Tag: Poem on 5 June World Environment Day

  • वृक्ष की पुकार कविता -महदीप जंघेल

    विश्व पर्यावरण दिवस पर वृक्ष की पुकार कविता -महदीप जंघेल

    poem on trees
    poem on trees

    मत काटो हमें,
    संरक्षण दो।
    सिर्फ पेड़ नही हम,
    हैं हम जीवन का आधार
    हमें भी जीने दो,
    सुन लो, हमारी पुकार।।

    बिन हमारे धरती सूनी,
    सूना है संसार।
    बिन हमारे धरती मां का,
    कौन करे श्रृंगार?
    हमें भी जीने दो,
    सुन लो, हमारी पुकार।।

    हमसे ही पाया है सब कुछ ,
    बदले में किया तिरस्कार।
    चंद रुपयों में तौल दिया,
    न मिला प्रेम दुलार।
    हमे भी जीने दो,
    सुन लो ,हमारी पुकार।

    बहे ,हमी से जीवन धारा,
    सजे हमी से धरा श्रृंगार।
    वृक्ष लगाकर, वृक्ष बचाकर,
    विश्व पर करो उपकार।
    हमे भी जीने दो,
    सुन लो, हमारी पुकार।।

    जब वृक्षहीन हो जाएगी धरणी,
    तब तपेगा सारा संसार।
    त्राहि माम ,त्राहि माम होगा विश्व में,
    चहुँ ओर गूंजेगा चित्कार।
    हमे भी जीने दो ,
    सुन लो,हमारी पुकार।

    विश्व बचाना हो अगर,
    तो हो जाओ अब तैयार।
    वृक्षारोपण करो धरा पर,
    करो आदर और सत्कार।
    हमे भी जीने दो।,
    सुन लो, हमारी पुकार।।

    सब कुछ किया अर्पण तुम पर,
    जिंदगी का कराया दीदार।
    मत काटो हमें,
    संरक्षण दो ।
    हैं हम जीवन का आधार,
    हमे भी जीने दो,
    सुन लो, हमारी पुकार।।

    ✍️रचनाकार- महदीप जंघेल
    निवास- खमतराई
    वि.खं – खैरागढ़
    जिला -राजनांदगांव(छ. ग)

  • क्यों काट रहे हो जंगल -बिसेन कुमार यादव’बिसु’ (वन बचाओ आधारित कविता)

    क्यों काट रहे हो जंगल (वन बचाओ आधारित कविता)

    poem on trees
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    क्यों कर रहे हो अहित अमंगल!
    क्यों काट रहे हो तुम जंगल!!

    धरती की हरियाली को तूने लूटा!
    बताओ कितने जंगल को तूने काटा!!

    वनों में अब न गुलमोहर न गूलर खड़ी है!
    हरी-भरी धरती हमारी बंजर पड़ी है!!

    अगर ये जंगल नहीं रहा तो,

    कजरी की गीत कहां गा पाऐंगे!

    सावन में खुशहाली की त्यौहार,
    हरियाली भी कहां मना पाऐंगे!!

    सावन आयेगा पर हरियाली नहीं रहेगा!
    फिर सावन में खुशहाली नहीं रहेगा!!

    अगर जंगल नहीं रहेगा तो तुम भी कहां रहोगें!
    क्या खाओगे बोलो और क्या सांस लोगे!!

    जहर स्वयं पीती है पेड़!
    और अमृत भी देती है पेड़!!

    फिर भी तूने यह जानकर!
    अपनी स्वार्थ में आकर!!

    ये कैसा अनीष्ट कर दिया!
    तूने पेड़ो को नष्ट कर दिया!!

    न जंगल रहेगा न जंगल का राजा बचेगा!
    फिर जंगल के जीव किसे राजा कहेंगा!!


    अपना महल बनाकर तूने उनका घर उजाड़ा है!
    अपनी स्वार्थ के लिए प्रकृति का संतुलन बिगड़ा है!!

    अपनी ही हाथों से अपनी ही अर्थी निकाली है!
    तूने अपनी ही जीवन संकट में डाली है!!

    प्रकृति ने पीपल,बरगद नीम, और वृक्ष देवदार दिया!
    अंगूर,सेब,आम,केला कटहल जैसे फलदार दिया!!

    तुम रक्षक नहीं भक्षक बन बैठे हो!
    इन्हीं पेड़ों को तुम नष्ट कर बैठे हो!!

    जिसने तुम्हें जीने के लिए जीवन दिया!
    सांस लेने के लिए पवन दिया!!

    खाने के लिए तुम्हें अन्न दिया!
    और बहुत सारा ईंधन दिया!!

    उसी को आज तूने क्या किया!
    कुल्हाड़ी से उन पर वार किया!!

    फिर जंगल से जीवों को निष्कासित किया!
    उस पर शहर,उद्योग,कारखाने स्थापित किया!!

    आज इसलिए समस्या बढ़ रहीं हैं!
    प्रकृति में जो परिवर्तन हो रहीं हैं!!

    कहीं बाढ़ तो कहीं ग्लेशियर का पिघलना!
    कहीं सूखा तो कहीं जलस्तर का बढ़ना!!

    कहीं चक्रवात तो कहीं तूफान!
    प्रकृति ले रहीं हैं, अनेकों जान!!

    अब तो तुम, न बनो नदान!
    अब तो सुधर जाओ इंसान!!



    नाम – बिसेन कुमार यादव’बिसु’
    ग्राम-दोन्दे कला थाना-विधानसभा,जिला-रायपुर छत्तीसगढ़

  • मानवता के खातिर अब वृक्ष लगाऐंगे

    मानवता के खातिर अब वृक्ष लगाऐंगे।  

    poem on trees
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    कटेंगे वृक्ष , जंगल में तो,
    कैसे होगा विश्व में मंगल,
    बढ़ती जनसंख्या से हो रहा,
    जब संसार में मानव – दंगल।
    पर्यावरण समस्या को सुलझाऐंगे,
    मानवता के खातिर अब वृक्ष लगाऐंगे।


    मधुमक्खियों का शहद
    और चिड़ियों की आवाज,
    कंद – मूल फल में छिपा
    है स्वस्थ सेहत का राज।
    करते ये वायु को शुद्ध,
    तो क्यों इस पर जुल्म ढाऐंगे,
    मानवता के खातिर अब वृक्ष लगाऐंगे।  


    करते मनुष्य हर जगह वृक्ष का उपयोग,
    माना होता नहीं कहीं भी इसका दुरुपयोगl
    बड़े नाव – मकान – बांध निर्माण से लेकर,
    माचिस तिल्ली में भी होता इसका प्रयोग।
    चिपको आंदोलन के जन्मदाता,
    बहुगुणा को कैसे हम भुलाऐंगे,
    मानवता के खातिर अब वृक्ष लगाऐंगे।  

    अशुद्ध हवा को लेकर शुद्ध हवा देती है,
    बरसात कराती, धुप में शीतल छाँव देती है।
    ओजोन परत की समस्या करती है ये दूर,
    फिर भी स्वार्थ में वृक्ष काटने को लोग हैं मजबूर।
    वृक्ष लगाओ वृक्ष बचाओ अभियान ज्योत
    चलो अब घर गांव शहर में जलाऐंगे,
    मानवता के खातिर अब वृक्ष लगाऐंगे।  


    अशुद्धता को लेती शुद्धता को करती ये दान।
    करो रखवाली वृक्ष का तुम न लो इनकी जान।
    पर्यावरण प्रदूषण हो गई अब तो जटिल
    इस समस्या को हम जल्द ही सुलझाऐंगे,
    मानवता के खातिर अब वृक्ष लगाऐंगे।  



    अकिल खान रायगढ़

  • पेड़ लगावव जिनगी बचावव-तोषण कुमार चुरेन्द्र

    पेड़ लगावव जिनगी बचावव-तोषण कुमार चुरेन्द्र

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    रूख राई डोंगरी पहाड़ी रोवत हे पुरजोर…
    हावा पानी कहाँ ले पाबो करलव भैय्या शोर….

    पेड़ लगावव जिनगी बचावव
    धरती दाई के प्यास बुझावव
    नदिया नरवा सूख्खा परगे,
    अब तो थोरिक चेत लगावव

    गली मुहल्ला सुन्ना परगे सुन्ना होगे गा खोर….
    हावा पानी कहाँ ले पाबो करलव भैय्या शोर….

    कोरोना के कहर चलत हे
    मनखे तभो ले नइ चेतत हे
    सेंफो सेंफो जीव हर करथे,
    आक्सीजन ह कम परत हे

    कइसन बिपत के छाहे बादर ये घनघोर….
    हावा पानी कहाँ ले पाबो करलव भैय्या शोर….

    मनखे पीछू रूख ल लगावव
    जल जमीन जंगल बचावव
    जल हे तब कल हे गा भैय्या,
    यहू बात ल सब ला बतावव

    सावन मा बरसही पानी झूमही नाचही मोर….
    हावा पानी कहाँ ले पाबो करलव भैय्या शोर….



    तोषण कुमार चुरेन्द्र
    धनगांव डौंडी लोहारा

  • पेड़ धरा की शान है परमेश्वर साहू अंचल

    पेड़ धरा की शान है परमेश्वर साहू अंचल



    पेड़ धरा की शान है,
    नेक सफ़ल अभियान।
    आओ रोपें मिलकर,
    तजें तुच्छ अभिमान।।

    हवा शुद्ध करता यही,
    खास नेक पहचान।
    जड़ी बूटी है काम की,
    पूर्ण करें अरमान।।

    ताप उमस हरदम हरे,
    रक्षा करता धूप।
    शीतल छाया में सदा,
    निखरे हड़पल रूप।।

    डंठल पत्तल काम की,
    आते सारे काम।
    इससे मानव को मिले,
    युग युग से आराम।।

    दोना पत्तल भी बने,
    मिले सदा व्यापार।
    हड़पल बनकर दोस्त सम,
    करता यह उद्धार।।

    टेबल कुर्सी मेज भी,
    घर का बने कपाट।
    नदिया, नाले पुल बने,
    रास्ता करे सपाट।।

    छज्जा पाटी म्यार भी,
    बने बहुत सी चीज।
    पकने दें फल को सदा,
    बड़े काम की बीज।।


    🌹🙏 *अंचल* 🙏🌹