बसंत आया दूल्हा बन

बसंत आया दूल्हा बन      बसंत आया दूल्हा बन,बासंती परिधान पहन।उर्वी उल्लासित हो रही,उस पर छाया है मदन।। पतझड़ ने खूब सताया,विरहा में थी बिन प्रीतम।पर्ण-वसन सब झड़ गये,किये क्षिति ने लाख जतन।। ऋतुराज ने उसे मनाया,नव कोपलें ,नव पल्हव।फिर से बनी नव यौवना ,मही मनमुदित है मगन।। वसुंधरा पर हर्ष छाया ,सभी मना … Read more

निराला प्रकृति- कुंडलिया छंद

निराला प्रकृति निराला रूप प्रकृति का , लगता है चितचोर।भाये मन को ये सदा , करता भाव विभोर।।करता भाव विभोर , सभी को खूब लुभाता।फैला चारों ओर , मनुज दोहन करवाता ।।रखना ‘मधु’ यह ध्यान , बनें हम नहीं निवाला।प्रकृति का रहे साथ , करें कुछ काम निराला।। मधुसिंघी नागपुर (महाराष्ट्र)