त्रिपदिक
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अतीत धरोहर है ।
सुधार ले चल आज को
तुझे आता जौहर है ।
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जीवन रण हारा अगर ।
मत हो निराश बाँकुरे
देगी विजय मंत्र समर ।
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कविता नहीं बोल रहा ।
आप बीती है मेरी
भेद ये क्यों खोल रहा ।
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कर्म में प्रेम धर्म कर ।
समृद्धि घर आती है
बंदे सदा सुकर्म कर ।
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क्यों परेशान हो रहा ।
बढ़ तू अपनी मौज में
गम न कर किसी ने कहा ।
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ये प्रवंचना छोड़ दे ।
सद्भावना कर केवल
कटीले पंथ मोड़ दे ।
~ रामनाथ साहू ” ननकी “
मुरलीडीह