त्रिपदिक

त्रिपदिक


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अतीत   धरोहर   है ।
सुधार  ले  चल  आज  को
तुझे  आता  जौहर   है ।
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जीवन रण हारा अगर ।
मत हो निराश बाँकुरे
देगी विजय मंत्र समर ।
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कविता नहीं बोल रहा ।
आप बीती है मेरी
भेद ये क्यों खोल रहा ।
                *
कर्म में प्रेम धर्म कर ।
समृद्धि घर आती है
बंदे सदा सुकर्म कर ।
     .              *
क्यों  परेशान हो रहा ।
बढ़ तू अपनी मौज में
गम न कर किसी ने कहा ।
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ये प्रवंचना छोड़ दे ।
सद्भावना कर केवल
कटीले  पंथ मोड़  दे ।
             ~  रामनाथ साहू  ” ननकी “
                          मुरलीडीह

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