Author: कविता बहार

  • बेटी की व्यथा पर कविता -दूजराम -साहू

    बेटी की व्यथा पर कविता

    beti mahila
    बेटी की व्यथा

    करूण रस –

    अब न जन्मूँ “वसुंधरा” में, कर जोर विनती कह रही !
    सूर – कबीरा के “धरा” में,देखो “बेटी” जुल्म सह रही !!

    यहाँ – वहाँ, जाऊँ – कहाँ, पग – पग में बैठा दानव है !
    किसको मैं असुर कहूँ” मां”, किसको मानूंगी मानव है !!
    इंसानियत अब नजर न आता , हैवानियत “बेटी” सह रही !
    अब न जन्मूँ “वसुंधरा” में, कर जोर विनती कह रही !!

    अब नहीं प्रेमभाव नयन में,बहती रगों में क्रूरता है !
    हैवान विचरण करे जहाँ में, दरिंदे पहरा करता है !!
    इन शैतानों की शिकार “बेटी”, देखो कैसे सह रही !
    अब न जन्मूँ “वसुंधरा” में, कर जोर विनती कह रही !!

    न भेजो मुझे इस “मही”में, मां कोख में मुझे रहने दो !
    न सह सकूँ दुख कलिपन में, “भू”बंजर “बेटी” बिना रहने दो !!
    सह न सकूँ “मां” अब तेरी आंसू , अरजी “बेटी” ये कह रही !
    अब न जन्मूँ “वसुंधरा” में, कर जोर विनती कह रही !!

    दूजराम साहू

    निवास -भरदाकला
    तहसील- खैरागढ़
    जिला- राजनांदगांव (छ.ग.)

  • बेटियों के नसीब में कविता- डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’

    बेटियों के नसीब में कविता


    बेटियों के नसीब में, जलना ही है क्या
    काँटे बिछे पथ पर चलना ही है क्या

    विषम परिस्थितियों में ढलना ही है क्या
    सबके लिए खुद को बदलना ही है क्या

    धोखा छल-प्रपंच में छलना ही है क्या
    पत्थर दिल के वास्ते पिघलना ही है क्या

    अधूरी मर्जियाँ हाथ मलना ही है क्या
    हर क्षण चिंताओं में गलना ही है क्या

    बेटियों के नसीब में जलना ही है क्या
    काँटे बिछे पथ पर चलना ही है क्या

    डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’

  • कहां पर खो गया हिंदुस्तान?- शिवराज सिंह चौहान

    कहां पर खो गया हिंदुस्तान?

    खुदा खौफ खाए बैठे,
    भयभीत भये भगवान।
    ये कैसा हो गया हिंदुस्तान,
    कहां पे खो गया हिंदुस्तान।।

    कोख में बैठी बेटी भी,
    ये सोच सोच घबराए।
    जन्म से लेकर मरण तलक,
    सब नोच नोच कर खाएं।।
    चिंताओं से घिरी हुई,
    वो ढूंढ रही मुस्कान…..
    ये कैसा…..?

    लोलुप लंपट लवर लफंगे,
    वहसी व्याभिचारी।
    खुल्ले आम घूमते फिरते,
    जुल्मी अत्याचारी।।
    गली गली हर चौराहे पर,
    खड़े हुए हैवान….
    ये कैसा….?

    चिड़कलियों की चहक खो गई,
    कोयलिया की कूक।
    कुछ मुर्दा कुछ जिंदा लाशें,
    पूछे प्रश्न अचूक।।
    तेरे घर भी होगी मुझसी,
    बेटी बहन जवान….
    ये कैसा….?

    कहां गए वो कृष्ण कन्हैया,
    जो आकर चीर बढ़ाए।
    कहां गए वो राम लखन,
    जो असुरों को संहाये।।
    नामर्द यहां की सरकारें है,
    और न्याय निषप्राण….
    ये कैसा हो गया हिंदुस्तान?
    कहां पर खो गया हिंदुस्तान??

    :- *शिवराज सिंह चौहान*

    *नांधा, रेवाड़ी*
    *(हरियाणा)*

  • कुण्डलिया की कुण्डलियाँ- कन्हैया साहू ‘अमित’

    कुण्डलिया की कुण्डलियाँ।

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    *कुंडलिया लिख लें सभी, रख कुछ बातें ध्यान।*
    *दोहा रोला जोड़ दें, इसका यही विधान।*
    *इसका यही विधान,आदि ही अंतिम आये।*
    *उत्तम रखें तुकांत, हृदय को अति हरषाये।*
    *कहे ‘अमित’ कविराज, प्रथम दृष्टा यह हुलिया।*
    *शब्द चयन है सार, शिल्प अनुपम कुंडलिया।*

    *रोला दोहा मिल बनें, कुण्डलिया आनंद।*
    *रखिये मात्राभार सम, ग्यारह तेरह बंद।*
    *ग्यारह तेरह बंद, अंत में गुरु ही आये।*
    *अति मनभावन शिल्प, शब्द संयोजन भाये।*
    *कहे ‘अमित’ कविराज, छंद यह मनहर भोला।*
    *कुण्डलियाँ का सार, एक दोहा अरु रोला।*
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    ✍ *कन्हैया साहू ‘अमित’*✍

    © भाटापारा छत्तीसगढ़ ®
    सर्वाधिकार सुरक्षित सामग्री

  • बलात्कार पर कविता

    बलात्कार पर कविता

    हो रहे इन बलात्कारों का सबसे बड़ा जिम्मेदार।
    फिल्म, सीरियल मीडिया और विज्ञापन बाजार।

    अर्धनग्न तस्वीरों को मीडिया और इंटरनेट परोसता है।
    बालमन छुप-छुपकर इसमें ही अपना सुख खोजता है।

    फिल्मी गानें और नाच बच्चों को उकसाते हैं।
    विज्ञापन में नारी देह ही बार-बार दिखाते हैं।

    कमतर कपड़ों में दिखाते अश्लील आईटम डाँस।
    नैतिकता को छोड़ सिखाते, ऐसे करो रोमांस।

    सीरियलों में सुहागरात के सीन साझा करते हैं।
    प्रेगनेन्सी टेस्ट किट और बी.गेप भी सामने रखते हैं।

    माँ-बाप काम पर और बच्चा मोबाइल के साध होता है।
    पार्न साईड पर जाकर वह बच्चा जल्द जवानी ढ़ोता है।

    दादा-दादी के सीखों से जब बच्चा वंचित रहता है।
    बात-बात पर गंदी बात फिर वह मुँह पर रखता है।

    ऐसे सामाजिक माहौल में कौन बच्चा संस्कारी होगा?
    देख-देखकर दुनियादारी वही बालात्कारी होगा?

    पुलिस और सरकार के खिलाफ आवाज उठाकर क्या होगा?
    चौक-चौराहों पर संवेदना में मोमबत्तियाँ जलाकर क्या होगा?

    रोकना है तो इन सब बाजारवाद को रोको।
    अपनी सारी ताकत इनके खिलाफ ही झोंको।

    सजग रहें कि हमारी भी बेटी और बेटा है।
    कहीं इन्हें भी तो उसी सर्प ने नहीं लपेटा है।

    *कन्हैया साहू ‘अमित”*✍
    भाटापारा छत्तीसगढ़

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