वक़्त पर हमने अगर ख़ुद को संभाला होता
वक़्त पर हमने अगर ख़ुद को संभाला होताज़ीस्त में मेरी उजाला ही उजाला होता दरकते रिश्तों में थोड़ी सी तो नमी होतीअपनी जुबान को जो हमने सम्हाला होता तुमको भी ख़ौफेे – खुदा यार कहीं तो होताकाश ! रिश्तों को मोहब्बत से संभाला होता दर- ब -दर ढूंढ़ रहा जिसको बशर पत्थर मेंकाश ! दिल … Read more