Author: कविता बहार

  • हमसफ़र पर कविता

    हमसफ़र पर कविता

    प्यार का ओ एहसास हो,
    हमसफ़र मेरा साथ हो।
    कठिन रास्ते में निकला हूँ,
    इस सफर में तू मेरा साथ हो।

    ओ महफ़िल की रागिनी हो,
    ओ संगीत की तू वादिनी हो।
    दिल में बसे हो हमसफ़र,
    अँधेरे में तू मेरी चाँदनी हो।

    मेरी हर खुशी में तू साथ हो,
    दिल से जुड़ी तू खास हो।
    मेरे हमराही मेरे हमसफ़र,
    सदा मेरे अंतस में वास हो।

    सुख दुःख की साथी हो,
    प्रेम की लंबी कहानी हो।
    जीवन की इस डगर पर,
    हमसफ़र मेरी रानी हो।
    ~~~~~~~~~~~~~
    रचनाकार-डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर”
    पीपरभावना,बलौदाबाजार (छ.ग.)
    मो. 8120587822

  • पुराने दोस्त पर कविता

    पुराने दोस्त पर कविता

    हम दो पुराने दोस्त
    अलग होने से पहले
    किए थे वादे
    मिलेंगे जरूर एक दिन

    लंबे अंतराल बाद
    मिले भी एक दिन

    उसने देखा मुझे
    मैंने देखा उसे
    और अनदेखे ही चले गए

    उसने सोचा मैं बोलूंगा
    मैंने सोचा वह बोलेगा
    और अनबोले ही चले गए

    उसने पहचाना मुझे
    मैंने पहचाना उसे
    और अनपहचाने ही चले गए

    वह सोच रहा था
    कितना झूठा है दोस्त
    किया था मिलने का वादा
    मिला पर
    बोला भी नहीं
    मुड़कर देखा भी नहीं
    चला गया

    बिलकुल वही
    मैं भी सोच रहा था
    कितना झूठा है दोस्त
    किया था मिलने का वादा
    मिला पर
    बोला भी नहीं
    मुड़कर देखा भी नहीं
    चला गया

    हम दोनों
    एक-दूसरे को झूठे समझे
    हम दोनों
    वादा खिलाफी पर
    एक-दूसरे को जीभर कोसे

    इस तरह हम
    दो पुराने दोस्त मिले।

    नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    975585247

  • रिश्ते पर कविता

    रिश्ते पर कविता

    दर्द कागज़ पर बिखरता चला गया
    रिश्तों की तपिश से झुलसता चला गया
    अपनों और बेगानों में उलझता चला गया
    दर्द कागज़ पर बिखरता चला गया

    कुछ अपने भी ऐसे थे जो बेगाने हो गए थे
    सामने फूल और पीछे खंजर लिए खड़े थे
    मै उनमें खुद को ढूंढता चला गया
    दर्द कागज़ पर बिखरता चला गया

    बहुत सुखद अहसासों से
    भरी थी नाव रिश्तों की
    कुछ रिश्तों ने नाव में सुराख कर दिया
    मै उन सुराखों को भरने के लिए
    पिसता चला गया
    दर्द कागज़ पर बिखरता चला गया

    बहुत बेशकीमती और अमूल्य होते हैं रिश्ते
    पति पत्नी से जब माँ पिता में ढलते हैं रिश्ते
    एक नन्हा फरिश्ता उसे जोड़ता चला गया
    दर्द कागज़ पर बिखरता चला गया

    अनछुये और मनचले होते हैं कुछ रिश्ते
    दिल की गहराई में समाये
    और बेनाम होते हैं कुछ रिश्ते
    उस वक्त का रिश्ता भी गुजरता चला गया
    दर्द कागज़ पर बिखरता चला गया

    वक़्त और अपनेपन की
    गर्माहट दीजिये रिश्तों को
    स्वार्थ और चापलूसी से
    ना तौलिये रिश्तों को
    दिल से दिल का रिश्ता यूँ ही जुड़ता जायेगा
    यही बात मै लोगों को बताता चला गया
    दर्द कागज़ पर बिखरता चला गया
    °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
    वर्षा जैन “प्रखर”
    दुर्ग (छत्तीसगढ़)

  • विधवा पर कविता

    विधवा पर कविता

    सफेद साड़ी में लिपटी विधवा
    आँसुओं के चादर में सिमटी विधवा
    मनहूस कैसे हो सकती है भला

    अपने बच्चों को वह विधवा
    रोज सबेरे जगाती है
    उज्जवल भविष्य कीf करे कामना
    प्रतिपल मेहनत करती है
    सर्वप्रथम मुख देखे बच्चे
    सफलता की सीढ़ी चढ़ते हैं
    समझ नहीं आता फिर भी
    मनहूस उसे क्यूँ कहते हैं

    बेटी के लिए ढूँढें वर वह
    शादी का जोड़ा लाती है
    बिंदी, चूड़ी, सिंदूर भी वह
    स्वयं खरीद कर लाती है
    अखंड सुहाग की करे कामना
    बेटी का ब्याह रचाती है
    हाथों से अपने करे विदा
    फिर भी मनहूस कहलाती है

    बिंदी, चूड़ी, रंगीन वसन से
    वह पहले भी सजती थी
    बिछुवा, सेंदुर, कालिपोत
    शादी के बाद उसे मिली थी
    रहा नहीं सुहाग सही है
    सुहाग निशानी बस उतरेंगी
    बिंदी, चूड़ी, रंगीन वसन तो
    वह पहले से पहनी थी
    परंपराओं के नाम पर
    प्रतिपल मरती स्त्री थी

    धिक्कार है ऐसी छोटी सोच पर
    थू-थू ऐसे इंसानों पर
    नियति के क्रूर सितम के आगे
    वह नतमस्तक हो रोती है
    कर ना सको यदि दुःख कम उसका
    ऐसे ताने भी तुम मत दो
    नियति की नियति क्या जानो
    आज है उसकी कल अपनी मानो

    हाथ जोड़कर करूँ प्रार्थना
    हे समाज के ठेकेदारों
    थोड़ा आगे बढ़कर देखो
    सुंदर सपनों को गढ़ कर देखो
    कर ना सको सहयोग अगर तुम
    ताने देकर दिल ना तोड़ो
    ——————————————
    वर्षा जैन “प्रखर”
    दुर्ग (छत्तीसगढ़)

  • हमसफर पर कविता

    हमसफर पर कविता

    सात फेरों से बंधे रिश्ते ही
    *हम सफर*नहीं होते
    कई बार *हम* होते हुए भी
    *सफर* तय नहीं होते

    कई बार दूर रहकर भी
    दिल से दिल की डोर जुड़ जाती है
    हर पल अपने पन का
    अहसास दे जाती है
    कोई रूह के करीब
    रहकर भी दूर होता है
    कोई दूर रहकर भी
    धड़कनों में धड़कता है
    एक संरक्षण एक अहसास
    होता है हमसफर
    दूर हो चाहे पास
    सांसों में महकता है हमसफर

    कथित हमसफर के होते हुए भी
    कई सफर अकेले ही तय करने होते हैं
    संस्कारों और जिम्मेदारियों के
    किले फतेह करने होते है

    पर हाँ, एक सुखद एहसास होता है
    हमसफर का साथ
    एक हल्का सा मनुहार
    और एक प्यारी सी मुस्कान
    खुद में बना देती है खास
    समझौते की सवारी करके
    हम समझा लेते हैं खुद को
    की हम ही हैं वो विशेष
    जिसका खुद में नहीं है कुछ शेष
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    वर्षा जैन “प्रखर”
    दुर्ग (छत्तीसगढ़)