Author: कविता बहार

  • सुनो राधिके- डा.नीलम

    सुनो राधिके


    सुनो राधिके
    हर बार तुम्ही 
    प्रश्न चिह्न बनी
    सम्मुख मेरे खडी़ रहीं
    हर बार ही मैंने
    तुमको हल करने का
    प्रयत्न किया
    पर…….
    राधिके तूने कब कब
    मुझको समझा
    जब भी मैने रास किया
    हर गोपी में
    तुझको ही देखा
    बांसुरी की हर साँस में
    तेरी ही धड़कन जानी
    कालिंदी की
    अल्हड़ लहरे
    मुझको तेरी अंगडा़ई लगे
    कदंब तने से
    जब जब लिपटा
    तुझसे ही लिपटा जैसे
    हर पात पात में
    तुझको देखा
    हर स्वास में तेरी
    आस रही
    तुमको मुझसे है शिकायत
    मैं क्यूं कंचन धाम गया
    क्या मुझमें रह कर भी
    इतना-सा ना जान 
    सकी प्रिये!
    थे जन्मदाता मेरे
    मिलने को आतुर वहाँ
    दुःख कितने झेले होंगे
    सुनो ना राधिके
    वक्त ने पुकारा था मुझे
    तभी तो
    राह मथुरा की गही
    करवट ले रही थीं
    परिस्थितियाँ
    और मुझे था
    अहम् किरदार निभाना
    अन्याय खडा़ था
    सर उठाए
    न्याय अंधों के पगतल में था
    फिर राधिके
    तुम तो नारी हो
    नारी की पीडा़ नहीं समझती
    सखी मेरी थी
    पीडा़ भुगत रही
    बेचारी पुत्रों संग थी
    वन वन भटक रही
    फिर …….
    द्रुपदा का अपमान
    कैसे तुम ना समझ सकीं
    भेजा था उद्धव को मैने
    दुःख हरने को
    पर……..
    तुमने तो उसका भी ना
    कहा माना
    भेज दिये 
    अनवरत अपने 
    बहते आँसू
    और फिर सवाल
    बन अनसुलझी
    सम्मुख मेरे
    आन खडी़ हो गयीं।

          डा.नीलम
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • लाली लाली चुड़ी माँ के-प्रिया देवांगन “प्रियू”

    दुर्गा या आदिशक्ति हिन्दुओं की प्रमुख देवी मानी जाती हैं जिन्हें माता, देवीशक्ति, आध्या शक्ति, भगवती, माता रानी, जगत जननी जग्दम्बा, परमेश्वरी, परम सनातनी देवी आदि नामों से भी जाना जाता हैं।शाक्त सम्प्रदाय की वह मुख्य देवी हैं। दुर्गा को आदि शक्ति, परम भगवती परब्रह्म बताया गया है।

    लाली लाली चुड़ी माँ के-प्रिया देवांगन "प्रियू"

    लाली लाली चुड़ी माँ के

    लाली लाली चूड़ी माँ के , लाली बिंदी लगाये हे।
    बघवा मा हे बइठे दाई , मोर दुवारी आये हे।।

    लाली लाली सिंदूर माँ के , लाली महुर रचाये हे ।
    सबला अशीष दे के माता , मने मन  मुस्काये हे ।।

    लाली लाली होंठ हवय माँ  , लाली मेंहदी लगाये हे ।
    दया मया सब बर करथे माँ , नव दिन बर वो आये हे ।।

    लाली लाली लुगरा माँ के , लाली चुनर चढ़ाये हे।।
    हाथ जोड़ के भक्त सबोझन  , माथा अपन नवाये हे।।

    रचना 

    प्रिया देवांगन “प्रियू”

    पंडरिया  (कवर्धा) 

    छत्तीसगढ़

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  • नायक श्री गांधी की जय

    नायक श्री गांधी की जय

    नायक श्री गांधी की जय

    mahatma gandhi

    स्वतंत्रता  के   वीर   सिपाही,
    नायक  श्री  गांधी  की  जय।
    अनुकरणीय  कृत्य उन्नायक,
    जय-जय गांधी,भव्य विजय।

    पूज्य   प्रेरणास्रोत  महात्मा,
    तुम्हें  याद   हम    करते  हैं।
    दिव्य-मार्ग  दे दिया निराला,
    चलकर   पार    उतरते   हैं।
    सुदृढ़ जिन्दगी जीकर तुमने,
    स्वर्णिम   राह    दिखाई   है,
    ‘रघुपति राघव’ गाते  है  हम,
    उच्च-शिखर  पर  चढ़ते  हैं।

    नय के पालक मोहन-गांधी,
    आप  कर  गये   दूर अनय।

    वर्ष  अठारह  सौ  उनहत्तर,
    दो   अक्टूबर    पावन    है।
    याद रहेगा जन्मदिवस  यह,
    बापू   जी   का   वन्दन  है।
    करमचन्द –  पुतलीबाई   थे,
    पूज्य  पिता –  माता   दोनों,
    शहर    पवित्र     पोरबन्दर,
    गुजरातभूमि  अभिनंदन है।

    सत्य-उदारभाव  के  पोषक,
    लड़े,किया सब राष्ट्र अभय।

    हरिश्चन्द्र से, भक्त-श्रवण  से,
    सत्य,  पितृ –  सेवा   सीखी।
    राजनीति  के  परम  पुजारी,
    नीति  नरम,  गहरी – तीखी।
    अंग्रेजों   को   मार  भगाया,
    कर   आन्दोलन   संचालित,
    रंगभेद  की   छुआछूत  की,
    कुटिल – कुरीति हटी रूखी।

    सत्य-अहिंसा,  ब्रह्मचर्य-व्रत,
    सिखलाया   सद्गुण-संचय।

    वस्तु-स्वदेशी  निर्मित करना,
    चरखा – तकली    संचालन।
    उच्च बहुत  गांधी की शिक्षा,
    नीति-नियम  का अनुपालन।
    तीसजनवरी अड़तालिस को,
    बिड़ला – मंदिर   दिल्ली   में,
    दुखद  हुई   बापू  की  हत्या,
    हुआ   देशभर   में    क्रन्दन।

    “नाथू : शर्म – शर्म”  है   नारा,
    राष्ट्रपिता  –  गांधी     अक्षय।

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      ● डॉ शेषपालसिंह ‘शेष’

  • मोहन सबका प्यारा है

    मोहन सबका प्यारा है

    महात्मा गाँधी
    महात्मा गाँधी


                  (1)
    पुतलीबाई ने जन्म दिया ,
    करमचंद ने पाला था ।
    सीधा-साधा,भोला-भाला,
    मोहन सबका प्यारा था।
                (2)
    बिन हथियार लड़े थे ओ,
    सत्य अहिंसा के पुजारी ।
    सरल स्वाभाव के धनी ओ,
    जिसे  दुनिया माने सारी।।
                (3)
    सच्चाई को जिसने चुना,
    प्रेम को जो अपनाया। 
    छूआछूत को दूर करके,
    मिलकर रहना सिखाया।।
                (4)
    खादी वस्त्र पहनकर जिसने,
    स्वच्छ जीवन बिताया ।
    स्वदेशी अपनाओ कहकर,
    विदेशी वस्त्र जलाया।।
                 (5)
    सत्य मार्ग पर चलना,
    बापू ने हमे सिखाया।
    अमर हुआ नाम जिनका,

    राष्टपिता कहलाया ।।

    रचनाकार – डीजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
    मिडिल स्कूल पुरुषोत्तमपुर,बसना
    जिला महासमुंद (छ.ग.)
    मो. 8120587822
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • मेरे आंगन में – दिनेश चंद्र प्रसाद “दीनेश”

    “मेरे आंगन में “

    मेरे आंगन में
    कविता बहार

    होठ तेरे जैसे,
      दो कुसुम खिले;
    यौवन के कानन में ।
    आंखें तेरी जैसी,
     दो झील हैं गहरी;
    रूप के मधुबन में ।
    गाल हैं तेरे चिकने जैसे,
    दो नव किसलय;
           निकले उपवन में।
    बिंदिया की चमक है जैसे,
     इंदु हँसे;
    नील गगन में।
    केश तेरे लहराए जैसे,
     घनघोर घटाएं;
    झूम के आये सावन में।
    दुल्हन बनकर बोलो,
       कब आयेगी तू
      मेरे आंगन में।

    दिनेश चंद्र प्रसाद “दीनेश”

    DC-119/4   , स्ट्रीट न.310

    न्यू टाऊन ,कोलकाता-700156

    Email-dcprassd1959@gmail 

    .com

    मोबाइल 9434758093

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