योग से दिन है सुहाना / कवि डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर”

डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर” की यह कविता सरल, प्रवाहमयी और प्रेरणादायक भाषा में रची गई है। कविता का उद्देश्य पाठकों को योग के लाभों से अवगत कराना और उन्हें इसे अपने जीवन में शामिल करने के लिए प्रेरित करना है।

योग से दिन है सुहाना / कवि डिजेंद्र कुर्रे "कोहिनूर"

योग से दिन है सुहाना / कवि डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर”

योग से दिन है सुहाना,  
योग को जरूर अपनाना। 

योग ध्यान करके दिन की शुरुआत करना। 
निरोग रहकर स्वास्थ्य को अच्छा बनाना ।

हर कार्य को तन मन लगाकर, 
जीवन की संघर्ष को आसान बनाना ।

योग से दिन है सुहाना, 
योग को जरूर अपनाना।

खान पान को सादगी सरल करना। 
जीवन में आत्मीय गुण को जगाना ।

आपस में प्रेम भाव को बढ़ाकर
हंसता-खेलता जीवन को आगे चलाना ।
योग से दिन है सुहाना,  
योग को जरूर अपनाना। 

कवि डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर”

पीपरभवना, बलौदा बाजार(छ.ग.)

कविता का सार:

“योग से दिन है सुहाना” कविता में कवि डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर” ने योग के दैनिक अभ्यास से जीवन में आने वाले सकारात्मक परिवर्तनों का वर्णन किया है। कविता में योग के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक लाभों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया है। यह कविता पाठकों को योग के महत्व को समझने और उसे अपने जीवन का हिस्सा बनाने के लिए प्रेरित करती है। योग से दिन की शुरुआत को सुहाना बनाने का संदेश देते हुए कवि ने इस साधना को नियमित रूप से अपनाने की प्रेरणा दी है, जिससे जीवन में संतुलन, शांति और सकारात्मकता बनी रहती है।

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