रावण दहन करो
भीतर के रावण का दमन करो,
फिर तुम रावण का दहन करो।
पहले राम राज्य का गठन करो
फिर तुम रावण का दहन करो।
चला लेना तुम बाण को बेशक़,
जला देना निष्प्राण को बेशक़।
बचा लेना तू विधान को बेशक़,
पहले राम का अनुशरण करो।
फिर तुम…..
पहले राम बनकर दिखलाओ,
सबको तुम इंसाफ़ दिलवाओ।
पुरुषों में तुम उत्तम कहलाओ,
राम की मर्यादा का वरण करो।
फिर तुम….
हर माता का तुम सम्मान करो,
पिता वचन का तुम मान रखो।
भ्राता प्रेम पर अभिमान करो,
रघुकुल रीत से तुम वचन करो।
फिर तुम….
यहाँ घर-घर में रावण बसता है,
छदम वेश कर धारण डंसता है।
अहम पाल कर अंदर हँसता है,
आओ पहले इनका शमन करो।
फिर तुम….।
हर घर पीड़ित इक सीता नारी,
अपनों के ही शोषण की मारी।
घुट-घुट कर मरने की लाचारी,
इनके जीवन को चमन करो।
फिर तुम….।
सरहद पे रोज चलती है गोली,
पहियों तले कुचलती है बोली।
भूख कर्ज में रोये जनता भोली,
पहले इनका बोझ वहन करो।
फिर तुम…।
©पंकज प्रियम
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद