दहेज पर कविता
बेटी कितनी जल गई ,
लालच अग्नि दहेज ।
क्या जाने इस पाप से ,
कब होगा परहेज ।।
कब होगा परहेज ,
खूब होता है भाषण ।
बनते हैं कानून ,
नहीं कर पाते पालन ।।
कह ननकी कवि तुच्छ ,
. रिवाजों की बलि लेटी ।
रहती है मायूस ,
बैठ मैके में बेटी ।।
~ रामनाथ साहू ” ननकी “
मुरलीडीह ( छ. ग. )
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद