Author: कविता बहार

  • जलती धरती/शिव शंकर पाण्डेय

    जलती धरती/शिव शंकर पाण्डेय

    जलती धरती/शिव शंकर पाण्डेय

    JALATI DHARATI
    JALATI DHARATI


    न आग के अंगार से न सूरज के ताप से।।
    धरा जल रही है, पाखंडियों के  पाप से।।
    सृष्टि वृष्टि जल जीवन सूरज।
    नार नदी वन पर्वत सूरज।।
    सूरज आशा सूरज श्वांसा।
    सूर्य बिना सब खत्म तमाशा।
    सूर्य रश्मि से सिंचित भू हम
    जला रहे हैं   खुद  आपसे।
    धरा जल रही है पाखंडियों के पाप से।।
    सूरज ही मेरी जिन्दगी का राज है।

    सूरज हमारे सौरमंडल का ताज है
    भूमि बांट कर गगन को बांटा।
    मानवता पर मारा चांटा।।
    मरी हुई मानवता को भी
    टुकड़ों टुकड़ों में मैं काटा।
    आज मर रहे हैं हम उसी के अभिशाप से।
    धरा जल रही है पाखंडियों के पाप से।

    बम गोली बारूद बनाया
    मानव मानव पर ही चलाया
    एक दूसरे को भय देकर
    मारा काटा और भगाया
    जिसने सारी सृष्टि बनाई
    उसको भी मैंने ही बांटा है खुद अपने आप से।
    धरा जल रही है पाखंडियों के पाप से।।

    वन पर्वत नद नदी उजाड़ा
    प्राणवायु में जहर उतारा।
    होड़ मचाकर हथियारों से
    सुघर सृजन का साज बिगाड़ा।
    सृजनहार भी दुःख का अनुभव
    आज कर रहा आपसे।
    धरा जल रही है पाखंडियों के पाप से।।

    शिव शंकर पाण्डेय यूपी

  • धरती माता /डा. राजेश तिवारी

    धरती माता /डा. राजेश तिवारी

    धरती माता /डा. राजेश तिवारी

    धरती माता /डा. राजेश तिवारी

    धरती मेरी माँ है इसको स्वस्थ और स्वच्छ बनायें ।
    आओ इसकी रक्षा और सुरक्षा का दायित्व उठायें ।।
    ……………………………………………………….

    अवैध और अनैतिकता से इसका खनन जो करते ।
    सोचो इसको दिये घाव जो  कहो वो  कैसे भरते ।।
    इनको हरी भरी रखना है ये रोमावली है वृक्ष लतायें ।

    मृदा प्रदूषति न करना , यह जनता को समझा दो ।
    पन्नी , पोलीथीन आदि को अब ही आग लगा दो । ।
    गोमय खाद गौमूत्र आदि से इसे आओ उर्वरक बनाये ।

    धरती मां हम सब सपूत हैं इसका ध्यान भी धरना ।
    इसकी रक्षा और स्वाभिमान हित जीना है व मरना ।।
    मातृ भूमि को नमन करें हम सब श्रद्धा शीश झुकाये ।


    भूदेवी और श्री देवी को नमन सभी करते हैं लोग ।
    अक्षत चन्दन पुष्प दीप से अर्चन करें लगाते भोग ।।
    आओ अपनी मातृभूमि पर श्रद्धा से सुमन चढाये ।



    डा. राजेश तिवारी ‘मक्खन’
    झांसी उत्तरप्रदेश

  • जलती धरती/नीरज अग्रवाल

    जलती धरती/नीरज अग्रवाल

    जलती धरती/नीरज अग्रवाल



    पर्यावरण और वन उपवन हैं।
    जल थल जंगल हमारे जीवन हैं।
    जलती धरती बढ़ता तापमान हैं।
    मानव जीवन में आज  संकट  हैं।
    हम सभी को सहयोग जो करना हैं।
    जलती धरती तपता सूरज कहता हैं।
    वसुंधरा को हरा भरा हमको करना हैं।
    मानव जीवन में कुदरत के रंग भरने हैंं।
    आज  हम सभी को प्राकृतिक बनना हैं।
    न सोचो कल का जलती धरती कहतीं हैंं।
    बादल बरसे जलती धरती की प्यास बुझाते हैं।
    हम कदम उठाए जलती धरती को बचाना हैंं।

    नीरज अग्रवाल
    चंदौसी उ.प्र

    JALATI DHARATI
    JALATI DHARATI

    जलती धरती/नीरज अग्रवाल

    सच तो यही जिंदगी कुदरत हैं।
    जलती धरती आकाश गगन हैं।
    हम सभी की सोच समझ हैं।
    हां जलती धरती  सूरज संग हैं।
    खेल हमारे मन भावों में रहते हैं।
    जलती धरतीं मानव जीवन हैं।
    हमारे मन भावों में प्रकृति बसी हैं।
    सच और सोच हमारी अपनी हैं।
    हम सभी जलती धरती के संग हैं।
    आज कल बरसों से हम जीते हैं।
    हां सच जलती धरती रहती हैं।
    हम सब मानव समाज कहते हैं।
    कुदरत और प्रकृति और हम,
    बस जलती धरती रहती हैं।


    नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र

  • जलती धरती/नीरज अग्रवाल

    जलती धरती/नीरज अग्रवाल

    जलती धरती/नीरज अग्रवाल

    JALATI DHARATI
    JALATI DHARATI


    सच तो यही जिंदगी कुदरत हैं।
    जलती धरती आकाश गगन हैं।
    हम सभी की सोच समझ हैं।
    हां जलती धरती  सूरज संग हैं।
    खेल हमारे मन भावों में रहते हैं।
    जलती धरतीं मानव जीवन हैं।
    हमारे मन भावों में प्रकृति बसी हैं।
    सच और सोच हमारी अपनी हैं।
    हम सभी जलती धरती के संग हैं।
    आज कल बरसों से हम जीते हैं।
    हां सच जलती धरती रहती हैं।
    हम सब मानव समाज कहते हैं।
    कुदरत और प्रकृति और हम,
    बस जलती धरती रहती हैं।


    नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र

  • वृक्ष लगाएं धरती बचाये/नीलम त्यागी ‘नील’

    वृक्ष लगाएं धरती बचाये/नीलम त्यागी ‘नील’

    वृक्ष लगाएं धरती बचाये/नीलम त्यागी ‘नील’

    पर्यावरण दिवस पर कविता
    पर्यावरण दिवस पर कविता

    आओ मिलकर पेड़ लगाएं…
    इस धरा को वसुंधरा बनाये…
    एक वन हम ऐसा सजाये…
    जिससे सारे रोग कट जाएं…

    प्रदूषण को ऐसी मार लगाएं…
    आओ एक वृक्ष सभी लगाएं…
    एक एक करके सभी उपवन बनाये…
    मानव से ज्यादा हम वृक्ष लगाएं…

    इस धरा को हम सभी बचाये…
    जल और पेड़ का महत्त्व बताएं..
    जीवन अपना उपयोगी बनाएं..
    महानता वृक्षों की सभी को समझाये…

    समय रहते ही सजग हो जाएं…
    जीवन हम अपना ऐसा बनाये…
    पेड़ों से इस ज़मीं को सजाये…
    संदेश ये सारे जग में फैलाएं….

    नीलम त्यागी ‘नील’