Author: कविता बहार

  • 7 अप्रैल विश्व स्वास्थ्य दिवस पर कविता

    7 अप्रैल विश्व स्वास्थ्य दिवस पर कविता

    पहला सुख निरोगी काया।
    हमारे पूर्वजो ने भी बताया।

    अच्छी लागे ना मोह माया,
    अगर निरोगी ना हो काया।

    निरोगी जीवन का आधार।
    सबसे पहले हमारा आहार।

    रसना को जिसमें रस आये ,
    तन को वो रास न भी आये।

    नमक, चीनी और मैदा ।
    यह तो है रोगों से सौदा।

    तला भूना कम ही खाओ,
    सादे खाने से भूख मिटाओ ।

    रंग-बिरंगी खाने की थाली,
    अच्छी सेहत की है ताली।

    खूब चबाकर खाओ दाँत से,
    वरना भारी पड़ेगा आँत पे।

    डाइटिंग से तुम करोगे फाका,
    स्वास्थ्य धन पर पड़ेगा डाका।

    नशे से खुद को रखो दूर,
    जीवन रहे स्वस्थ भरपूर।

    करो योग और व्यायाम,
    साथ में थोड़ा प्रणायाम।

    कदम रोजाना चलो हजार,
    स्वस्थ जीवन के मूलाधार।

    रोगमुक्त हो जग ये सारा,
    निरामय हो जीवन हमारा॥


    ज्योति अग्रवाला

  • सामाजिक क्रांति के मसीहा – कांशीराम

    प्रस्तुत हिंदी कविता सामाजिक क्रांति के मसीहा काशीराम कवि डिजेंद्र कुर्रे कोहिनूर द्वारा रचित है जहां पर कवि ने कांशीराम जी के जीवन परिचय को काव्य का रूप दिया हुआ है।

    सामाजिक क्रांति के मसीहा - कांशीराम
    महान व्यक्तित्व पर हिन्दी कविता

    सामाजिक क्रांति के मसीहा – कांशीराम

    गिरे पड़े पिछड़ों कुचलों को,अपने गले लगाए थे।
    मानवता का धर्म जगाने,जो इस जग में आए थे।

    सन उन्नीस सौ चौंतीस का, पन्द्रह मार्च रहा शुभदिन।
    था पंजाबी प्रान्त जहाँ पर,जन्म खुशी फैली छिन छिन।
    हरिसिंह और बिशन कौर का,घर उस दिन सुखधाम हुआ।
    जन्म लिया तेजस्वी बालक,कांशी जिसका नाम हुआ।
    बचपन से ही प्रखर बुद्धि के,कांशी जी उननायक थे।
    बहुजन समाज मानव दल के,धीर वीर जन नायक थे।
    राजनीति के पथ में जिसने,अतिशय नाम कमाये थे।
    मानवता का धर्म जगाने,जो इस जग में आए थे।

    प्रेम स्नेह आशीष जिन्होंने,जन जन से निर्बाध लिया।
    सिख धर्म तो था उस पर भी,बौद्ध धर्म भी साध लिया।
    जीवन के स्वर्णिम पल में जो,वैज्ञानिक का कर्म किया।
    लेकिन जग का दुख देखा तो,जनसेवा निज धर्म किया।
    जाने वह इस लक्ष्य बिंदु तक,कितने धक्के खाए थे।
    मानवता का धर्म जगाने,जो इस जग में आए थे।

    जांजगीर चाँपा को जिसने,कर्म क्षेत्र अपना माना।
    तब जन जन ने अपने प्यारे,जन नायक को पहचाना।
    जीवन भर निस्वार्थ भाव से,जनसेवा में लगे रहे।
    शुभता शुचिता समता खातिर,रात्रि दिवस तक जगे रहे।
    कोहिनूर के कौशल का भी ,सपने यही जगाए थे।
    मानवता का धर्म जगाने,जो इस जग में आए थे।


    डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”

  • अभिमान पर दोहे

    अभिमान पर दोहे

    प्रस्तुत हिंदी कविता ” अभिमान ” कवयित्री मनोरमा चंद्रा'रमा‘ के द्वारा दोहा — छंद में रची गई है। इस कविता में कवयित्री ने माया , धन वैभव की निस्सारता, जाति धर्म भेदभाव पर भी बात रखी है।

    अभिमान पर दोहे

    मन में निश्छलता रहे, छोड़ चलें अभिमान।
    श्रेष्ठ जीत के भ्रम पड़े, खोना मत पहचान।।

    माया है अति व्यापनी, क्षणभंगुर संसार।
    रहें दूर अभिमान से, हो जीवन उजियार।।

    दंभ करे इंसान तो, कहे घमंडी लोग।
    ऐसे तुम बनना नहीं, एक बड़ा यह रोग।।

    जग में कुछ लाया नहीं, जता नहीं अधिकार।
    गर्व भावना से परे, सभ्य बनो तुम नार।।

    घर खाली अभिमान से, कुपित करे इंसान।
    द्वेष रखें मन में नहीं, घातक बड़े गुमान।।

    नित्य बचें अभिमान से, धैर्य धरें अति नेक।
    अहंकार में जो पड़े, खोता सदा विवेक।।

    अभिमानी को देखकर, मुँह लेना नित मोड़।
    संगत में पड़ना नहीं, उससे नाता तोड़।।

    धन-वैभव में पड़ सदा, करना नहीं घमंड।
    समय साथ नित जाग लें, मिलती खुशी प्रचंड।।

    सब तन इष्ट प्रकाश सम, फिर कैसा अभिमान?
    जाति-धर्म सब भेद तज, जन-जन एक सुजान।।

    बनकर प्रबुद्ध चल सदा, रहें सदा संज्ञान।
    कहे रमा ये सर्वदा, त्याग व्यर्थ अभिमान।।

    *~ डॉ. मनोरमा चन्द्रा 'रमा'* *रायपुर (छ.ग.)*

  • राम कथा के हाइकु

    राम कथा के हाइकु

    रामकथा को आप अपनी विभिन्न कहानियों लेखों और कविताओं के माध्यम से जाना ही होगा । आज रामकथा को हाइकु के माध्यम से जानें, जिसे लिखा है रमेश कुमार सोनीजी ने। वैसे बता दें, हाइकु एक जापानी काव्य विधा है ।

    राम कथा के हाइकु


    1
    जटायु मन
    सीता लाज की रक्षा
    मौत से लड़ा।

    2
    राम का स्पर्श
    शीला, नारी हो गयी
    कलंक धुला।

    3
    शबरी-भक्ति
    जूठे बेर खिलाती
    राम हर्षाते।

    4
    स्वर्ण हिरण
    माया को माया छले
    अद्भुत लीला।

    5
    सुषेण फर्ज़
    शक्ति बाण का मर्ज़
    शत्रु भी मित्र।

    6
    समुद्र ऐंठा
    राम क्रोध से डरा
    राह दिखाया।

    7
    पत्थर तैरे
    गिलहरी भी खुश
    नाम महिमा।

    8
    कैकेयी वार
    बैरी रावण-वध
    राम के काँधे।

    9
    खड़ाऊ पूजे
    भरत धन्य भ्राता
    मिसाल जिंदा।

    10
    शर्त-केंवट
    राम पार उतारे
    नेंग बदले।

    11
    रावण-बाली
    स्त्री हरण की सजा
    राम का न्याय।
    ……….
    रमेश कुमार सोनी
    रायपुर, छत्तीसगढ़,

  • भोर का तारा एक आशावादी कविता

    भोर का तारा एक आशावादी कविता

    भोर का तारा पद्ममुख पंडा के द्वारा रचित आशावादी कविता है जिसमें उन्होंने प्रकृति का बेहद सुंदर ढंग से वर्णन किया है। साथ में यह भी बताया है कि किस तरह से रात्रि के बाद दिवस हो रहा है अभिप्राय दुख के बाद सुख का आगमन हो रहा है।

    भोर का तारा. एक आशावादी कविता

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    निशा जा चुकी, अपने घर पर, फैल रहा हैै अब उजियारा।
    गूंज उठा संगीत, फिजां में, मधुर मनोहर कितना प्यारा।
    पंछी कलरव करते, उड़ते, चहक रहे आपस में
    मिलकर।
    अपना अपना सुख दुःख कहकर, भूल गए हैं
    दुःख वे सारा।
    निशा जा चुकी, अपने घर पर, फैल रहा है अब उजियारा।।
    निर्मल मंदाकिनी, प्रवाहित होती है , कल कल
    ध्वनियों पर।
    ठंडी ठंडी हवा बह रही, तन ढकने का करे इशारा।
    बत्तख घर से निकल रहे हैं, पंक्तिबद्ध होकर
    बतियाते।
    उनको बहुत पसंद मिले जो, नन्हीं मछली का
    हो चारा।
    लोग बाग , चहलकदमी के लिए, घरों से निकल
    पड़े हैं,
    आसमान पर दमक रहा है, सबको देख भोर
    का तारा।।
    निशा जा चुकी अपने घर पर, फैल रहा है अब उजियारा।।

    पद्म मुख पंडा,
    ग्राम महा पल्ली डाकघर लोइंग
    जनपद रायगढ़ छ ग 496001