Author: कविता बहार

  • केवरा यदु मीरा के दोहे

    केवरा यदु मीरा के दोहे

    (1) चंदन

    माथे पर चंदन लगा, कैसा ढ़ोंग रचाय ।
    मंदिर मठ के नाम पर, वह व्यापार चलाय ।।

    (2)अग्निपथ

    सैनिक चलते अग्निपथ, लिये तिरंगा हाथ ।
    पीछे फिर हटते नहीं, कटे भले ही माथ ।।

    (3)दीपक

    बेटा कुल दीपक बना, बेटी का अपमान ।
    भ्रूण कोख में मारते, होगा कब सम्मान ।।

    (4)अहंकार

    अहंकार मत कीजिए, जीवन दिन दो चार ।
    मुट्ठी बाँधे आ रहा, जाये हाथ पसार।।

    (5)चासनी

    बोली लगते चासनी, भीतर पाप समाय ।
    बगल छुरी रखता फिरे, *मानस* रूप छुपाय ।।

    (6)अनुभव

    अनुभव सिखलाये हमें ,दुख *में* धरना धीर ।
    मन में यह विश्वास हो, कभी न होवे पीर ।।

    (7)नैराश्य

    छोड़ सदा नैराश्य को, आगे बढ़ता जाय ।
    राम कृपा उनको मिले, राह सही दिखलाय ।।

    (8)प्रतिकार

    जीवन में करते रहें, हम अनीति प्रतिकार ।
    सत्य मानिये फिर कभी, नहीं मिलेगी हार ।।

    (9)मधुप

    फूल फूल को चूमता, अरे मधुप नादान ।
    काँटों का भय है नहीं, *गुन गुन* करता गान ।।

    (10)जलधि

    जलधि लाँघ लंका गये, सीता की सुधि लाय।
    हनुमत प्रिय श्री भरत सम, हिय से राम लगाय ।।

    केवरा यदु “मीरा “
    राजिम
  • गुरु घासीदास बाबा पर हिंदी कविता

    गुरू घासीदास छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर जिले के गिरौदपुरी गांव में पिता महंगुदास जी एवं माता अमरौतिन के यहाँ अवतरित हुये थे गुरू घासीदास जी सतनाम धर्म जिसे आम बोल चाल में सतनामी समाज कहा जाता है, के प्रवर्तक थे। विकिपीडिया

    indian great leader personalities great man and women
    महान व्यक्तित्व पर हिन्दी कविता

    गुरु घासीदास बाबा पर हिंदी कविता

    सन्देशा गुरुदेव का,
    मानव सभी समान।
    सत्य ज्ञान जो पा सकें ,
    वह ही है इंसान ।।
    वह ही है इंसान,
    ज्ञान को जिसने जाना ।
    मानव सेवा धर्म,
    ज्ञान को सबकुछ माना ।।
    कह डिजेंद्र करजोरि,
    नही हो अब अन्देशा।
    सदा बढ़ाये मान ,
    अमर है गुरु सन्देशा।।

    ~~~~~●●●●~~~~~~~~
    रचनाकार-डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर
    पीपरभावना,बलौदाबाजार (छ.ग.)
    मो. 8120587822

  • सुसंस्कृत मातृभाषा दिवस पर कविता

    मातृभाषा दिवस पर कविता

    अपनी स्वरों में मुझको ‘साध’ लीजिए।
    मैं ‘मृदुला’, सरला, ले पग-पग आऊँगी।।

    हों गीत सृजित, लयबद्ध ‘ताल’ दीजिए।
    मधुरिमा, रस, छंद, सज-धज गाऊँगी।।

    सम्प्रेषित ‘भाव’ सतत समाहित कीजिए।
    अभिव्यंजित ‘माधुर्य’, रंग-बिरंगे लाऊँगी।‌।

    ‘मातृभाषा’ कर्णप्रिया, ‘सुसंस्कृत’ बोलिए।
    सर्व ‘हृदयस्थ’ रहूँ, ‘मान’ घर-घर पाऊँगी।।


    शैलेंद्र नायक ‘शिशिर’

  • हम किधर जा रहे हैं ?

    हम किधर जा रहे हैं

    क़यास लगाए जा रहे हैं,
    कि हम ऊपर उठ रहे हैं,
    क़ायम रहेंगे ये सवालात,
    कि हम किधर जा रहे हैं?

    कल, गए ‘मंगल’ की ओर,
    फिर ‘चंदा-मामा’ की ओर,
    ढोंगी हो गए, विज्ञानी बन,
    कब लौटेंगे ‘मनुजता’ की ओर?

    ‘संस्कृति’, ‘संस्कार’ ठेके पर हैं,
    ‘देश’ और ‘शिक्षा’ ठेके पर हैं,
    जनता, सिर्फ पेट भरकर खुश है,
    ‘सरकार’, ‘अदालत’ ठेके पर हैं।

    ‘आरामपसंद’, ‘पक्ष’ में बैठे हैं,
    ‘रज़ामंद’ लोग विपक्ष में बैठे हैं,
    ‘संसद’ की ‘बहस’, ‘शो-पीस’,
    ‘खि़दमतगार’ कुर्सी में बैठे हैं।


    शैलेंद्र कुमार नायक ‘शिशिर’

  • सपनो पर कविता

    सपनो पर कविता

    सपनो में सितारे सजने दो,
    नदियों की धाराएँ बहने दो।
    शीतल हवाएँ मन की तरंगें,
    फूलों की खुशबू महकने दो।

    ऊँचे अरमानों को सजने दो,
    आकाश में पंछी उड़ने दो।
    समन्दर की ये सुहानी लहरे,
    जल में मछलियाँ तैरने दो।

    नजरों में नजारे रहने दो,
    पलकों में चाँद उतरने दो।
    बदले तो बदले ये जमाना,
    हर किसी को दीवाने रहने दो।

    चाँद सितारे से आगे जाने दो,
    इस दुनिया को स्वर्ग बनाने दो।
    छेड़ो ऐसी तान इस जीवन में,
    नित होठों पे मुस्कान सजने दो।
    ~~~~~~~◆◆◆~~~~~
    रचनाकार-डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर”
    पीपरभावना,बलौदाबाजार (छ.ग.)

    मो. 8120587822