Author: मनीभाई नवरत्न

  • हिंदी दिवस की कविता – मनीभाई नवरत्न

    हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है। 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने यह निर्णय लिया कि हिन्दी केन्द्र सरकार की आधिकारिक भाषा होगी। क्योंकि भारत मे अधिकतर क्षेत्रों में ज्यादातर हिन्दी भाषा बोली जाती थी इसलिए हिन्दी को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया और इसी निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को प्रत्येक क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।

    हिन्‍दी दिवस 14 september
    हिन्‍दी दिवस

    हिंदी दिवस

    छोड़ो अब अंग्रेजियत को
    लौट आओ हिंदी में तुम ।
    जान चुके तुम्हारी विद्वता ,
    अब देश बचाओ हिंदी में तुम ।

    हिंदी प्रत्याशी बनके
    जब मत मांगा हम लोगों का।
    अपना भाई जानकर ,
    दिल पिघला हम लोगों का ।


    पर आज मिजाज बदल गए ,
    बोली की गोली से डराते तुम।।
    गाथा सुनाते देश के अंग्रेजी में
    नहीं बताते हिंदी में तुम ।।

    हम तो अंग्रेजी में अंधे हैं
    काना बन कर तुम राज करो।
    हम हिंदी है हिंदुस्तान में रहते
    तुम अंग्रेज बन कर कुछ लाज करो।

    ताकत जानी तुमने अंग्रेजी की
    नहीं जाने हिंदी की ताकत तुम ।
    अंग्रेजी में अब तक जीवित हो ।
    खत्म हो जाओगे हिंदी में तुम।।

    manibhainavratna
    manibhai navratna

    -मनीभाई नवरत्न

  • लाभ – हानि पर कविता – मनीभाई नवरत्न

    जल पर कविता
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    लाभ – हानि पर कविता – मनीभाई नवरत्न

    कितने लाभ और कितने हानि-मनीभाई नवरत्न

    बादल से गिरती
    अमृत बनकर पानी।
    प्यास फिर बुझाती
    अपनी धरती रानी ।

    फुटते कली शाखों पर
    बगिया बनती सुहानी ।
    आती फिर धरा में
    नित नूतन जवानी ।

    छम छम करती
    सुनो बारिश की जुबानी ।
    दिल छू कर गुजरे
    ध्वनि ऐसी रूहानी ।

    घनघोर घटा चीरती
    बिजली की रवानी।
    मूरत सी उभर आए
    जैसे काली भवानी ।।

    बड़ी मदहोश होके
    आए हो इस बरस दीवानी ।
    यह तो वक्त ही बताएगा
    कितने लाभ और कितने हानि?

    manibhainavratna
    manibhai navratna

    -मनीभाई नवरत्न

  • छत्तीसगढ़ी कविता – तरिया घाट के गोठ

    छत्तीसगढ़ी कविता
    छत्तीसगढ़ी कविता

    तरिया घाट के गोठ – छत्तीसगढ़ी कविता

    गोठ बात चलत हे,गाँव भर के मोटियारी के ।
    काकर निंदा,काकर चुगली, कनहू के सुआरी के ।
    सबो झन सबो ल, बात बात म दबावत हे।
    खिसियावथें कनहू ल, मन म कलबलावत हे।
    सबो हावे अपन आप म रोंठ ।
    ए जम्मो बात हावे संगी , तरिया घाट के गोठ॥ 1

    माईलोगिन के भेद हर,तरिया घाट म खुलथें।
    इक कान ले दूसर कान म, ओ भेद हर बुलथें।
    “सोशल मीडिया” कस रोल म, होथें तरिया घाट ।
    “कन्टरवरसी” होवत हे,कोनो ल कोनो संग करके साँठ।
    काकर जोही सांवर हे, काकरो हावे मोंठ।
    ए जम्मो बात हावे संगी , तरिया घाट के गोठ॥2

    काकर घेंच म कतका तोला, काकर माला हे कै लरी।
    काकर घर म मछरी चूरे, कोने दिन पहाये खाके बरी ।
    काकर लुगरा कतक दाम के,अऊ कती दुकान के चूरी ।
    कोनो मंदरस घोल गोठियाये, काकरो गोठ लागे छुरी ।
    नवा बोहासिन कलेचाप सुनथे,ओकर सास करथे चोट ।
    ए जम्मो बात हावे संगी , तरिया घाट के गोठ ॥3

    धोबिनिन कस सबो महतारी,निरमा ल डाल के।
    कपड़ा कांचे गोठ करत,पानी ल बने मताल के।
    गां के लबर्री के गोठ म जम्मो झन भुला गय हे।
    लागथे ओकर समधिन तको,तरिया नहाय आय हे।
    अब्बक होके सुने बपरी,समझें मोर समधिन हावे पोट।
    ए जम्मो बात हावे संगी , तरिया घाट के गोठ॥ 4

    -मनीभाई नवरत्न

    manibhainavratna
    manibhai navratna

    ( यह कविता कुछ ग्रामीण महिलाओं के स्वभाव को दर्शाती है जहाँ उनकी दिखावटीपन, आभूषण प्रियता, बातूनीपन और कुछ अनछुए पहलू को बताने की कोशिश की गई है ।)

  • छत्तीसगढ़ी कविता – जड़कल्ला के बेरा

    छत्तीसगढ़ी कविता
    छत्तीसगढ़ी कविता

    जड़कल्ला के बेरा -छत्तीसगढ़ी कविता

    आगे रे दीदी, आगे रे ददा, ऐ दे फेर जड़कल्ला के बेरा।
    गोरसी म आगी तापो रे भइया , चारोखुँट लगा के घेरा॥

    रिंगीचिंगी पहिरके सूटर,नोनी बाबू ल फबे हे।
    काम बूता म,मन नई लागे, बने जमक धरे हे।
    देहे म सुस्ती छागय हे,घाम लागे बड़ मजा के।
    दाँत ह किटकिटावथे,नहाय लागे बड़ सजा के।

    नानकून दिन होगे रे संगी, संझा पहिली अंधेरा॥1॥

    आगे रे दीदी, आगे रे ददा, ऐ दे फेर जड़कल्ला के बेरा।
    गोरसी म आगी तापो रे भइया , चारोखुँट लगा के घेरा॥

    हाथ कान बरफ होगे, सरीर ल कँपकँपावत हे।
    सेहत बर बिहनियाँ घुमई, अब्बड़ मजा आवत हे।
    लईकामन के दसा मत पुछ “मनीभाई” परीक्षा दिन आगे।
    पर नीचट टूरामन अलसूहा हावे,रजई म जाके सकलागे।

    अऊ चेतभूत के सूरता नईये , मुहु म लांबत हे लेरा॥2॥

    आगे रे दीदी, आगे रे ददा, ऐ दे फेर जड़कल्ला के बेरा।
    गोरसी म आगी तापो रे भइया , चारोखुँट लगा के घेरा॥

    फेर ए सीतहा मौसम, हावे रे अब्बड़ सुहाना।
    गरमागरम चाहा सुरक, अऊ भजिया गबागब खाना।
    बजार म, ताजा साग सब्जी के, सस्ती होगे न।
    नालीडबरा सुखाके, साफ सुथरा बस्ती होगे न।

    ऐसो फेर मनाबो तिज तिहार, देवारी अऊ छेरछेरा॥3॥

    आगे रे दीदी, आगे रे ददा, ऐ दे फेर जड़कल्ला के बेरा।
    गोरसी म आगी तापो रे भइया , चारोखुँट लगा के घेरा॥

    manibhainavratna
    manibhai navratna

    Manibhai Navratna

  • 12 मार्च दाण्डी मार्च दिवस पर कविता

    dandi yatra
    दांडी यात्रा

    12 मार्च दाण्डी मार्च दिवस

    नव-चेतना का आह्वान किया।
    नमक कानून के खिलाफ पदयात्रा किया।
    जीना सिखाया हमें स्वाभिमान से,
    “महात्मा”बुलाते हम सम्मान से,
    घनघोर अँधेरा में बने आशा की किरण,
    सत्यअहिंसा की मिशाल बने जिनका जीवन।
    आज उन्हीं के काम के मान दिवस है।
    12 मार्च दाण्डी मार्च दिवस है।।

    12 मार्च दाण्डी मार्च दिवस पर कविता

    चल पड़े थे अपने मकसद में अकेले,
    कुछ सहयोगी भी उनके संग हो लिये,
    धीरे-धीरे कारवाँ बढ़ता गया।
    गाँधी फिरंगियों पर भारी पड़ता गया।
    कानून तोड़ा इंसानियत के नाते,
    वरना विरोध करना हम कहाँ सीख पाते?
    स्वदेशी की अहमियत का पहचान दिवस है।
    12 मार्च दाण्डी मार्च दिवस है।।

    (रचयिता:-मनी भाई)