विजय पर कविता

विजय पर कविता

जिस जीवन में संघर्ष न हो
विजय उसे नहीं मिल सकती
तेजस्वी वीर पुरुष के आगे
अरिसेना नहीं टिक सकती।
ललकार दो शत्रु को ऐसी तुम
पर्वत का सीना टकराए
साहस हृदय में प्रबल रखो
रिपु का मस्तक भी झुक जाए।
सरहद पर दुश्मन बार-बार
माँ को आहत कर जाते हैं
दुश्मन की ईंट बजाकर लाल
विजय पताका फहराते हैं।
नित जूझते हैं संघर्षों से
बिगुल संग्राम बजाते हैं
रण में तांडव करके वीर
विजय तिलक लगाते हैं।
अर्पण प्राण  भी हो जाएँ
नहीं हटते वीर कभी पीछे
इतिहास गवाह है वीरों ने
लहू से मातृ चरण सींचे।
रणवीरों तुमसे ही भारत माँ
वीरभोग्या कहलाती है
पालनहार माँ योद्धाओं की
विजयी वीरभूमि बन जाती है।
कुसुम
नई दिल्ली
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *