घाम के महीना छत्तीसगढ़ी कविता

घाम के महीना छत्तीसगढ़ी कविता नदिया के तीर अमरइया के छांव हे।अब तो बिलम जा कइथव मोर नदी तीर गांव हे।। जेठ के मंझनिया के बेरा म तिपत भोंमरा हे।खरे मंझनिया के बेरा म उड़त हवा बड़ोरा हे।। बिन पनही के छाला परत तोर पांव हे।मोर मया पिरित के तोर बर जुर छांव हे।। खोर … Read more

गरमी महीना छत्तीसगढ़ कविता

गरमी महीना छत्तीसगढ़ कविता किंदर किंदर के आवथें बड़ेर,“धुर्रा-माटी-पैरा-पान” सकेल।खुसर जाय कुरिया कोती अन,लकर-लकर फेरका ल धकेल।हव! आगे ने दिन बिन-बूता पसीना के।ए जम्मो चिन्हा हावे गरमी महीना के।। डम-डम डमरू बजावत,आवत हे ठेलावाला।रिंगी-चिंगी चुसकी धरे,दिखत हे भोलाभाला।लईका कूदे देखके ओला।पईसा दे दाई जल्दी से मोला।अऊ दाई देय चाउर,भर-भर गीना के।ए जम्मो चिन्हा हावे गरमी … Read more