कवि पर दोहे
विधी की सृष्टि से बड़ा, कवि रचना संसार।
षडरस से भी है अधिक,इसका रस भंडार।।1।।
विधि रचना संसार का,इक दिन होता अंत।
कवि की रचना का कभी ,कभी न होता अंत।।2।।
रवि नही पहुँचे जहां,कवी पहुंच ही जाय।
कवि की रचना सृष्टि में,सीमा कभी न आय।।3।।
कवी शब्द की शक्ति से, रचता है संसार।
सुंदर सुंदर शब्द से, रचता काव्य अपार।।4।।
निर्माता है काव्य का, कवि है रचनाकार।
करता हैवही सहृदय,गुणअवगुण का सार।।5।।
कवि की रचना होत है, केवल स्वान्तसुखाय।
अपने मन के भाव को,अभिव्यक्ति बनाय।।6।।
कवी कल्पना शक्ति से, रचता है साहित्य।
इस नश्वर संसार से ,होय अलग ही सत्य।।7।।
काव्य कवी का कर्म है,होता है कवि धर्म।
अभिव्यक्ति में सत्यता,यही काव्य का मर्म।।8।।
होती है यश-लालसा,कवि के मन के माहि।
भूखा है सम्मान का,और न कछु भी चाहि।।9।।
कवि पर करती है कृपा, सरस्वती भरपूर।
उसके आशीर्वाद से , वह पाता है नूर।।10।।
©डॉ एन के सेठी