मंज़िल पर कविता
सूर्य की मंज़िल अस्ताचल तक,
तारों की मंज़िल सूर्योदय तक।
नदियों की मंज़िल समुद्र तक,
पक्षी की मंज़िल क्षितिज तक।
अचल की मंज़िल शिखर तक,
पादप की मंज़िल फुनगी तक।
कोंपल की मंज़िल कुसुम तक,
शलाका की मंज़िल लक्ष्य तक।
तपस्वी की मंज़िल मोक्ष तक,
नाविक की मंज़िल पुलिन तक।
श्रम की मंज़िल सफलता तक,
पथिक की मंज़िल गंतव्य तक।
बेरोजगार की मंज़िल रोजी तक,
जीवन की मंज़िल अवसान तक।
वर्तमान की मंज़िल भविष्य तक,
‘रिखब’ की मंज़िल समर्पण तक।
®रिखब चन्द राँका ‘कल्पेश’
जयपुर (राजस्थान)