Tag: #राजेश पाण्डेय अब्र

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर0 राजेश पाण्डेय अब्र के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • दिल की बात जुबाँ पे अक्सर हम लाने से डरते हैं

    दिल की बात जुबाँ पे अक्सर हम लाने से डरते हैं

    दिल की बात जुबाँ पे अक्सर हम लाने से डरते हैं
    कहने को तो हम कह जाएँ पर कहने से बचते हैं।
    दिल वालों की इस बस्ती में कौन किसी का अपना है
    कहने को अपना कह जाएँ पर कहने से डरते हैं ।
    चाहत की बुनियाद पे हमने ख़्वाबों की तामीर रखी
    सतरंगे अहसासों को हम बस अब अपना कहते हैं।
    चाहत के  रिश्ते में हमने क्या खोया क्या पाया है
    खुद को खोकर उसको पाया हम ये कहते रहते हैं।
    इश्क़ अधूरा अपना यारों अब कहने की बात नहीं
    बस्ती बस्ती, सहरा सहरा मुस्काकर दुख सहते हैं।
    ज़ख्म सिये उल्फ़त में हमने जाने क्या क्या जतन किये
    आंखों से अश्कों के मोती फिर भी झरते रहते हैं।
    आवारा ये दिल का पंछी गगन तले उड़ता  जाए
    मिल जाएगा कोई नशेमन साथ हवा के बहते हैं।

    राजेश पाण्डेय अब्र
       अम्बिकापुर

  • अब्र के दोहे

    अब्र के दोहे

    मस्ताया मधुमास है, गजब दिखाए रंग।
    फागुन बरसे टूटकर, उठता प्रीत तरंग।।

    लाया फूल पलाश का, मस्त मगन मधुमास।
    सेमल-सेमल हो गया, फागुन अबके खास।।

    काया नश्वर है यहाँ, मत भूलें यह बात।
    कर्म अमर रहता सदा, भाव जगे दिन रात।।

    सार्वजनिक जीवन सदा, भेद भाव से दूर।
    जिनका भी ऐसा रहा, वो जननायक शूर।।

    होली में इस बार हम, करें नया कुछ खास।
    नर नारी दोनों सधे, पगे प्रेम उल्लास।।

    होंली के हुड़दंग में, रखें सदा यह याद।
    अक्षुण्ण नारी मान हो, सम्मानित सम्वाद।।

    धूम मचाएँ झूम के, ऐसा खेलें फाग।
    जीवन में खुशियाँ घुले, पगे प्रेम अनुराग।।

    हर्षित अम्बर है यहाँ, भू पुलकित है आज।
    सतरंगे अहसास से,, उड़ी हुई है लाज।।

    जपें नाम प्रभु राम का, इसका अटल विधान।
    तारक ईश्वर हैं यही, सद्गति के सन्धान।।

        सम्यक ईश्वर की नजर, रचता रहे विधान।
    सुख दुख दोनो ही दिये, माया जगत वितान।।

      निर्णय ईश्वर का हुआ, सदा बहुत ही नेक।
    अज्ञानी समझे नहीं, समझा वही विवेक।।  

    काव्य सुधा रस घोलती, समझ सृजन का मर्म ।
    सम्बल हे माँ शारदे, अभिनन्दन कवि कर्म ।।  

    वैचारिकता शून्य जब, यत्र तत्र हो तंत्र।
    सकारात्मक सोच सदा, खुश जीवन का मंत्र।।

      गहरी काली रात में, सूझे नहीं उपाय ।
    करें प्रात की वंदना, करता ईश सहाय ।।  

    अहा अर्चना हम करें, नित्य प्रात के याम ।
    भूधर का उत्तुंग शिखर , है भोले का धाम ।।  

    वाणी संयम से मिले, सामाजिक सम्मान।
    तोल मोल बोली सदा, रखे आपका मान।।  

    नदियाँ ममता बाँटती, ज्यों माता व्यवहार।
    पालन पोषण ये करे, गाँव शहर संसार।।  

    सच जिंदा ईमान भी, लोगों को है आस।
    आया जब भी फैसला, तब जीता विश्वास।।

    कहे जनवरी नित्य ही, खोलो सारे बन्ध।
    प्रेम दिसम्बर तक बढ़े, बिना किसी अनुबन्ध।।


    राजेश पाण्डेय अब्र
       अम्बिकापुर


  • दिल की बात बताकर देखो

    दिल की बात बताकर देखो

    दिल की बात बताकर देखो
    मन में दीप जलाकर देखो।
    कौन किसी को रोक सका है
    नाता खास निभाकर देखो।
    आँखों की बतिया समझो तो
    लब पर मौन सजाकर देखो।
    इश्क़ सफ़ीना सबका यक सा
    थोड़ा पार लगाकर देखो।
    लोग जगत सब मैला यारों
    मन का वहम मिटाकर देखो।
    रब का एक नज़रिया सब पर
    ऐसा भाव जगाकर देखो।

    राजेश पाण्डेय अब्र
        अम्बिकापुर

  • मेरी पलकें नमाज़ी हुई

    मेरी पलकें नमाज़ी हुई

    मेरी  पलकें  नमाज़ी  हुई  तेरे  दीदार  से
    नूर बरसता है यूँ पाक़  तेरे रुख़सार से ।
    मुजस्सिम ग़ज़ल हो मेरी, उम्र की ताजमहल का
    बेयक़ीन  हुआ  नहीं  मैं  इश्क़  में  ऐतबार  से ।
    गोया  कि  तुम  मेरे हाथ  की लकीर हो या रब
    हाथ  होता  नहीं  तो  क्या  होता जाँ निसार से ।
    मसरूफ़ियत  में  भी  हमने  सजदे  किये  तेरे
    वीरान  जज़ीरे  में  बाहर  आई  फिर प्यार  से ।
    शैदाई  हैं  शराफ़त  के हम   सुख़नवर ऐ  “अब्र”
    तसबीह-ए-दिल छोड़कर , सब ले जाओ क़रार से ।

    कलम से
    राजेश पाण्डेय “अब्र”
             अम्बिकापुर