अमित अनुभूति के दोहे
लिखने वाला लिख गया, उल्टे सीधे छंद।
बिना पढ़े कहते सभी, रचना बहुत पसंद।~1
कविता लेखन थोक में, मनमर्जी के संग।
शब्द शिल्प आहत हुए, भाव बड़ा बेढंग।~2
सृजनहार समृद्ध कहाँ, सुलझे नहीं विचार।
कविताई के नाम पर, करता है व्यापार।~3
तुकबंदी करता फिरे, जीवन भर षटमार।
यत्र-तत्र छपने लगा, बनके रचनाकार।~4
नालायक नायक बना, मिला श्रेष्ठ सम्मान।
सज्जनता रोये ‘अमित’, देख दंभ अभिमान।~5
कड़वी कविता में ‘अमित’, सृजन समझ अनमोल।
शब्द जाल संवेदना, अक्षर अक्षर तोल।~6
व्यर्थ वाक्य हैं बोलते, विनत कहाँ व्यवहार।
वर वैभव की वासना, बातें लच्छेदार।~7
मोल कहाँ अब सत्य का, चाटुकारिता सार।
पद पैसे की चाह में, विज्ञापन ही सार।~8
पैसा देकर वो छपे, लिखते जो कमजोर।
थोथा बाजे है चना, करते केवल शोर।~9
✍ कन्हैया साहू “अमित”✍
शिक्षक~भाटापारा (छ.ग)
संपर्क~9200252055
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद