संवेदना के सुर बजे जब वेदना के तार पर
संवेदना के सुर बजे
जब वेदना के तार पर।
वाल्मिकी की संवेदना जगी
आहत पक्षी चित्कार पर।।१।।
प्रथम कविता प्रकट भयी
खुला साहित्य द्वार पर।
कविता का नव सृजन
पैनी कलम की धार पर।।२।।
भिगी पलके अश्रु अक्षर
शब्द पिरोये काव्य पर ।
रामायण का श्रीगणेश
साहित्य अमर संसार पर।।३।।
मर्म हिय का कर प्रकट
लिख साहित्य श्रृगांर पर।
संवेदनाओ का आत्मसात
रच संस्कृति संस्कार पर।।४।।
कवि भावना द्रवित हो
आहत क्रंदन पुकार पर।
संवेदना के सुर बजे
जब वेदना के तार पर।।५।।
कमलकिशोर ताम्रकार “काश”
रत्नांचल साहित्य परिषद्
गरियाबन्द छ. ग.
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद