ख़यालों पर कविता

ख़यालों पर कविता तुम मेरे ख़यालों में होते होमैं ख़ुशनसीब होता हूँबात चलती है तुम्हारी जहाँमैं ज़िक्र में होता हूँ . पलकें बंद होती नहीं रातों कोयादों को तुम्हारी आदत हैरातों की सियाही कटती नहींमैं फ़िक़्र में होता हूँ. क़तरा – क़तरा सुकूँ ज़िन्दगी मेंजमा होता है, यक-ब-यक नहींलुट जाता है ये सब अचानकमैं हिज़्र … Read more

भोर गीत-राजेश पाण्डेय वत्स

भोर गीत ये सुबह की सुहानी हवाये प्रभात का परचम।प्रकृति देती है ये पलरोज रोज हरदम।। आहट रवि किरणों कीसजा भोर का गुलशन।कर हवाओं संग सैरभर ले अपना दामन।। उठ साधक जाग अभीदिन मिले थे चार।बीते न ये कीमती पलखो न जाये बहार।। कदम बढ़ा न ठहर अभीमंजिल आसमान में।स्वर्ग बना धरा को औरराम नाम … Read more

कलयुग के पापी -राजेश पान्डेय वत्स

कलयुग के पापी भूखी नजर कलयुग के पापीअसंख्य आँखों में आँसू ले आई! लालची नजर *सूर्पनखा* कीइतिहास में नाक कटा आई!! मैली नजर *जयंत काग* केनयन एक ही बच पाई!!! बिना नजर के *सूरदास* को*कृष्ण-लीला* पड़ी दिखाई!! नजर में श्रद्धा *मीरा* भरकरतभी गले विष उतार पाई!! तीसरी नजर *शिवशंम्भु* की*कामदेव* को पड़ी न दिखाई!! तकती … Read more

मोर मया के माटी-राजेश पान्डेय वत्स

मोर मया के माटी छत्तीसगढ़ के माटीअऊ ओकर धुर्रा। तीन करोड़ मनखेसब्बौ ओकर टुरी टुरा।।  धान के बटकी कहाय,छत्तीसगढ़ महतारी। अड़बड़ भाग हमर संगीजन्में येकरेच दुआरी।।  एकर तरपांव धोवय बरआइन पैरी अरपा। महानदी गंगा जईसनखेत म भरथे करपा।।  मया के बोली सुनबे सुघ्घरछत्तीसगढ़ म जब आबे। अही म जनमबे वत्स तैं, मनखे तन जब पाबे।।  —-राजेश … Read more

घर वापसी- राजेश पाण्डेय वत्स

घर वापसी नित नित शाम को, सूरज पश्चिम जाता है। श्रम पथ का जातक फिर अपने घर आता है।  भूल जाते हैं बातें थकान और तनाव की ,अपने को जब जबपरिवार के बीच पाता है।  पंछियों की तरह चहकतेघर का हर सदस्य,घर का छत भी तब अम्बर नजर आता है।  कल्प-वृक्ष की ठंडकता भी फीकी सी लगने लगे शीतल पानी का गिलासजब … Read more