Author: कविता बहार

  • बेटियां सिर्फ होती पराई हैं…?- संतोष नेमा “संतोष”

    बेटियां सिर्फ होती पराई हैं

    दिल्ली
    हैदराबाद
    औऱ
    उन्नाव..!!
    कहाँ है
    बेटियों का
    सुरक्षित
    ठाँव..??
    शहर
    दर शहर
    दरिंदगी
    बदस्तूर
    जारी है.!!
    घटनाओं की
    खिलती
    रोज नई
    एक पारी है..!!
    नेता अब
    नित नए
    बयान
    फेंकते हैं..!
    ऐसे मौकों पर भी
    राजनीतिक
    रोटियां
    सेंकते हैं..!!
    क्या यही
    परिदृश्य
    है आज का..?
    हिंदुस्तानी
    सभ्य समाज का..!!
    कहाँ गए
    कानून के
    लंबे हाथ..?
    हम क्यों
    हो गए
    इतने अनाथ..??
    क्या हो गए
    हम इतने
    कमजोर..?
    अपराधियों पर
    नहीं चलता
    अब कोई जोर..??
    कब तलक
    बेटियाँ यूँ
    जलाई
    जाएंगी..?
    शैतानों के
    हाथों यूँ
    सताई
    जाएंगी..!!
    तथाकथित
    बुद्धिजीवी
    मौन हैं..!!
    ऐसी
    घटनाओं पर
    भी रखते
    कुछ अलग
    दृष्टिकोण हैं. !!!
    “संतोष”
    क्या हमारी
    मानसिकता
    यह बन
    आई है..!
    क्या बेटियाँ
    होतीं
    सिर्फ
    पराई हैं…???
    —————–

    @संतोष नेमा “संतोष”
  • न्याय प्रक्रिया में सुधार जरूरी है-संतोष नेमा “संतोष”

    न्याय प्रक्रिया में सुधार

    हैदराबाद
    कांड पर जो
    मानवाधिकार
    वाले उन्हें
    कल तक
    अनाचारियों को
    दानव कहते थे..!
    और बड़े ही
    बेफिक्री से
    रहते थे.!!
    आज उनका
    अंजाम देख
    उनकी
    मानवता
    जागी..!
    बोले बिन
    न्यायालय में
    अपराध सिद्ध हुए
    वो कहाँ हैं दागी..?
    यह सुन एक
    महिला
    बौखलाई..!
    बोली ये
    दोगली नीति
    कहाँ से आई..?
    हम भी
    न्यायालय के
    निर्णय को
    मानते हैं.!
    पर न्याय
    कब मिलेगा
    ये भी जानते हैं..!!
    निर्भया की
    सज़ा अभी
    बाकी है..!
    पिछले
    आठ वर्षों की
    यह झांकी है..!!
    इस पीड़ा को
    आप क्या
    समझेंगे.!!
    आप सिर्फ
    सबूतों को
    ही परखेंगे..!!
    “संतोष”न्याय में
    अनावश्यक देरी भी
    एक अन्याय है. !
    यह उस परिवार
    से पूछें
    जिनका जीवन
    स्याह है.!!
    वक्त रहते
    न्याय प्रक्रिया में
    सुधार जरूरी है.!!
    न्याय का
    नया आकार
    जरूरी है..!!
    अन्यथा
    जनता का
    आक्रोश
    न जाने क्या
    रंग लाएगा..?
    और ये
    खुशनुमा
    माहौल
    बदरंग हो जाएगा.!!
    देश में गर
    सुरक्षित बेटियां
    होंगी.!!
    “संतोष”
    तभी
    अमन चैन की
    रोटियां होंगी..!!
    ———————

    @संतोष नेमा “संतोष”
  • दर्द के रूप कविता

    दर्द के रूप कविता

    स्वयं के दर्द से रोना,अधिकतर शोक होता है।
    परायी-पीर परआँसू,बहे तो श्लोक होता है।

    निकलती आदि कवि की आह से प्रत्यक्ष भासित है,
    हृदय करुणार्द्र हो,तब अश्रु पर आलोक होता है।

    धरा की,धेनुओं की,साधुओं की प्रीति-पीड़ा से,
    हैं धरते देह ईश्वर,पाप-मुञ्चित लोक होता है।

     
    —– R.R.Sahu
  • तेरे लिए पर कविता- R R SAHU

    तेरे लिए पर कविता

    दिन की उजली बातों के संग,मधुर सलोनी शाम लिखूँ।
    रातें तेरी लगें चमकने,तारों का पैगाम लिखूँ।।

    पढ़ने की कोशिश ही समझो,जो कुछ लिखता जाता हूँ।
    गहरे जीवन के अक्षर की थाह कहाँ मैं पाता हूँ।।

    है विराट अस्तित्व मगर मेरी छोटी मर्यादा है।
    इसको ही सुंदर कर पाना समझो नेक इरादा है।।

    मेरी बातों में खोजो तो,बस इतना ही पाओगे।
    अपनी खोज चला हूँ करने,क्या तुम भी अपनाओगे।।

    मंजिल जिसको समझा था मैं पाया तो जाना पथ है।
    दिशा-दशा अनभिज्ञ दौड़ता जाता यह जीवन-रथ है।।

    नहीं कहा जा सकता मुझसे औरों का कर्तव्य कभी।
    अपना कर्म करें खुद निश्चित जीवन होगा भव्य तभी।

    ——–R.R.Sahu

  • जिंदगी पर कविता -नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    जिंदगी पर कविता

    आज सुबह-सुबह
    मित्र से बात हुई
    उसने हमारे
    भलीभांति एक परिचित की
    आत्महत्या की बात बताई
    मन खिन्न हो गया

    जिंदगी के प्रति
    क्षणिक बेरुखी-सी छा गई
    सुपरिचित दिवंगत का चेहरा
    उसके शरीर की आकृति
    हाव-भाव
    मन की आँखों में तैरने लगा

    किसी को जिंदगी कम लगती है
    किसी को जिंदगी भारी लगती है
    जिंदगी बुरी और मौत प्यारी लगती है

    जिंदगी जीने के बाद भी
    जिंदगी को अहसास नहीं कर पाते
    मिथ्या रह जाती है जिंदगी

    जिंदगी मिथ्या है तो–
    मिथ्या-जिंदगी कठिन क्यों लगती है ?
    मिथ्या-जिंदगी से घबराते क्यों हैं ?

    पल भर में आती है मौत
    इतनी आसान क्यों लगती है?
    इतनी सच्ची क्यों लगती है ?

    भागना छोड़ो,सामना करो
    मिथ्या जिंदगी को आकार दो
    मिथ्या जिंदगी को सार्थक बनाओ

    जिंदगी खिलेगी
    जिंदगी महकेगी
    मरने के बाद
    अमर होगी जिंदगी

    मौत को अपनाओ मत
    वह खुद अपनाती है
    अपनाओ जिंदगी को
    जो तुम्हें अमर बनाती है।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479