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धनवन्तरि भगवान पर कविता

धनवन्तरि भगवान
कविता बहार

धनवन्तरि भगवान


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मंथन हुआ समुद्र का,
धनवन्तरि भगवान।
चौदह रत्नों मे मिले,
लिए देव पहचान।।
कर मे अमृत कलश था ,
देव -दनुज मे छोभ।
पीने का नहि संवरण,
कर पाये वे लोभ।।
विश्व मोहिनी हाथ से,
अमृत गया परोस।
सुर पाये सब भाग्यवश,
टूटा असुर भरोस।।
अमृत औषधियाँ सभी,
धनवन्तरि भगवान।
व्याधिनाश हित दे गये,
यह था जीवन दान।।
धनवन्तरि प्राकट्य का,
यह दिन शुभ है आज।
श्रद्धा से पूजें सभी,
आयुर्वेद समाज।।
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एन्०पी०विश्वकर्मा, रायपुर
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