दंगों से पहले पर कविता
दंगों से पहले पर कविता दंगों से पहले शांत महौल थाइस शहर कादंगों से पहले नाम निशाननहीँ था वैर कादंगों से पहले अंकुरित नहीँ थाबीज जहर कादंगों से पहले सौहार्द-सदभाव काहर पहर थादंगों से पहले न साम्प्रदायिकताका कहर थादंगों से…
यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर 0 #विनोद सिल्ला के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .
दंगों से पहले पर कविता दंगों से पहले शांत महौल थाइस शहर कादंगों से पहले नाम निशाननहीँ था वैर कादंगों से पहले अंकुरित नहीँ थाबीज जहर कादंगों से पहले सौहार्द-सदभाव काहर पहर थादंगों से पहले न साम्प्रदायिकताका कहर थादंगों से…
जाति धर्म पर कविता इंसान-इंसान के बीचकितनी हैं दूरियांइंसान-इंसान कोनहीं मानता इंसानमानता हैकिसी न किसीजाति काधर्म काप्रतिनिधिइंसान की पहचानइंसानियत न होकरबन गई पहचानजाति व धर्म हो गई परिस्थितियांबड़ी विकटविवाह-शादीकार-व्यवहारक्रय-विक्रयसब कुछ मेंदी जाती है वरीयताअपनी जाति कोअपने धर्म कोजाति-धर्म हीसबसे बड़ी…
पर्यावरण संरक्षण पर कविता दूषित हुई हवावतन कीकट गए पेड़सद्भाव केबह गई नैतिकतामृदा अपर्दन मेंहो गईं खोखली जड़ेंइंसानियत कीघट रही समानताओजोन परत की तरहदिलों की सरिताहो गई दूषितमिल गया इसमेंस्वार्थपरता का दूषित जलसांप्रदायिक दुर्गंध नेविषैली कर दी हवाआज पर्यावरणसंरक्षण कीसख्त…
बिखराव पर कविता नफरतों नेबढ़ा दी दूरियांइंसान-इंसान के बीच बांट दिया इंसानकितने टुकड़ों मेंस्त्री-पुरुषअगड़ा-पिझड़ाअमीर-गरीबनौकर-मालिकछूत-अछूतश्वेत-अश्वेतस्वर्ण-अवर्णधर्म-मजहब मेंखंड-खंड हो गया इंसाननित बढ़ता हीजा रहा है बिखराव -विनोद सिल्ला© Post Views: 66
राज दरबारी वो हैं बड़े लेखकनवाजा जाता है उन्हेंखिताबों सेदी जाती हैसरकार द्वारा सुविधाएंनाना प्रकार कीबदले मेंमिलाते हैं वे कदम-तालसरकार सेकर रहे हैं निर्वहनराज-दरबारियों कीपरम्परा काउनकी लेखनी नेमोड़ लिया मुंहआमजन की वेदना सेहो गए बेमुख संवेदना सेचंद राजकीयरियायतों के लिए…
सरहद पर कविता सरहदों परव्याप्त हैभयावह चुप्पीकी जा रही हैचुपचाप निगहबानीकी जाती हैं बाड़बंधीनियन्त्रित करने कोइंसानों कोइंसानों की आवा-जाही कोकहा जाता हैकी जा रही है सुरक्षास्वतंत्रता कीसंप्रभुता कीसरहद नहीं होती प्रतीतस्वतन्त्रता की परिचायकसरहद तोकरती है नियंत्रितइंसानों कोउनकी स्वतंत्रता को Post…
धर्मांधता पर कविता जब भीबंटा है वतनतब-तबबंटवारे के लिएउत्तरदायी रही हैधर्मांधतायह चलती हैराजनीतिक इशारों परजो आज भी हैपूरे यौवन परजाने और कितनेटुकड़े करना चाहते हैंधर्मांध लोगइस वतन केनहीं लेते सबकऐतिहासिक भूलों सेऔर कर रहे हैं निर्माणअराजक वातावरण का -विनोद सिल्ला©…
नन्हें मेहमान पर कविता मुंडेर पर रखेपानी के कुंडे कोदेख रहा था मैंहोकर आशंकितमन में उठे प्रश्नकोई पक्षीआता है या नहीँपानी पीनेतभी मुंडेर परदेखी मैंनेपक्षियों की बीठेंमन को हुई तसल्लीकि आते हैंनन्हे मेहमानमेरी मुंडेर पर -विनोद सिल्ला© Post Views: 59
बूंदाबांदी पर कविता रात की हल्कीबूंदाबांदी नेफिजां कोदिया निखारपेङों पेपत्तों पेदीवारों पेमकानों पेजमीं धूलधुल गईसब कुछ हो गयानया-नयाऐसी बूंदाबांदीमानव मन पे भीहो जातीजात-पांतधर्म-मजहब कीजमी धूलभी जाती धुलआज कीफिजां की तरहजर्रा-जर्राजाता निखर -विनोद सिल्ला Post Views: 49
यादें तो यादें है -विनोद सिल्ला आ जाती हैं यादेंबे रोक-टोकनहीं है इन परकिसी का नियन्त्रणनहीं होने देतीआने का आभासआ जाती हैंबिना किसी आहट केदे जाती हैंकभी गम कातो कभी खुशी काउपहारजब भीआती हैं यादेंस्मृतियों केरंगमंच परचल पड़ता हैचलचित्र-सालौट आते…