Author: कविता बहार

  • क्या यही है “आस्था – शशि मित्तल “अमर”

    आस्था

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    धूम मची है,
    जय माता की…
    मंदिरों, पंडालों में,
    लगी है भीड़ भक्तों की..

    क्या यही है “आस्था “?

    मन सशंकित है मेरा,

    वृद्धाश्रम में दिखती माताएँ…
    जो जनती हैं एक “वजूद”
    रचती हैं सृष्टि…
    थक जाती हैं तब,
    निकाल दी जाती हैं,
    एक अनंत अंधकार की ओर…

    कन्या भोजन,
    भंडारे का आयोजन!!
    पूजी जाती कन्याएं…
    मन दुखी है मेरा…

    निरभया कांड, कठुवा,
    देवरिया, मुजफ्फरपुर….
    जहाँ रौंदी जाती कन्याएँ..
    कुछ छपी, कुछ छुपी,,
    रह जाती घटनाएँ!!

    क्या ये कन्या वो नहीं?
    जो पूजी जाती हैं????

    आज डांवाडोल है
    ” आस्था”

    शशि मित्तल “अमर”
    बतौली,सरगुजा (छत्तीसगढ़)

  • चैत्र मास संवत्सर / परमानंददास

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    चैत्र मास संवत्सर परिवा बरस प्रवेस भयो है आज।
    कुंज महल बैठे पिय प्यारी लालन पहरे नौतन साज॥१॥
    आपुही कुसुम हार गुहि लीने क्रीडा करत लाल मन भावत।
    बीरी देत दास परमानंद हरखि निरखि जस गावत॥२॥

  • राजाओं का राजस्थान – अकिल खान

    राजाओं का राजस्थान

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह
    राजाओं का राजस्थान - अकिल खान
    राजस्थान दिवस कविता

    वीरों का जमी,रजवाड़ों का है यह घर,
    उंचे-लंबे महल है,आकर्षित करे सरोवर।
    राजपूतों और भीलों का,है ये सुंदर धरती,
    हिन्द की संस्कृति,देखने को यह पुकारती।
    जन्म लिए वीर योद्धा,और वीरांगना-महान,
    है अदम्य अनोखा,राजाओं का राजस्थान।

    अरावली की सुंदरता,बखान करती है बयार,
    कुछ सूप्त नदियाँ,सरोवर भी है यहां अपार।
    थार मरुस्थल में है रेत,छोटे-बड़े बरखान,
    हे अदम्य अनोखा,राजाओं का राजस्थान।

    जोधपुर,जयपुर,जैसलमेर,बीकानेर करे जतन,
    30 मार्च 1949 को राजस्थान का हुआ गठन।
    ‘अजमेर शरीफ’ राजस्थान का है हृदय स्थल,
    ‘पुष्कर’ करे हर-पल हिंदू-संस्कृति का पहल।
    हवामहल,गुलाबी शहर,का करूँ में बखान,
    है अदम्य अनोखा,राजाओं का राजस्थान।

    मरूस्थल में ऊंट की सवारी है,सबसे प्यारी,
    राष्ट्रीय पक्षी मोर की सुंदरता है,सबसे न्यारी।

    ‘श्री कृष्ण जी’ का यहां नाम है ‘सांवलिया सेठ’
    भक्त करे भक्ति यहां,नित करें श्रद्धा सुमन भेंट।
    वीरों की भूमि का,हर-पल करूं गुणगान,
    है अदम्य अनोखा,राजाओं का राजस्थान।

    विदेशी सैलानियों का हर-पल होता है जमघट,
    अभयारण्य-पुरातात्विक स्थल और है पनघट।
    कहता है ‘अकिल’ एक बार घूमिए राजस्थान,
    बेजोड़ कला,अद्भुत स्थल,का यहां है उत्थान।
    सुंदरता के कारण खाश है इसकी पहचान,
    है अदम्य अनोखा,राजाओं का राजस्थान।

    – अकिल खान,
    सदस्य,प्रचारक “कविता बहार” रायगढ़ जिला-रायगढ़ (छ.ग.)

  • राजस्थान दिवस कविता – बाताँ राजस्थान री

    राजस्थान दिवस कविता : प्रत्येक वर्ष 30 मार्च को हम राजस्थान की अमर गाथा का अपनी सुनहरी यादों में समरण कर इसे राजस्थान दिवस के रूप में मानते है।

    देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की परम्परा आज भी राजस्थान में कायम है। 30 मार्च, 1949 को जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर वृहत्तर राजस्थान संघ बना था। इसी तिथि को राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है।

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    ढूढाड़ी-राजस्थानी भाषा में रचित १७ कुण्डलिया छंद यहाँ अर्पित हैं यह रचना जिसका शीर्षक है- बाताँ राजस्थान री…….



    धोरां री धरती अठै, चांदी सो असमान।
    पाग अंगरखा केशरी, वीराँ रो अरमान।
    वीराँ रो अरमान, ऊँट री शान सवारी।
    रेगिस्तान जहाज, ऊँट अब पशु सरकारी।
    कहै विज्ञ कविराय, पर्यटक आवै गोरां।
    देवां रै मन चाव, जनमताँ धरती धोरां।
    .


    खाटो सोगर सांगरी ,कैर काचरी साग।
    छाछ राबड़ी खीचड़ी, मरुधर मिनखाँ भाग।
    मरुधर मिनखाँ भाग, चूरमा सागै बाटी।
    दाळ खीर गुड़ खाँड, चाय चालै परिपाटी।
    कहै विज्ञ कविराय, नामची सँगमर भाटो।
    आन बान ईमान, मान रो इमरत खाटो।


    धरती धोराँ री अठै , रणवीराँ री खान।
    इतिहासी गाथा घणी , रजवाड़ी सम्मान।
    रजवाड़ी सम्मान, किला महलाँ री बाताँ।
    जौहर अर बलिदान, रेत रा टीबा गाता।
    कहे विज्ञ कविराय, सुनहळी रेत पसरती।
    आडावळ री आड़, ढोकताँ मगराँ धरती।
    .


    निपजै मक्का बाजरी, सरसों गेहूँ धान।
    भेड़ ऊँट गउ बाकरी, करषाँ रा अरमान।
    करषाँ रा अरमान, खेजड़ी ज्यूँ अमराई।
    सिर साँटै भी रूँख, बचाया इमरत बाई।
    कहै विज्ञ कविराय, माघ सी वाणी उपजै।
    मारवाड़ रा धीर, वीर मरुधर मैं निपजै।
    .


    मेवाड़ी अरमान री, मारवाड़ री आन।
    मरुधर माटी वीरताँ, कितराँ कराँ बखान।
    कितराँ कराँ बखान, धरा या सदा सपूती।
    रणवीराँ री धाक, बजी दिल्ली तक तूँती।
    कहे विज्ञ कविराय, बात पन्ना री जाड़ी।
    चेतक राणा मान, नमन मगराँ मेवाड़ी।


    देवा रा दर देवरा, लोक देवता थान।
    खनिज अजायब धारती, धरती राजस्थान।
    धरती राजस्थान, फिरंगी मान्यो लोहा।
    घटी मुगलिया शान, बिहारी सतसइ दोहा।
    कहै विज्ञ कविराय, कृष्ण मीरा री सेवा।
    मरुधर जनमै आय, लालसा करताँ देवा।


    मरुधर में नित नीपजै, मायड़ जाया पूत।
    बरदायी सा चंद कवि, पृथ्वीराज सपूत।
    पृथ्वीराज सपूत, हठी हम्मीर गजब का।
    दुर्गादास सुधीर, निभाये धर्म अजब का।
    कहे विज्ञ कविराय, ईश ही होवै हळथर।
    राणा सांगा वीर , जुझारू जावै मरुधर।


    हजरत री दरगाह मैं, छाई खूब सुवास।
    अजयमेरु गढ बीठळी, पुष्कर ब्रह्मा वास।
    पुष्कर ब्रह्मा वास, बैल नागौरी गायाँ।
    जैपर शहर गुलाब, गजब ढूँढा री माया।
    कहै विज्ञ कविराय, भरतपुर नामी हसरत।
    लोहागढ़ दे मात, फिरंगी मुगलइ हजरत।


    जिद्दी हाड़ौती बड़ी, वाँगड़ बाँसै मेह।
    बीकाणै जोधावणै , ढोळा मारू नेह।
    ढोळा मारू नेह, कथा चालै ब्रज ताँणी।
    मेवाती सरनाम, लटक आवै हरियाणी।
    कहे विज्ञ कविराय, संत भी पावै सिद्धी।
    आन बान की बात, मिनख हो जावै जिद्दी।
    . ?

    १०
    बप्पा रावळ री जमीं, चौहानी वै ठाट।
    राठौड़ी ऐंठाँ घणी, शेखावत, तँवराट।
    शेखावत, तँवराट, नरूका और कछावा।
    जाट राज परिवार, दिये दिल्ली तक धावा।
    गुर्जर मीणा वैश्य, ब्राहमन, माळी ठप्पा।
    सात समाजी नेह, निभाया दादा बप्पा।

    ११
    बागा, साफा पाग री, ऊँची राखण रीत।
    नेह प्रीत मनुहार मैं, भळी निभावण मीत।
    भळी निभावण मीत, मूँछ री बाँक गुमानी।
    सादा जीवन वेश, बोल बोलै मर्दानी।
    कहे विज्ञ कविराय, नमन संतन् रै पागाँ।
    अलबेळा नर नारि, मोर कोयळड़ी बागां।
    .

    १२
    किल्ला गर्व चितोड़ रा, कुंभळगढ़ सनमान।
    लोहा गढ़ जाळोर गढ़, तारागढ़ महरान।
    तारा गढ महरान, किला छै घणाइ ळूँठा।
    हवा महळ सा महळ, डीग रा महळ अनूठा।
    कहे विज्ञ कविराय, फूटरा गाँवा जिल्ला।
    मंदिर झीलाँ महळ, हवेळी माणस किल्ला।
    .

    १३
    आबू दिळवाड़ै चढै, ऊपर मंदिर चीळ।
    पचपदरै डिडवाणियै, खारी साँभर झीळ।
    खारी साँभर झीळ, उदयपुर झीळाँ नगरी।
    बैराठी अवशेष, सभ्यता काळी बँग री।
    कहे विज्ञ कविराय, करै दुश्मन नै काबू।
    रजपूती उत्पत्ति, चार पर्वत यग आबू।

    १४
    बात कहानी सभ्यता, देख नोह बागोर।
    पुष्कर संग अरावळी, दौसा गढ़ राजौर।
    दौसा गढ़ राजौर, ओसियाँ आभानेरी।
    पाटण, भाण्डारेज, विराठी कृष्णा चेरी।
    कहै विज्ञ कविराय, भानगढ़ रात रुहाणी।
    सरस्वती मरु रेत, सिन्धु री बात कहाणी।
    .

    १५
    कोटा मेळा लोहगढ़ , मेळा और अनेक।
    लक्खी रामा पीर सा, भिन्न जिलै सब एक।
    भिन्न जिलै सब एक, घणा चरवाहा जंगळ।
    हेला ख्याल सुगीत, प्रीत रा सुड्डा दंगळ।
    कहै विज्ञ कविराय, पुजै बालाजी घोटा।
    शिक्षा क्षेत्र अनूप, नामची पत्थर कोटा।

    १६
    नदियाँ बरसाती घणी, कम ही बरसै मेह।
    चम्बळ, माही सोम रो, बहवै सरस सनेह।
    बहवै सरस सनेह, घणैई बांध बणाया।
    टाँका नाड़ी खोद , बावड़ी कूप खुदाया।
    कहे विज्ञ कविराय, बीत गी जीवट सदियाँ।
    नहर बणै वरदान, जुड़ै जब सावट नदियाँ।

    १७
    बाताँ राजस्थान री, और लिखे इण हाल।
    जैड़ी उपजी सो लिखी, शर्मा बाबू लाल।
    शर्मा बाबू लाल, जिला दौसा मैं रहवै।
    सिकन्दरो छै गाँव, छंद कुण्डलिया कहवै।
    राजस्थानी मान, विदेशी पंछी आता।
    ढूँढाड़ी सम्मान, कथी मायड़ री बाताँ।

    ✍✍©
    बाबू लाल शर्मा विज्ञ
    बौहरा -भवन
    वरिष्ठ अध्यापक
    सिकंदरा, ३०३३२६
    दौसा,राजस्थान ९७८२९२४४७९

  • सामाजिक विषमता पर कविता- पद्म मुख पंडा

    सामाजिक विषमता पर कविता- बही बयार कुछ ऐसी

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    जूझ रहे जीने के खातिर,
    पल पल की आहट सुनकर,
    घोर यंत्रणा नित्य झेलते,
    मृत्यु देवता की धुन पर।
    सुख हो स्वप्न, हंसी पागलपन,
    और सड़क पर जिसका घर,
    किस हेतु वह भय पाले,
    जब मृत्यु बोध हो जीवन भर?
    जो कंगाल वही भिक्षुक हो,
    ऐसा नियम नहीं कोई,
    जो धनवान, वही दाता हो,
    होता नहीं, सही कोई।
    है पाखंड, भरा समाज में,
    किसको कहें सत्य का ज्ञान।
    चहुं ओर है व्याप्त विषमता,
    कोई दीन, कोई धनवान।
    है विकास जर्जर हालत में,
    जनता बने आत्म निर्भर,
    बही बयार ऐसी कुछ अब तो,
    फूंको बिगुल, व्यवस्था पर।
    जीने का अधिकार सभी को,
    नहीं रहा है, कोई अमर,
    शासन राशन देता सबको,
    कब तक हों, सब आत्म निर्भर?

    पद्ममुख पंडा
    ग्राम महा पल्ली
    पोस्ट लोइंग
    जिला रायगढ़ छ ग