वीरों का जमी,रजवाड़ों का है यह घर, उंचे-लंबे महल है,आकर्षित करे सरोवर। राजपूतों और भीलों का,है ये सुंदर धरती, हिन्द की संस्कृति,देखने को यह पुकारती। जन्म लिए वीर योद्धा,और वीरांगना-महान, है अदम्य अनोखा,राजाओं का राजस्थान।
अरावली की सुंदरता,बखान करती है बयार, कुछ सूप्त नदियाँ,सरोवर भी है यहां अपार। थार मरुस्थल में है रेत,छोटे-बड़े बरखान, हे अदम्य अनोखा,राजाओं का राजस्थान।
जोधपुर,जयपुर,जैसलमेर,बीकानेर करे जतन, 30 मार्च 1949 को राजस्थान का हुआ गठन। ‘अजमेर शरीफ’ राजस्थान का है हृदय स्थल, ‘पुष्कर’ करे हर-पल हिंदू-संस्कृति का पहल। हवामहल,गुलाबी शहर,का करूँ में बखान, है अदम्य अनोखा,राजाओं का राजस्थान।
मरूस्थल में ऊंट की सवारी है,सबसे प्यारी, राष्ट्रीय पक्षी मोर की सुंदरता है,सबसे न्यारी।
‘श्री कृष्ण जी’ का यहां नाम है ‘सांवलिया सेठ’ भक्त करे भक्ति यहां,नित करें श्रद्धा सुमन भेंट। वीरों की भूमि का,हर-पल करूं गुणगान, है अदम्य अनोखा,राजाओं का राजस्थान।
विदेशी सैलानियों का हर-पल होता है जमघट, अभयारण्य-पुरातात्विक स्थल और है पनघट। कहता है ‘अकिल’ एक बार घूमिए राजस्थान, बेजोड़ कला,अद्भुत स्थल,का यहां है उत्थान। सुंदरता के कारण खाश है इसकी पहचान, है अदम्य अनोखा,राजाओं का राजस्थान।
राजस्थान दिवस कविता : प्रत्येक वर्ष 30 मार्च को हम राजस्थान की अमर गाथा का अपनी सुनहरी यादों में समरण कर इसे राजस्थान दिवस के रूप में मानते है।
देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की परम्परा आज भी राजस्थान में कायम है। 30 मार्च, 1949 को जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर वृहत्तर राजस्थान संघ बना था। इसी तिथि को राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है।
ढूढाड़ी-राजस्थानी भाषा में रचित १७ कुण्डलिया छंद यहाँ अर्पित हैं यह रचना जिसका शीर्षक है- बाताँ राजस्थान री…….
१७ बाताँ राजस्थान री, और लिखे इण हाल। जैड़ी उपजी सो लिखी, शर्मा बाबू लाल। शर्मा बाबू लाल, जिला दौसा मैं रहवै। सिकन्दरो छै गाँव, छंद कुण्डलिया कहवै। राजस्थानी मान, विदेशी पंछी आता। ढूँढाड़ी सम्मान, कथी मायड़ री बाताँ।
जूझ रहे जीने के खातिर, पल पल की आहट सुनकर, घोर यंत्रणा नित्य झेलते, मृत्यु देवता की धुन पर। सुख हो स्वप्न, हंसी पागलपन, और सड़क पर जिसका घर, किस हेतु वह भय पाले, जब मृत्यु बोध हो जीवन भर? जो कंगाल वही भिक्षुक हो, ऐसा नियम नहीं कोई, जो धनवान, वही दाता हो, होता नहीं, सही कोई। है पाखंड, भरा समाज में, किसको कहें सत्य का ज्ञान। चहुं ओर है व्याप्त विषमता, कोई दीन, कोई धनवान। है विकास जर्जर हालत में, जनता बने आत्म निर्भर, बही बयार ऐसी कुछ अब तो, फूंको बिगुल, व्यवस्था पर। जीने का अधिकार सभी को, नहीं रहा है, कोई अमर, शासन राशन देता सबको, कब तक हों, सब आत्म निर्भर?
पद्ममुख पंडा ग्राम महा पल्ली पोस्ट लोइंग जिला रायगढ़ छ ग