Author: कविता बहार

  • महानदी पर कविता – केवरा यदु

    मोर महानदी के पानी मा – केवरा यदु

    महानदी पर कविता - केवरा यदु

    चाँदी कस चमके चम चम जिंहा चंदा नाचे छम छम ।
    सोंढू पैरी के संगम भोले के ड़मरु  ड़म ड़म ।
    मोर महानदी के पानी  मा।

    महानदी के बीच में बइठे शिव भोला भगवान ।
    सरग ले देवता धामी आके करथें प्रभू गुणगान ।
    माता सीता बनाइस शिव भोले ला मनाइस मोर महानदी के पानी मा।
    चाँदी कस चमके चम चम–

    ईंहा बिराजे राजीवलोचन राजिम बने प्रयाग ।
    चतुर्भूजी रूप मन मोहे कृष्ण कहंव या राम।
    मँय पिड़िया भोग लगाथंव चरण ला रोज पखारथंव मोर महानदी के पानी मा ।
    चाँदी कस चमके चम चम —

    कुलेश्वर चंपेश्वर पटेश्वर बम्हनेश्वर पटेश्वर धाम।
    महानदी के तीर बसे  हे पंचकोशी हे नाम।
    सबो देवता ला मनाथें तन मन फरियाथें, मोर महानदी के पानी मा।
    चाँदी कस चमके चम चम —

    पवन दिवान के कर्म स्थली महानदी के तीर।
    ज्ञानी ध्यानी  संत कवि  जी रहिन कलम  वीर ।
    गूँजे कविता कल्याणी अमर हे उंकर कहानी,मोर महानदी के पानी मा ।
    चाँदी कस चमके चम चम –

    माघी पुन्नी में मेला भराथे साधु संत सब आथें।
    लोमश श्रृषि आश्रम मा आके  धुनी रमाथें।
    बम बम बम बमभोला गाथें अऊ डुबकी लगाथें,मोर महानदी के पानी मा ।
    चाँदी कस चमके चम चम —

    दुरिहा दुरिहा ले यात्री आथें देवता दर्शन पाथें।
    गंगा आरती मा रोजे आके जीवन सफल बनाथें ।
    भजन कीर्तन गाके मनौती मनाथें, मोर महानदी के पानी मा।।
    चाँदी कस चमके चम चम –

    चाँदी कस चमके चम चम जिंहा चँद नाचे छम छम ।
    सोंढू पैरी के संगम भोले के ड़मरु ड़म ड़म ।
    मोर महानदी के पानी मा ।
    मोर महानदी के पानी मा ।

    केवरा यदु “मीरा “
    राजिम (छ॰ग)

  • संतोषी महंत की नवगीत – संतोषी महंत

    संतोषी महंत की नवगीत

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    हंसकर जीवन​-अथ लिख दें
    या रोकर अंजाम लिखें।
    जीवन  की  पीड़ाओं  के
    औ कितने आयाम लिखें।।

    धाराओं ने सदा संभाला
    तटबंधों ने रार किया।
    बचकर कांटों से निकले तो
    फूलों ने ही वार किया।।
    बंटवारा लिख दें किस्मत का
    या खुद का इल्जाम लिखें।।
    जीवन की पीड़ाओं के…….

    चौसर की छाती पर खुशियों
    के जब-जब भी पांव परे।
    कृष्णा कहलाने वालों ने
    संग शकुनि के दांव धरे।।
    कपटी को क्यों मीत लिखें
    औ दुष्टों को राम लिखें।।
    जीवन की पीड़ाओं के……..

    बीत्ते भर के इस जीवन की
    कितनी अटपट परिभाषा।
    स्वप्नों की अनगिन ढेरी औ
    तरु सी ऊंची अभिलाषा।।
    तस्वीरें धुंधली धुंधली हैं
    पर उसको अभिराम लिखें।।
    जीवन की पीड़ाओं के………

    चाप खींचकर आसानी से
    कितने सारे कोण बने।
    बाधाओं से जूझ-जूझ कर
    हम अर्जुन से द्रोण बने।।
    राहों के  अड़चन, अनबन को
    हां कुछ तो पैगाम लिखें।।
    जीवन की पीड़ाओं के…..

    संतोषी महंत “श्रद्धा”

  • एकांत/हाइकु/निमाई प्रधान’क्षितिज’

    एकांत/हाइकु/निमाई प्रधान’क्षितिज’

    एकांत/हाइकु/निमाई प्रधान’क्षितिज’

    हाइकु
    kavitabahar logo

    [१]
    मेरा एकांत
    सहचर-सर्जक
    उर्वर प्रांत!

    [२]
    दूर दिनांत
    तरु-तल-पसरा
    मृदु एकांत!

    [३]
    वो एकांतघ्न
    वातायन-भ्रमर
    न रहे शांत !

    [४]
    दिव्य-उजास
    शतदल कमल
    एकांतवास !

    [५]
    एकांत सखा
    जागृत कुंडलिनी
    प्रसृत विभा !

    *-@निमाई प्रधान’क्षितिज’*
          रायगढ़,छत्तीसगढ़
      मो.नं.7804048925

  • छत्तीसगढ़ी गीत – तेरस कैवर्त्य

    छत्तीसगढ़ी गीत – झिन रोबे दाई मोर

    छत्तीसगाढ़ी रचना
    छत्तीसगाढ़ी रचना

    झिन रोबे दाई मोर झिन रोबे बाई मोर।
    रात दिन गुनत तंय ह झिन रोबे न ss अकेला ही जाहूँ , कोनो नइ जावय संग म।


    झुलत रही मुहरन , तोर नजरे नजर म।
    भुइंया म आके , झिन जीयव घमंड म।
    काँटा खूँटी झिन गड़व , जिन्गी डहर म।
    राख हो जाही ये माटी म काया – 2
    पिरीत के बिरवां ल बोंबें न ss
    झिन रोबे दाई मोर , झिन …… लइका ल बने तँय , पढ़ा अउ लिखा के।


    ओमन के जिन्गी ल , उज्जर बनाबे।
    नान्हे बड़कू रिश्ता , बड़ मान सीखा के।
    सुग्घर सिरजा के , भल मनखे बनाबे।
    हिम्मत करबे आँसू ल पोछ के – 2
    गरु के गठरी ल बोहले न ss
    झिन रोबे दाई मोर , झिन …… छत्तीसगढ़ माटी के , मँय तेरस हव बेटा।

    धनहा डोली हय , मोर सोन के डोला।
    तहूँ बाप बनबे मोर , दुलरवा तँय बेटा।
    लबारी मंदारी छोड़ , बता बे सबो ला।
    आवा गमन दुनिया के रिवाज हे -2
    मोला खांध म तँय ढ़ोबे न ss
    झिन रोबे दाई मोर , झिन ……. झिन रोबे भाई मोर झिन रोबे बेटा मोर।
    झिन रोबे बहिनी मोर झिन रोबे दीदी मोर।
    रात दिन गुनत तँय ह झिन रोबे न ss – 2

    रचना – तेरस कैवर्त्य (आँसू)
      सोनाडुला , (बिलाईगढ़)
    जिला – बलौदाबाजार (छ. ग.)

  • प्यार तुम ही से करता हूँ – कृष्ण सैनी

    प्यार तुम ही से करता हूँ – कृष्ण सैनी

    कृष्ण
    कृष्ण

    विरह को पीकर में,
    आज इक इंसाफ करता हु।
    प्यार तुम ही से करता था,
    प्यार तुम ही से करता हु।


    सोचा इत्तला कर दूं,
    अब भी तुझपे  ही मरता हु।
    प्यार तुम ही से करता था,
    प्यार तुम ही से करता हूँ


    मेरी कोशिश थी बस इतनी,
    कभी बदनाम ना हो तु।
    की थी रब से दुआ मैंने,
    कभी नाकाम ना हो तु।
    जुदा तुझसे हुआ था तब,
    मैं आहें अब भी भरता हूँ।
    प्यार तुम ही से करता था,
    प्यार तुम ही से करता हूँ।


    मुझे इस दिल को समझाना,
    अब आसान नहीं लगता।
    तुझपर कुर्बान होना भी,
    इसे नुकसान नहीं लगता।
    कहीं पड़ जाए ना खलल,
    तेरी खुशियों में डरता हूँ।
    प्यार तुम ही से करता था,
    प्यार तुम ही से करता हूँ।


    दावेदारी नहीं रही तुझपर,
    कोई हक़ जताने की।
    ना  है  बाकी कोई बाते,
    रूठने औऱ  मनाने की।
    फैसले फासलों के कर,
    मैं घुट-घुट के मरता हूँ।
    प्यार तुम ही से करता था,
    प्यार तुम ही से करता हूँ।


    ✍कवि कृष्ण सैनी

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