Author: कविता बहार

  • मानव जीवन पर कविता – सुधा शर्मा

    मानव जीवन मिल पाता है कभी कभी – सुधा शर्मा

    पिता
    kavita bahar

    जीवन में ऐसा भी वक्त आता है कभी कभी
    कोई भीड़ में तन्हा हो जाता है कभी कभी

    सपनों के घरौंदे सारे बिखर जाते हैं
    स्मृतियों का इक महल बन जाता है कभी कभी

    कौन कहता है पीड़ाएं तोड़ती  हैं सदा
    तन्हाई में दर्द दवा बन जाता है कभी-कभी

    जिंदगी बस संघर्षों का पर्याय है साथी
    प्रेरणा बन जीवन मेंआता है कभी-कभी

    ना भूलो इंसान होकर कभी कर्म अपना
    मानव जीवन मिल पाता है कभी कभी

    सुधा शर्मा

    राजिम छत्तीसगढ़

  • जीवन पर कविता – सुधा शर्मा

    जीवन में रंग भरने दो – सुधा शर्मा

    पिता
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    कैसे हो जाता है मन 
    ऐसी क्रूरता करने को?
    अपना ही लहू बहा रहे
    जाने किस सुख वरणे को ?

    आधुनिक प्रवाह में बहे
    चाहें जीवन सुख गहे 
    वासनाओं के ज्वार में
    यूंअचेतन उमंगित रहे

    अंश कोख में आते ही
    विवश क्यों करते मरने को?

    अंश तुम्हारे शोणित का
    भावी वंशज कहलाते हम
    किस हृदय से कटवा देते ?
    होता नहीं तनिक भी गम

    कसूर क्या है बोलो हमारा
    क्यों रोक लेते जन्म धरने को?

    नहीं अधिकार हैतुम्हारा
    यूँ हमें  खतम करने का
    ईश्वर की कृति है हम
    अवसर दो जनम लेने का

    अनचाहा कभी न समझो
    हमें धरा पर उतरने दो

    बेटी हो या बेटा हम
    हैं तो तुम्हारा ही खून
    क्रूरता छोड़ो हे जनक जननी
    छाया है कैसा जुनून

    स्वप्न पालों हमारी खातिर
    जीवन में रंग भरने दो

    सुधा शर्मा
    राजिम छत्तीसगढ़

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  • तू रोना सीख – निमाई प्रधान

    तू रोना सीख – निमाई प्रधान

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    तू !
    रोना सीख ।

    अपनी कुंठाओं को
    बहा दे…
    शांति की जलधि में
    अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को
    तू खोना सीख ।
    तू ! रोना सीख ।।

    कितने तुझसे रूठे ?
    तेरी बेरुख़ी से…
    कितनों के दिल टूटे ?
    किनके भरोसे पर खरा न उतर सका तू ?
    तेरे ‘मैं’ ने किनको शर्म की धूल चटा दी?
    कौन तेरी मौजूदगी में सर न उठा सका?
    उन सबकी सम्वेदनाओं को
    निज-अश्रुओं से भिगोना सीख ।
    तू! रोना सीख ।।

    तू रोना सीख
    कि रोने से दिल कुलाचें भरता है ।
    तू रोना सीख
    कि रोने से…
    दीन-दुःखियों के प्रति ममत्व झरता है ।
    तू रोना सीख कि आजकल कोई रोता नहीं है
    तू रोना सीख कि आजकल कोई अपना नहीं है
    कुछ ऐसा कर…
    कि औरों को भी ज़िंदगी मिले
    तू सबके नाते ख़ुशियाँ बोना सीख ।
    तू रोना सीख ।।

    तू…रोना सीख…!!
    -@ निमाई प्रधान’क्षितिज’

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  • बेताज बादशाह – वन्दना शर्मा

    बेताज बादशाह – वन्दना शर्मा

    kavita
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    आज देखा मैंने ऐसा हरा भरा साम्राज्य…
    धन धान्य से भरपूर….
    सोना उगलते खेत खलियान…
    कल कल बहती नदियाँ…..


    चारों ओर शांति,सुख, समृद्धि…
    और वहीं देखा ऐसा बेताज बादशाह….
    जो अपने हरएक प्रजाजन को..
    परोस रहा था अपने हाथ से भोजन पानी..


    अपने साम्राज्य के विस्तार में..
    हर कोने की खबर है उसको..
    कौन बीमार है, किसको कितनी देखभाल की जरूरत है..

    वो बादशाह है किसान..
    जो बनाता है बादशाह को भी बादशाह..
    उसी के दम पर चलती है बादशाहत..


    किसान बिना मुकुट का बादशाह है..
    जो जमीन बिछा आसमान ओढ़कर सोता है..
    माटी के अख्खड़पन को वह अपने स्नेह से बनाता है उपजाऊ..
    उसे नहीं चाहिए छप्पनभोग..


    वह मोटा दाना खाकर ही रहता है..
    धूप और बारिश उसको सुख देती है..
    सच यही तो है भरण पोषण करने वाला.
    सही मायनों में ..
    इस विस्तृत साम्राज्य …
    और जन मन का बादशाह..

    वन्दना शर्मा
    अजमेर

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  • मुफ्त की चीज पर कविता

    मुफ्त की चीज पर कविता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    मुफ्त की चीजों से..19.03.22
    ———————————————
    हमारी आदत सी हो गई है
    कि हमें सब कुछ मुफ्त में चाहिए
    भिखारियों की तरह हम मांगते ही रहते हैं
    राशन पानी बिजली कपड़ा मकान रोजगार मोबाइल और मुफ्त का वाईफाई कनेक्शन

    मुफ्त की चीजों से
    बदलने लगे हैं हमारे खून की तासीर
    हम कमाना नहीं चाहते अमरबेल की तरह फैलना चाहते हैं

    मुफ्त की चीजों से
    घटती जा रही है श्रम की ताकत और हमारे स्वाभिमान

    मुफ्त की चीजों से
    शून्य होता जा रहा है
    विरोध में बोलने और खड़े होने का साहस

    मुफ्त की चीजों से
    हम भरते जा रहे हैं
    गहरे आत्म संतोष और निकम्मेपन से
    जो सबसे जरूरी है उनके लिए

    वह हमें कुछ भी नहीं दे रहे हैं
    वरन बस ले रहे हैं हमसे हमारी हैसियत
    छीन रहे हैं हमारा वजूद
    और हम हैं की बड़े खुश हो रहे हैं
    कि वे हमें सब कुछ मुफ्त में दे रहे हैं

    उनका मुफ्त में देना
    एक गहरा षड्यंत्र है
    हमें लगता है
    कि मुफ्त की चीजों से हमारी जिंदगी भर गई है
    मगर मुफ़्त लेने के एवज में
    हमारी असली जिंदगी हमसे छीन गई है।

    –नरेंद्र कुमार कुलमित्र
    9755852479