शादी से पहले
मैं जीना चाहता था
एकांत जीवन प्रकृति के सानिध्य में।
पर न जाने कब उलझा
सेवा सत्कार आतिथ्य में ।
अनचाहे विरासत में मिली
दुनियादारी की बागडोर ।
धीरे-धीरे जकड़ रही है
मुझे बिना किए शोर।
कभी तौला नहीं था
अपना वजूद समाज के पलड़ों में ।
अब जरूरी जान पड़ता
कि पड़ूँ दुनियादारी के लफड़ों में ।
सुख चैन मिलता सहज
शादी से पहले ।
पर अब जद्दोजहद करनी होगी
चाहे कोई कुछ भी कह ले।।
मनीभाई ‘नवरत्न’,छत्तीसगढ़,