Author: कविता बहार

  • मन पर कविता

    मन पर कविता

    सोचा कुछहो जाता कुछ है
    मन के ही सब सोच
    मन को बांध सका न कोई
    मन खोजे सब कोय।।

    हल्के मन से काम करो तो
    सफल रहे वो काम
    बाधा अगर कोई आ जाये
    बाधित हो हर काम।।

    मन गिरे तन मुरझाये
    वैद्य काम नही आये
    गाँठे मन गर कोई खोले
    सच्चा गुरु वो कहाये।।

    मन के ही उद्गम स्रोत से
    उपजे सुख व दुख
    पाप पुण्य मन की कमाई
    देख दर्प अब मुख।।

    अंतर्जगत पहुँच सके
    पकड़ो मन जी डोर
    सच्चा झूठा बतला देता वो
    तू रिश्ता रूह से जोड़।।

    माधुरी डड़सेना
    न. प. भखारा छ. ग .

  • तोता पर कविता

    तोता पर कविता

    ना पंख है
    ना पिंजरे में कैद,
    फिर भी है तोता ।
    खाता है पीता है,
    रहता है स्वतंत्र,
    हमेशा एक गीत है गाता
    नेता जी की जय हो।
    कर लिया बसेरा
    बगल की कुर्सी पर,
    खाने को जो है मिलता
    मुफ्त का भोजन,
    टूट पड़ता है बेझिझक
    गजब का तोता।

    मानक छत्तीसगढ़िया

  • अवि के हाइकु

    अवि के हाइकु

    अवि के हाइकु

    अवि के हाइकु

    जीवन पथ
    प्रेम और संघर्ष
    दुलारा बेटा

    मनमोहन
    बलिहारि जाँऊ मैं
    तेरी मुस्कान

    मां हूँ मैं
    लड़ूंगी भूख से मैं
    ये अग्निपथ

    समर्पित है
    तुझ पे ये जीवन
    राज दुलारा


    ©अवि
    अविनाश तिवारी
    जांजगीर चाम्पा

  • संतोषी है मधुशाला

    संतोषी है मधुशाला


    संतोषी अँगूर लता है,
    संतोषी साकी बाला।
    संतोषी  पीने  वाला है
    संतोषी है मधुशाला।
    बस्ती -बस्ती चौराहे पर,
    अपनी दुकान खोलने वाले।


    विज्ञापन  के राम  भरोसे,
    अपनी दुकान चलाने वाले।
    जंगल उपवन बाग बगीचे,
    संतोष  दिखाई  देता है।
    डगर अकेली सन्नाटे मे,
    भीड़ जुटाती मधुशाला।

    संतोष  समाई  हाला मे,
    राजा  है  पीने  वाला।
    बस्ती बस्ती डगर डगर का
    शुभचिन्तक है मतवाला।
    दुनिया वाले रोज झगड़ते,
    संसद , ठौर,  ठिकाने  मे।
    प्यास सदा सबकी हर लेती,
    सुलह कराती  मधुशाला।।
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    उमाशंकर शुक्ल’दर्पण

  • द्रोपदी चीर प्रसंग पर दोहे/ पुष्पा शर्मा”कुसुम”

    द्रोपदी चीर प्रसंग पर दोहे/ पुष्पा शर्मा”कुसुम”

    द्रोपदी चीर प्रसंग पर दोहे

    पासे फेंके कपट के
    शकुनि रहा हर्षाय
    दाव द्रोपदी लग गई
    रहे पाण्डव शर्माय

    सभा मध्य में द्रोपदी
    करती करुण पुकार
    चीर दुशासन खींचता
    नहीं बचावन हार

    भीष्म बली कुरुराज ने 
    साध लिया है मौन
    पांचों पति बोले नहीं
    बचा सके अब कौन

    गोविंद तुम करुणा करो
    अबला करी गुहार
    तुम बिन अब कोई नहीं
    लाज बचावन हार

    नाम लेत  ही प्रकट भे
    लीन्ह वस्त्र अवतार
    खींचत खींचत चीर को
    गया दुशासन हार

    पुष्पा शर्मा”कुसुम”