शौचालय विशेष छतीसगढ़ी कविता

शौचालय विशेष छतीसगढ़ी कविता सुधारू केहे-“कस रे मितान!तोला सफई के,नईये कछु भान।तोर आस-पास होवथे गंदगीइही च हावे सब्बो बीमारी के खान।” बुधारू कहे-“मय रेहेंव अनजान।लेवो पकड़त हावों मोरो दूनों कान।लेकम येकर सती, का करना चाही संगी ?अहू बात के,  कर दो बखान। सुधारू कहे-“हमर सरकार लमहतारी मोटियारी के चिंता हावे।शौचालय बना लेवो जम्मोये मे अब्बड़ … Read more

मनखे के कोरा भक्ति पर व्यंग्य

मनखे के कोरा भक्ति पर व्यंग्य

हनुमान जंयती   “धरव -पकड़व -कुदावव”अउ सब्बो झन तोआवव।चढ़गय बेंदरा रूख म त,ढेला घलव बरसावव।अइसने करम करत हावे,आज के मनखे।मनावत हे “हनुमान जयंती”सीधवा अस बनके। सबों जीव के रखबो जीजूरमिल के मानबेंदरा घलव ल तोजानव हनुमानबड़ सुघ्घर नता हावे,बेंदरा अऊ इनसान के।बड़ भारी सेना रहिन ,श्रीराम भगवान के । हनुमान-राम के नता ल,सब्बोझन जानथे।बेंदरा तभ्भे … Read more

सुधारू बुधारू के गोठ -मनीभाई नवरत्न

manibhai Navratna

सुधारू बुधारू के गोठ (छत्तीसगढ़ी व्यंग्य) बुधारू ह गांव के गौंटिया के दमाद के भई के बिहाव म जाय बर फटफटी ल पोछत राहे।सुधारू ओही बखत आ धमकिस।अऊ बुधारू ल कहिस -“कइसे मितान!तोर फूफू सास के नोनी ल अमराय बर (कन्या विदाई ) जात हस का जी।”बुधारू कहिस -“लगन के तारीक ह एके ठन हे … Read more

गीता एक जीवन धर्म

महाभारत अर्जुन और कृष्ण

गीता एक जीवन धर्म यह कविता भगवद गीता के महत्व और उसके जीवन में अनुपालन के लाभ को दर्शाती है। इसे आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है: गीता का ज्ञान गीता महज ग्रंथ नहीं, है यह जीवन धर्म।अमल कर उपदेश को, जान ले ज्ञान मर्म।गीता से मिलती, जीने का नजरिया।सुखमय बनाती जो अपनी दिनचर्या। ज्ञान झलके … Read more