सामाजिक विषमता पर कविता- पद्म मुख पंडा
सामाजिक विषमता पर कविता- बही बयार कुछ ऐसी जूझ रहे जीने के खातिर,पल पल की आहट सुनकर,घोर यंत्रणा नित्य झेलते,मृत्यु देवता की धुन पर।सुख हो स्वप्न, हंसी पागलपन,और सड़क पर जिसका घर,किस हेतु वह भय पाले,जब मृत्यु बोध हो जीवन भर? जो कंगाल वही भिक्षुक हो,ऐसा नियम नहीं कोई,जो धनवान, वही दाता हो,होता नहीं, सही … Read more