मंज़िल पर कविता

मंज़िल पर कविता   सूर्य की मंज़िल अस्ताचल तक,तारों की मंज़िल सूर्योदय तक।नदियों की मंज़िल समुद्र तक,पक्षी की मंज़िल क्षितिज तक। अचल की मंज़िल शिखर तक,पादप की मंज़िल फुनगी तक।कोंपल की मंज़िल कुसुम तक,शलाका की मंज़िल लक्ष्य तक। तपस्वी की मंज़िल मोक्ष तक,नाविक की मंज़िल पुलिन तक।श्रम की मंज़िल सफलता तक,पथिक की मंज़िल गंतव्य तक। … Read more

काली कोयल

काली कोयल कोयल सुन्दर काली -काली,हरियाले बागों की मतवाली।कुहू-कूहू करती डाली-डाली,आमों के बागों मिसरी घोली। ‘चिड़ियों की रानी’ कहलाती,पंचमसुर में तुम राग सुनाती।हर मानव के कानों को भाती,मीठी बोली से मिठास भरती। मौसम बसंत बहुत सुहाना,काली कोयल गाती तराना।रूप तुम्हारा प्यारा सयाना,जंगलवासी का मन हरना। कोकिला, कोयल, वनप्रिया,बसंतदूत,सारिका नाम पाया।पेड़ों के पत्तों में छिप जाया,मीठी … Read more

ऋतुराज बसंत

ऋतुराज बसंत ऋतुराज बसंत प्यारी-सी आई,पीले पीले फूलों की बहार छाई।प्रकृति में मनोरम सुंदरता आई,हर जीव जगत के मन को भाई। वसुंधरा ने ओढ़ी पीली चुनरिया,मदन उत्सव की मंगल बधाइयाँ ।आँगन रंगोली घर द्वार सजाया,शहनाई ढ़ोल संग मृदंग बजाया । बसंत पंचमी का उत्सव मनाया,माँ शारदे को पुष्पहार पहनाया।पुष्प दीप से पूजा थाल सजाया,माँ की … Read more