जी कृपा करेंगे,यश सुख समृद्धि स्वास्थ्य पाएं।
सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”
सजा धजा बाजार
सजा धजा बाजार, चहल पहल मची भारी
धनतेरस का वार,करें सब खरीद दारी।
जगमग होती शाम,दीप दर दर है जलते।
लिए पटाखे हाथ,सभी बच्चे खुश लगते।
खुशियाँ भर लें जिंदगी,सबको है शुभकामना।
रुचि अंतस का तम मिटे,जगे हृदय सद्भावना।
✍ सुकमोती चौहान “रुचि”
धनतेरस
धनतेरस पर कीजिए ,
धन लक्ष्मी का मान ।
पूजित हैं इस दिवस पर ,
धन्वंतरि भगवान ।।
धन्वंतरि भगवान ,
शल्य के जनक चिकित्सक ।
महा वैद्य हे देव ,
निरोगी काया चिंतक ।।
कह ननकी कवि तुच्छ ,
निरामय तन मन दे रस ।
आवाहन स्थान ,
पधारो घर धनतेरस ।।
~ रामनाथ साहू ” ननकी “
धनतेरस त्यौहार पर कविता
धन की वर्षा हो सदा,हो मन में उल्लास
तन स्वथ्य हो आपका,खुशियों का हो वास
जीवन में लाये सदा,नित नव खुशी अपार
धनतेरस के पर्व पर,धन की हो बौछार
सुख समृद्धि शांति मिले,फैले कारोबार
रोशनी से रहे भरा,धनतेरस त्यौहार
झालर दीप प्रज्ज्वलित,रोशन हैं घर द्वार
परिवार में सबके लिए,आये नए उपहार
माटी के दीपक जला,रखिये श्रम का मान
@संतोष नेमा “संतोष”
धनतेरस के दोहे
धनतेरस का पुण्य दिन, जग में बड़ा अनूप।
रत्न चतुर्दश थे मिले, वैभव के प्रतिरूप।।
आज दिवस धनवंतरी, लाए अमृत साथ।
रोग विपद को टालते, सर पे जिसके हाथ।।
देव दनुज सागर मथे, बना वासुकी डोर।
मँदराचल थामे प्रभू, कच्छप बन अति घोर।।
प्रगटी माता लक्षमी, सागर मन्थन बाद।
धन दौलत की दायनी, करे भक्त नित याद।।
शीतल शशि उस में मिला, शंभु धरे वह माथ।
धन्वन्तरि थे अंत में, अमिय कुम्भ ले हाथ।।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’