प्रेम पर कविता

प्रेम पर कविता

प्रेमी युगल
प्रेमी युगल

प्रेम बडा ही,पावन जग में,
इसके सम, कोई ना दूजा।
प्रेमअलौकिक,और समर्पण,
प्रेम धर्म,यही प्रेम पूजा।।
????
प्रेम शक्ति है,प्रेम भक्ति है,
कोमल सा,अहसास यही है।
प्रेम साधना, प्रेम तपस्या,
ईश्वर सम, विश्वास यही है।।
????
निर्मल निर्झर, प्रेम प्रवाह,
सदियों से,ये छलक रहा है।
अनात्म से ही,आत्म का योग,
समष्टि ही,प्रेम बन रहा है।।
????
प्रेम निस्सीम,अरुपावन है,
जीवन का,अहसासअनोखा।
प्रेम विस्तार,नही संकीर्ण,
बिना प्रेम, जीवन है धोखा।।
????
प्रेम निस्वार्थ, प्रेम वरदान,
यथार्थ है,जीवन की आशा।
प्रेम सनातन,शुद्ध भाव है,
प्रेम दया, प्रेम प्रत्याशा।।
????
ब्रह्म सा सत्य,नही वासना,
आत्मा से,आत्मा का नाता।
निश्छलता ही,प्रेमभाव है,
निर्विकार,सुहृदय ही पाता।।
????
प्रेम उन्मुक्त,नही स्वच्छंद,
बंधा है,दिल गहराई से।
लेना न कभी,केवल देना,
प्रेम यही,ना तनहाई से।।
????
अंधकार का,करता विनाश,
रोशन यह,मन को करताहै।
स्वाभाविक है, ना कृत्रिमता,
इसमें ना, आग्रह होता है।।
????
अहम बोध से,ऊपर उठना,
समग्रता,यह जीवन का है।
प्रेम सुवासित,करता जीवन,
ज्योतिर्मय,पथ यह सबका है।।
????
जुबां खामोश,हो जाती है,
नज़रों से, प्रेम बयां होता।
सहज हृदय की,यही प्रेरणा,
ना कोई,कभी गिला होता।।

??????????

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *