नवजीवन पर कविता

बरवै छंद, चार चरण
मात्रिक अर्धसम छंद
विषम चरण12 मात्रा
सम चरण ,7 मात्रा।

नवजीवन पर कविता

विविध रंग सज ऊषा, कर शृंगार।
करती नव जीवन का ,शुभ संचार।
उदित दिनमणि तरु ओट, बिहँसी किरन ।
झूम करती चढ विटप, साख नर्तन।

हुआ खग कलरव लगी, नीड़न भीर।
जनु बहुत दिन से मिले ,होय अधीर।
क्षुधा वश हुए व्याकुल, शिशुन निहार।
उड़ चले नील नभ में ,पंख पसार।

खिल गये उपवन सुमन,सुरभि बहार।
गूँजती  लोलुप मधुप, की गुंजार।
तरुबेल पात हिम कण , शोभा रजत।
हर्षित मन सतरंगी , तितली लखत।

मंगलाचरण घर- घर, खुलते द्वार।
देवालय शंख वाद्य,ध्वनि झंकार।
निज -निज कर्म रत हुआ , चल संसार।
प्रात हुआ नवजीवन , सृष्टि प्रसार।

पुष्पा शर्मा “कुसुम”

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