उठो सपूत


ल ला – ल ला – ल ला – ल ला – ल ला – ल ला – ल ला – ल ला

उठो सपूत राष्ट्र के,  जगा रही तुम्हें  धरा।
पुनः महान देश हो, विचार ये करो जरा।1
प्रबुद्ध देशवासियों, न ढील दो लगाम को।
बिना किसी विराम के, करो नवीन काम को।2
एकाग्र हो यकीन से, निशान साध तीर के।
बिना मिले न लक्ष्य के, रुके न पैर वीर के।3
जहां कहीं बवाल हो, व नाक का सवाल हो।
न भूल हो यदा कदा, नहीं कभी मलाल हो।4
भरा नवीन जोश हो, नहीं समाप्त रोष हो।
सभी दिलों पे राज हो, नहीं कहीं प्रदोष हो।5
महीन सी इबारतें, लिखी गईं जहां कहीं।
सम्हाल लें संवार लें,  रहें सदा मिटे नहीं।6
सुधार देश में करें, जला मशाल ज्ञान की।
यहां सदा बने तभी,बात राष्ट्र शान की।7
प्रवीण त्रिपाठी, उदयपुर, 03 जनवरी 2019
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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