Author: कविता बहार

  • भारत वतन मिले -केवरा यदु”मीरा”

    भारत वतन मिले -केवरा यदु”मीरा”

    भारत वतन मिले

    mera bharat mahan

    हे प्रभू धरा पर  जब जब जनम मिले।
    भारत वतन मिले भारत वतन मिले।

    राम कृष्ण गौतम गांधी का है देश।
    घर घर में हो रामायण गीता का  हो संदेश।
    सूर मीरा तुलसी  कबीरा   मिले।      

    भारत वतन——

    गूँजे वेद की   श्रृचाएं मंदिर  की घंटियाँ।
    उतुंग  हिमालय   की  है ऊँची  चोटियाँ।
    गंगा यमुना  गोदावरी की संगम मिले।।

    भारत वतन———

    खेतों की हरियाली  हो केसर की हो क्यारी।
    जहाँ ईद हो कृसमस हो और होली दिवाली।
    जहाँ गीता  के संग संग कुरान  भी गूँजे।।

    भारत वतन——-

    तिरंगे का केशरिया रंग सौर्य संदेश सुनाये।
    श्वेत रंग  शांति का  गीत  है गाये।
    हरा से हरियाली   चंहुओर  हो  खिले।।

    भारत  वतन———

    यहाँ मंदिर  मस्जिद  है  और शिवालय ।
    लाल किला ताजमहल   और हिमालय।
    यहाँ चैनो  अमन का  संदेश   भी  मिले।।

    भारत वतन मिले  भारत वतन मिले।
    हे प्रभू  धरा पर जब जब जनम मिले।
    भारत वतन मिले भारत वतन मिले।

    केवरा यदु”मीरा”

  • मिट्टी से प्यार करो अनुच्छेद370 – केतन साहू खेतिहर

    मिट्टी से प्यार करो अनुच्छेद370

    देखो जरा उन चेहरों को जो,
    दुश्मन की बोली बोल रहे हैं…
    अलगाव-वाद फैलाने वाले,
    *क्यूँ जहर फिजा में घोल रहे हैं..

    जब देश समूचा झूम रहा है,
    फिर ये क्यूँ बौखलाए हुए हैं…
    भोली जनता को डसने वाले,
    *वे फन अपना फैलाए हुए हैं..

    एक देश और एक ही झंडा,
    लहराएगें हर जगह तिरंगा…
    जो अमन चैन के दुश्मन हैं वे,
    *चाहेंगे फिर हो जाए दंगा…

    आतंकवाद के साए में ही,
    दुकानदारी इनकी चलती है..
    कितने जवान कुर्बान हो गए,
    *माँ-बहनें घुट-घुटकर मरती है…

    जरा पूछो तो उन चेहरों से,
    क्या यही उनकी वफादारी है…
    बीज अलगाव के बोने वाले,
    यह तो वफा नहीं गद्दारी है…

    भारत के ही वासिंदे होकर,
    भारत भू पर ही मत वार करो…
    अब बंद करो नफरत की खेती,
    तुम भी इस मिट्टी से प्यार करो…

          केतन साहू “खेतिहर”
      बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)
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  • जीवन तेरा बस नाम है-नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’

    जीवन तेरा बस नाम है

    युद्ध है संग्राम है जीवन तेरा बस नाम है
    देख मैं हैरान हूँ , तू फ़िर भी क्यों बदनाम है
    तूने धारा त्याग को ,तेरी कामना निष्काम है
    देख मैं हैरान हूँ , तू फ़िर भी क्यों बदनाम है
    युद्ध है संग्राम है……

    बनके बेटी जन्मीं थी तू , तू थी खुशियाँ तू बहार
    पर पराया तुझको कह कर , तुझे दिया ग़ैरों सा प्यार
    गुम हुआ अस्तित्व तेरा, ये भी क्या अंजाम है
    देख मैं हैरान हूँ, तू फ़िर भी क्यों बदनाम है
    युद्ध है संग्राम है…..

    सात फेरों से बंधी जो हुआ पराया घर का द्वार
    अपना सब कुछ सौंप कर के, चाहा था बदले में प्यार
    फ़िर भी जग में त्याग तेरा क्यों हुआ नाकाम है
    देख मैं हैरान हूँ , तू फ़िर भी क्यों बदनाम है
    युद्ध है संग्राम है……

    माँ बनी तो इस जगत ने तुझको रहबर कह दिया
    माँ बहन की गालियों से मान को तेरे डह दिया
    तेरे दिल में ‘चाहत’ और दुआ रहती सुबह शाम है
    देख मैं हैरान हूँ, तू फ़िर भी क्यों बदनाम है
    युद्ध है संग्राम है…..


    नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’

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  • गोली एल्बेंडाजॉल – (मधु गुप्ता “महक”)

     

     गोली एल्बेंडाजॉल

    आओ बच्चों तुम्हें सुनाए,
                एक कहानी काम की।
    ध्यान पूर्वक सुनना इसको,
                 बात छिपी है राज की।

    स्वाति नाम की लड़की थी इक,
             पंचम मे वह पढ़ती थी।
    नंगे पाँव खेलती हरदम,
               शौच खुले में करती थी।

    बिना हाथ धोए वो हरदम,
             खाना भी खा लेती थी।
    नही सुहाता नहाना उसको,
             बात ध्यान नहीं देती थी।

    हुआ दर्द जब पेट में उसके,
            सहना मुश्किल होना था।
    रोज रोज की बीमारी से,
            स्कूल भी जाना रोना था।

     पिता वैद्य के पास ले गये,
            सारी बातें बतलाएं
    चेकअप करके पता लगाया,
          कहा पेट में कीड़े आऐ।

    एल्बेंडाजॉल की दिए दवाई,
            हर हफ्ते जो खानी है।
    चबा चबा कर भोजन खाना,
          बात  स्वाति ने मानी है।

    बोले,रहो सफाई से अब,
           तुमको रोज नहाना है।
    चप्पल पहन सदा पैरों में,
           शौचालय में जाना है।

     दस्त न होगा, न कमजोरी,
          रोज रोज  स्कूल जाओ।
    सारे दोस्तों को तुम,कहना
        गोली एल्बेंडाजॉल बताओ।

    मधु गुप्ता “महक”

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  • समर शेष है रुको नहीं

    समर शेष है रुको नहीं

    समर शेष है रुको नहीं
    अब करो जीत की तैयारी
    आने वाले भारत की
    बाधाएँ होंगी खंडित सारी,

    राजद्रोह की बात करे जो
    उसे मसल कर रख देना
    देश भक्ति का हो मशाल जो
    उसे शीश पर धर लेना,

    रुको नहीं तुम झुको नहीं
    अब मानवता की है बारी
    सुस्त पड़े थे शीर्ष पहरुए
    जन मानस दण्डित सारी,

    कालचक्र जो दिखलाए, तुम
    उसे बदल कर रख देना
    कठिन नहीं है कोई चुनौती
    दृढ़ निश्चय तुम कर लेना,

    तोड़ो भी सारे कुचक्र तुम
    आदर्शवाद को तज देना
    नयी सुबह में नई क्रांति का
    गीत वरण तुम कर लेना ।

    राजेश पाण्डेय “अब्र”
       अम्बिकापुर

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