Author: मनीभाई नवरत्न

  • सुधारू बुधारू के गोठ -मनीभाई नवरत्न

    सुधारू बुधारू के गोठ -मनीभाई नवरत्न

    सुधारू बुधारू के गोठ (छत्तीसगढ़ी व्यंग्य)

    manibhai Navratna
    मनीभाई पटेल नवरत्न

    बुधारू ह गांव के गौंटिया के दमाद के भई के बिहाव म जाय बर फटफटी ल पोछत राहे।सुधारू ओही बखत आ धमकिस।
    अऊ बुधारू ल कहिस -“कइसे मितान!तोर फूफू सास के नोनी ल अमराय बर (कन्या विदाई ) जात हस का जी।”
    बुधारू कहिस -“लगन के तारीक ह एके ठन हे मितान ।फुफा के समधी ह सादा व्यवस्था करे हे अऊ गौंटिया के दमाद ह आज रंगीन व्यवस्था करे हे।अऊ बिहाव म मोला रोना-धोना बिलकुल पसंद नईये।तिकर पाय आज रंगीन प्रोग्राम बन  गय हावे “
    बुधारू के  गोठ सुनके सुधारू ह असल बात ल समझ गय रहिस कि आजकल रिश्ता-नता के अहमियत ले जादा बिहाव म खानापीना के व्यवस्था म वजन रईथे ।


    (लिखैय्या :- मनी भाई )

  • गीता एक जीवन धर्म

    गीता एक जीवन धर्म

    गीता एक जीवन धर्म

    यह कविता भगवद गीता के महत्व और उसके जीवन में अनुपालन के लाभ को दर्शाती है। इसे आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:

    महाभारत अर्जुन और कृष्ण

    गीता का ज्ञान

    गीता महज ग्रंथ नहीं, है यह जीवन धर्म।
    अमल कर उपदेश को, जान ले ज्ञान मर्म।
    गीता से मिलती, जीने का नजरिया।
    सुखमय बनाती जो अपनी दिनचर्या।

    ज्ञान झलके व्यवहार में।
    सहारा बने मझधार में।
    कहती गीता, फल मिलेगी, कर लो निस्वार्थ कर्म।
    गीता महज ग्रंथ नहीं, है यह जीवन धर्म।

    अर्जुन को सिखाया कृष्ण ने जीवन का सार,
    कर्म पथ पर बढ़ चलो, नहीं हो कोई विकार।
    न देखो फल की इच्छा, न हो मोह का जाल,
    सत्य और धर्म की राह पर हो तुम्हारा बाल।

    धैर्य और संतोष का पाठ, गीता हमें सिखाए,
    संकट के क्षणों में भी, संयम हमें दिलाए।
    जो भी हो कठिनाई, साहस से उसे सुलझाओ,
    गीता के उपदेश से जीवन को संवारो।

    अहम का त्याग करो, नफरत को भूल जाओ,
    सच्चाई की राह पर, सदा चलते जाओ।
    प्रेम और दया से, बनाओ अपना जीवन,
    गीता के ज्ञान से, पाओ मोक्ष का द्वार।

    योग और ध्यान का महत्व, गीता ने समझाया,
    अंतर्मन की शांति में, सच्चा सुख पाया।
    जो भी हो जीवन की दिशा, तुम स्वंय हो राहगीर,
    गीता के संदेश से, बनो जीवन के अधिकारी।

    गीता का संदेश है अमर, नश्वर इस संसार में,
    उसका पालन करके देखो, सुख मिलेगा हर द्वार में।
    सत्य, अहिंसा, और प्रेम की हो महक हर दम,
    गीता महज ग्रंथ नहीं, है यह जीवन धर्म।

    हर जीवन में गीता का प्रकाश फैलाओ,
    अंधकार में भी राह की ज्योति बन जाओ।
    धर्म, कर्म, और सत्य का हो आदर हर समय,
    गीता का ज्ञान अपनाकर, पाओ सच्चा प्रेम।


    यह कविता गीता के उपदेशों की महत्ता और उसके जीवन में अनुपालन से मिलने वाले सुख और शांति को दर्शाती है। गीता का ज्ञान हमें सही दिशा में चलने और जीवन को सफल और संतोषजनक बनाने की प्रेरणा देता है।

    4o

    मनीभाई नवरत्न

  • साक्षात्कार :  निर्मोही जी से व्हाट्सएप गुफ्तगू

    साक्षात्कार :  निर्मोही जी से व्हाट्सएप गुफ्तगू

    साक्षात्कार :  निर्मोही जी से व्हाट्सएप गुफ्तगू

    manibhai Navratna
    मनीभाई पटेल नवरत्न

    13/07/2017, 14:42:17: मनी भाई: आदरणीय बालकदास ‘निर्मोही ‘ जी
    नमस्कार ,
    कैसे है आप ? आशा है कि आप सकुशल होंगे।

    13/07/2017, 14:44:07: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: सादर नमस्कार सर, मैं सकुशल हूँ और आशा करता हूँ कि आप भी सकुशल होंगे।

    13/07/2017, 14:44:49: मनी भाई: जी बिल्कुल सर

    13/07/2017, 14:44:59: मनी भाई: लिखना यह था कि हम और आप आदरणीय नवल प्रभाकरजी और आदरणीय  संजय कौशिक “विज्ञात” के द्वारा संचालित “ये शब्द बोलते हैं” ग्रुप में सदस्य के रूप में जुड़े हुये हैं । अभी आप अवगत ही होंगे कि “ये शब्द बोलते हैं “साहित्यिक व्हाट्सएप ग्रुप में अभी साप्ताहिक प्रतियोगिता 10 जुलाई 2017 से 16 जुलाई 2017 के बीच किसी महान साहित्यकार को लेकर साक्षात्कार लिखना है।जो कि एक गद्य की विधा ही है। मेरी दृष्टि से आप एक महान साहित्यकार के साथ ही साथ मेरे प्रेरणा स्त्रोत भी रहे हैं । अतः आपसे अनुरोध है कि मुझे आप अपना छोटी सी साक्षात्कार लेने की अनुमति प्रदान करेंगे ताकि मैं भी प्रतियोगिता में सहभागी बन सकूं।

    13/07/2017, 14:46:02: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: अवश्य

    13/07/2017, 14:46:20: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: सहमति देता हूँ, आपको हृदय से धन्यवाद आपने मुझे महान साहित्यकार जैसे शब्दों से नवाजा ये आपकी भावनाओं में बसे हुए मेरे प्रति प्यार और लगाव मात्र है, हृदय से धन्यवाद।

    13/07/2017, 14:48:04: मनी भाई: सर आपको बताना चाहूँगा ; इस साक्षात्कार की खास बात यह रहेगी कि आपको व्हाट्सएप के जरिए ही अपनी बात रखनी होगी । अतः आपसे विशेष अनुरोध है कि मेरे लिए कुछ समय प्रबंध करने की कृपा करेंगे ।

    13/07/2017, 14:49:49: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: जी हाँ, आप सवाल कीजिए

    13/07/2017, 14:52:31: मनी भाई: बहुत बहुत धन्यवाद आपका महोदय।
    सबसे पहले मैं आपका हृदय से अभिनंदन करता हूँ ।आपने जो मेरे लिए अपना अमूल्य समय , अपने व्यस्ततम जिन्दगी से निकाली है ।इसके लिये मैं सदा आभारी रहूँगा ।

    13/07/2017, 14:53:00: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: शुक्रिया

    13/07/2017, 14:54:39: मनी भाई: सर्वप्रथम पाठकों को आपके बारे में संक्षिप्त रूप से बताना चाहूँगा कि आप उत्कृष्ट कवियों और लेखकों में आपका नाम शुमार किया जाता है ।इसके साथ ही आप सरल हृदय और मिलनसार व्यक्तित्व के धनी हैं । बाकी का परिचय आप अपने और परिवार के बारे में पाठकों को अपने श्रीमुख से स्वयं अवगत करायें।

    13/07/2017, 14:55:34: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: जी, अवश्य

    13/07/2017, 15:00:23: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: मेरा पूरा नाम बालक दास गर्ग है किंतु अपनी रचनाओं में *बालक ‘निर्मोही”* लिखता हूँ, मेरा जन्म 01 जुलाई 1971 को ग्राम अकलतरा, तहसील व थाना भाटापारा, जिला रायपुर (वर्तमान में जिला बलौदाबाजार है) (छ. ग.) में एक गरीब कृषक परिवार में हुआ था। माताजी का नाम श्रीमती रामबाई एवं पिता जी का नाम स्व. श्री सुकुल गर्ग है, दो बड़ी बहन एवं पांच भाईयों में मैं सबसे छोटा हूँ, मैं विवाहित हूँ तथा मेरी तीन होनहार बेटियाँ है जो कि मेरे आन बान और शान हैं, बड़ी बेटी कला संकाय में स्नातकोत्तर शिक्षा के साथ ही, डी. सी. ए. तथा पी. जी.डी. सी. ए. कर चुकी है तथा गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर चुकी है, दूसरी बेटी कम्प्यूटर साईंस में इंजीनियरिंग कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों में लगी हुई है तथा तीसरी बिटिया कॉमर्स विषय के साथ स्नातक कर रही (अन्तिम वर्ष) हैं, मेरी धर्म पत्नि घर की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में कदम से कदम मिलाकर मेरी मदद करती हैं वह एक निजी अस्पताल में नर्स है। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के बिलासपुर मण्डल में मैं तृतीय श्रेणी कर्मचारी हूँ। तथा बिलासपुर ही मेरा वर्तमान निवास स्थान है। लिखने का शौक बचपन से है, लेखन के अलावा मुझे गायन एवं वादन में भी बचपन से रुचि है, स्वरचित, सस्वर छत्तीसगढ़ी लोकगीत आकाशवाणी के बिलासपुर (छ. ग.) केंद्र से प्रसारित होती है। डॉ० बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर को मैं आदर्श मानता हूँ क्योंकि अभावों, और विपरीत परिस्थितियों, विपत्तियों और चुनौतियों से संघर्ष कर ऊपर उठने की प्रेरणा मिलती है।

    13/07/2017, 15:02:49: मनी भाई: हर साहित्यकार अपने भावनायें व्यक्त करने हेतु साहित्य के विविध विधाओं का सहारा लेता है। आपने अभी तक साहित्य के क्षेत्र में कौन कौन से विधा में कलम चलाई है और आप किस विधा में याद रखे जाना पसंद करेंगे?

    13/07/2017, 15:08:49: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: वैसे तो मूल रूप से छत्तीसगढ़ी में ही लिखता हूँ किन्तु हिंदी में अभी तक छन्द घनाक्षरी, माहिया, दोहा, और मात्र दो कुण्डलियां ही लिख पाया हूँ जो कि गिनती में बहुत ही कम है इसके साथ साथ सजल तथा तुकांत अतुकांत सामान्य कविताएं लिखता हूँ जैसे- मैं बादल हूँ, हो न जाये महाविनाश, हे मन, हे कवि, माँ, उम्र सत्तर नज़र कमजोर, नाहक ही तुझे मीत माना, हे कलमकार, तुम कौन हो, काश्मीर समस्या पर आधारित सजल लगा ट्रिगर पर देखो तो मानवता का ताला है, बढ़ा चढ़ाकर हाँकने में क्या जाता है इत्यादि मेरी रचनाएँ है और भी कविताएं है किंतु समयाभाव के कारण पूर्ण विवरण दे पाना संभव नहीं है। जैसा कि मैने पहले ही बताया मेरी शिक्षा सिर्फ और सिर्फ बारहवीं तक ही है इसलिए मेरी कविताओं में कोई कठिन शब्द नहीं होते हैं और ईमानदारी से सच कहूँ तो मेरे मन मस्तिष्क में विधाओं की बाध्यता नहीं है, साहित्य के क्षेत्र में मैं अभी विद्यार्थी हूँ इसलिए हर एक विधा को सीखने और लिखने की इच्छा है, किसी भी एक विधा को ही लेकर चलने को मैं सोचा भी नहीं हूँ।

    13/07/2017, 15:09:58: मनी भाई: जैसा कि आपने बताया कि आप रेलवे के कर्मचारी हैं ।फिर भी अपने व्यस्त दिनचर्या में साहित्य सेवा के लिए समय प्रबंधन कैसे कर पाते हैं ?

    13/07/2017, 15:13:18: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: लेखन कार्य से मुझे अत्यधिक शांति मिलती है, और मेरी थकान भी दूर हो जाती है इसलिए रात में भोजन पश्चात 10 बजे से 12 बजे तक कभी कभी तारीख और दिन भी बदल जाते हैं कहने का अर्थ यह है कि, 1.00 और दो बजे तक भी लिखता हूँ , शनिवार और रविवार को कार्य पर नहीं जाना होता है इसलिए अधिकांश लेखन कार्य शुक्रवार और शनिवार रात को ही करता हूँ, बाकी दिन नहीं के बराबर लिख पाता हूँ।

    13/07/2017, 15:13:41: मनी भाई: आप अपने बिलासपुर अंचल के किस- किस साहित्यिक मंचों से जुड़े हुए हैं ?

    13/07/2017, 15:17:15: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: आपने बहुत ही अच्छा सवाल किया, मै मुख्य रूप से राष्ट्रीय कवि संगम से विगत दो वर्ष से जुड़ा हुआ हूँ और बिलासपुर मण्डल के कोषाध्यक्ष के रूप उत्तरदायित्व भी निभा रहा हूँ, इसके पूर्व मेरे भीतर का रचनाकार कहीं खो गया था, जिसे राष्ट्रीय कवि संगम में ढूंढ़ पाया। इसके अलावा साहित्य कला परिषद (सीपत) और समन्वय साहित्य परिषद के सदस्यों से भी जुड़ा हुआ हूँ किन्तु विधिवत सदस्यता नहीं लिया हूँ। व्हाट्सएप समूह की बात करूं तो, राष्ट्रीय कवि संगम, बिलासपुर कवि संगम, कलम के सिपाही, हम तेरे सफर, साहित्य साधना और तीन प्रमुख समूह है जिनमे देश भर के जाने माने वरिष्ठ साहित्यकार जुड़े हुए हैं वो है, साहित्यकार समूह, ये शब्द बोलते हैं, तथा अखिल भारतीय हाइकु मंच, इसके अलावा फेसबुक के छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच है।

    13/07/2017, 15:19:01: मनी भाई: क्या आपको कभी किसी काव्य सम्मेलनों में प्रतिभागी बनने का सौभाग्य मिला है और ऐसे सम्मेलन , साहित्यिक जीवन को किस तरह से प्रभावित करता है ?

    13/07/2017, 15:25:39: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: काव्य गोष्ठी की बात करूं तो, विगत दो वर्ष से प्रति माह किन्तु सम्मेलन में एक ही बार जा पाया हूँ, सच्चाई यही है कि सम्मेलन के लायक स्वयं को परिपक्व नहीं मानता हूँ, अभी कुछ दिन और….
    साहित्यिक सम्मेलन के प्रतिभागी बनने पर निश्चित रूप से मनोबल में वृद्धि होती है और लोकप्रियता के साथ ही लेखन क्षमता भी बढ़ती है ऐसा मैं मानता हूँ।

    13/07/2017, 15:26:09: मनी भाई: वैसे साहित्यकार पुरस्कार पाने के लिये नहीं रचता परन्तु उसको मिला सम्मान उसे अच्छे रचना लिखने के लिए प्रेरित जरूर करती हैं ।क्या आपको कभी सम्मानित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है?

    13/07/2017, 15:31:16: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: “सम्मान” कैसे परिभाषित करूँ? अवश्य ही काबिलियत के अनुरूप मुझे सम्मान मिला है श्रीफल के रूप में, साक्षात्कार हेतु आपने मुझे चुना इसे भी मैं अपना सौभाग्य और सम्मान समझता हूँ किन्तु, आपका तात्पर्य यदि बड़े मंचों में भारी भरकम सम्मान, स्मृति चिन्ह, प्रमाण पत्र है तो मैं कहूँगा नहीं।

    13/07/2017, 15:31:35: मनी भाई: आपके काव्य का मुख्यतः वर्ण्य विषय क्या होता है ?

    13/07/2017, 15:35:43: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: विषय की व्यापकता है किंतु मुख्य विषय राष्ट्रीय एकता, राष्ट्र जागरण, नारी, गरीब, गरीबी,बेटियाँ, बलात्कार पीड़िता, किसान, और विशेष रूप से पर्यावरण।

    13/07/2017, 15:36:28: मनी भाई: आपकी अब तक कौन कौन सी रचनाएँ स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है ?

    13/07/2017, 15:46:17: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: किसी भी दैनिक समाचार पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित कराने की मैने आज तक अपने तरफ से कोई प्रयास ही नहीं किया किन्तु फिर भी राष्ट्रीय कवि संगम की मासिक पत्रिका “कविता कुञ्ज” तथा “एहसास” (वार्षिक) पत्रिका और श्री अजय जैन जी के द्वारा संचालित वेब पत्रिका मातृ भाषा डॉट कॉम पर हो न जाये महाविनाश मेरी कविताएं प्रकाशित हो चुकी है।

    13/07/2017, 15:46:38: मनी भाई: आपको ऐसी कौन-कौन सी रचनाएँ हैं जिसे आप समाज के लिये बहुत प्रभावी मानते हैं और जिसे पढ़कर पाठकों का प्यार आपको मिला है ? क्या कुछ पंक्तियाँ हमारे पाठकों के लिए शेयर करना चाहेंगे ?

    13/07/2017, 15:49:18: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: जी हाँ , अवश्य आपके पाठकों के लिए एक छन्द प्रस्तुत है, इसे मैं आमजन के लिए अत्यधिक प्रभावी मानता हूँ क्योंकि इसमें संदेश है।
    *बेटियाँ बचाओ यारों*

    बेटियाँ ही आन बान बेटियाँ ही सब कुछ,
    लाडली पिता की वो तो घर के भी लाज हैं।
    वीरता से भरी पड़ी बेटियों की गाथा यारों,
    लोहा लेती बेटियाँ ही कल और आज है।
    फूलों की महक जैसे पंछी की चहक जैसे,
    संगीत की शोभा जैसे सुर और साज है।
    बेटियाँ बचाओ यारों नाज़ करो उन पर,
    कर रही बेटियाँ तो सारे काम काज है।

    13/07/2017, 15:54:44: मनी भाई: साहित्य के क्षेत्र में अभी आप किस उद्देश्य को लेकर चल रहे हैं ? तात्पर्य यह है कि अभी आपको किस विषय पर कलम चलाने की ख्वाहिश बची है ?

    13/07/2017, 16:02:27: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: जैसा कि मैंने पहले भी बताया कि, विषय व्यापक है, अलावा छत्तीसगढ़ी गीत भी लिखना चाहता हूँ। एकांकी या नाट्य विधा पर लिखना चाहता हूँ, और प्रयासरत भी हूँ, किन्तु समयाभाव और इस विधा का पूर्ण ज्ञान न होने के वजह से कुछ कर पाने में असफल हो जाता हूँ। एक बात अवश्य है कि, आज से 5- 6 वर्ष पूर्व “नासूर का अंत” नाम से संवाद सहित एक पटकथा लिख चुका हूँ, समापन करने में एक पेज बाकी है जिसे आज तक पूर्ण नहीं कर पाया हूँ, आपको यह भी अवगत कराना चाहता हूँ कि, संकोच और झिझक के वजह से आज तक मैंने किसी के समक्ष समीक्षा हेतु रखा भी नहीं, जैसा कि मैने पूर्व में भी बताया कि, शिक्षा 12वीं मात्र है और व्याकरण में मैं अधिक कमजोर हूँ यह कहते हुए मुझे जरा भी संकोच नहीं है जबकि मुझे ज्ञात है कि आप मेरा साक्षात्कार ले रहे हैं और इसे सब पढ़ेंगे भी बढ़ा चढ़ाकर कहना मुझे कतई पसंद नहीं है। श्रीमान, मैं कुछ भी लिखने बैठता हूँ तो व्याकरण का डर पहले दस्तक़ दे जाते हैं।

    13/07/2017, 16:03:07: मनी भाई: अपने समकालीन कवियों या लेखकों में से आप किसके रचना से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं और उनमें क्या खास बात होती है ?

    13/07/2017, 16:04:48: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: व्हाट्सएप और फेसबुक के माध्यम से जब कभी पढ़ता हूँ तो आदरणीय श्री राजेश जैन ‘राही” जी के दोहे, आदरणीय श्री विजय कुमार राठौर जी और आदरणीय श्री अरुण कुमार निगम जी के लगभग सभी विधाओं में लिखे रचनाओं से प्रभावित हूँ, इसके अलावा श्री सतीश सिंह, सुजीत कुमार सिंह , कवि शिव विनम्र, श्रीमती रजनी तटस्कर जी के गजलों से वीर रस के लिए कवि दिनेश दिव्य जी से अत्यधिक प्रभावित हूँ।

    13/07/2017, 16:05:02: मनी भाई: आपने अपना उपनाम “निर्मोही ” रखना पसंद क्यों किया? इसके पीछे की तथ्य संक्षेप में बताने का कष्ट करेंगे ।

    13/07/2017, 16:07:11: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: आपने यह तो अवश्य सुना या पढ़ा होगा कि, नाम बड़ा या काम, नाम बड़े और दर्शन छोटे, ऊँचा दुकान फीका पकवान…. स्वभाव से मैं अत्यधिक भावुक,और सभी से प्यार करने वाला हूँ इसके ठीक विपरीत “निर्मोही” मुझे सटीक लगा मैं औरों की तरह सरल लिखकर कठोर हो या बहादुर लिखकर कमजोर हो ये मुझे नापसंद है।

    13/07/2017, 16:07:46: मनी भाई: लोगों के समक्ष आप किस रूप में याद किया जाना पंसद करेंगे ?

    13/07/2017, 16:08:58: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: देश प्रेमी

    13/07/2017, 16:10:10: मनी भाई: हो सकता है अभी आपका साक्षात्कार पढ़ने के बाद किसी पाठक के मन में आपसे बातचीत या मिलने की जिज्ञासा उत्पन्न हो तो , क्या उन्हेंं आप अपना संपर्क व पता शेयर करेंगे ।

    13/07/2017, 16:12:00: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: अवश्य, ये मेरा व्हाट्सएप नंबर है 08319497141, शनिवार और रविवार सुबह 10.00 से रात 11.00 बजे तक कभी भी बाकी के दिनों में रात्रि 08.00 से 10.00 बजे तक संपर्क कर सकते हैं, पता- रेलवे आवास क्रमांक, 1257/2, टाईप-II, एन. ई. कालोनी, बिलासपुर, (छ. ग.)
    495004

    13/07/2017, 16:17:05: मनी भाई: बहुत बहुत धन्यवाद!
    आपने मेरे लिये व्यस्ततम जिन्दगी से अपना डेढ़ – दो घण्टे से अधिक का बहुमूल्य समय दिया । आपका यह अहसान जीवन भर नहीं भुलाया जा सकता। ईश्वर करे कि आप साहित्य के आसमान में सितारे की तरह प्रदीप्तमान रहें।
    आप उन बुलन्दियों को छू पाये जहाँ सभी पहुँचने के लिए प्रयासरत है ।

    13/07/2017, 16:19:17: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: सादर शुक्रिया, नमस्कार आप से बात करके मैं भी अत्यधिक प्रफुल्लित हुआ।

    13/07/2017, 16:19:51: मनी भाई: जी ! मेरी यह खुशनसीबी है । आप दिन मंगलमय हो । धन्यवाद 

    13/07/2017, 16:20:30: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: पुनः धन्यवाद आपको।

    13/07/2017, 16:20:52: मनी भाई:

     “अभी आपने बहुमुखी प्रतिभा के धनी,   मिलनसार, स्पष्टवादी  और निश्छल आदरणीय श्री बालकदास ‘निर्मोही’ के बारे में पढ़ा कि उनका जीवन किस तरह संघर्षों से भरा हुआ था  । गुदड़ी के लाल होते हुए भी  उन्होंने बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद  साहित्य साधना में लगे रहे ।आज वे अपने अंचल के एक प्रतिष्ठित साहित्यकारों में शुमार किए जाने लगे हैं ।
    उन्हें इस मुकाम पर पहुंचने के बाद भी घमण्ड छू तक नहीं पाया है और अनवरत सीखने की ललक बनी हुई है ।
    मैं मनीलाल पटेल “मनीभाई ” उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ ।”

    साक्षात्कारकर्ता :-
    मनीलाल पटेल ” मनीभाई “
    भौंरादादर बसना महासमुंद ( छग )

  • मनीभाई नवरत्न की गीत

    मनीभाई नवरत्न की गीत

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    manibhai Navratna
    मनीभाई पटेल नवरत्न

    आंखों से दूर हो दिल से दूर नहीं

    आंखों से दूर हो, दिल से दूर नहीं ।।
    तुम बुला लो फिर ,हम हो जाएंगे हाजिर।।

    मन तड़पता है तेरी यादों में,
    होश मेरा जब खोता है।
    चैन ढूंढता है यह किताबों में ,
    सारा जग जब सोता है।
    इसी आस पर बेचैनी मिटे,
    तुम मशहूर हो मजबूर नहीं।

    हमारा क्या है सनम?
    हम हैं रमते राम ।
    कट जाएंगे ऐसे ही
    सब रंगीली शाम।।
    पल पल हम मरते रहे  हैं,
    दर्द जुदा  सहते रहे हैं।
    और कहते रहे हैं तेरा होगा कसूर
    पर जरूर नहीं।।

    महबूबा

    महबूबा महबूबा मेरा दिल ले डूबा,
    वश में नहीं दिल अपना लेना है तो ले जा।
    महबूबा महबूबा मेरा दिल तूने  लुभा,
    देखा करता है तेरा सपना लेना है तो ले जा।

    दिल का धड़कना, सांसो का बढ़ना ।
    यह सब इशारे हैं प्यार होने के ।
    मन का तड़पना, आंखों का लड़ना ।
    यह सब इशारे है प्यार होने के ।
    प्यार होने से जीवन लगता अजूबा ।।


    वश में नहीं मेरा दिल…
    चलते चलते रुकना, रूक कर खो जाना।
    यह सब इशारे हैं प्यार होने के ।
    आंखों का झुकना झुककर शर्माना ।
    यह सब इशारे हैं प्यार होने के ।
    प्यार ना होने से जीवन लगता है अधूरा।।
    वश में नही मेरा दिल …

    आपका चेहरा रंगीला

    आपका चेहरा रंगीला दिल में छुरी चलाती है ।
    आपकी अंगड़ाइयां हमारी होश उड़ाती है ।


    आप तो आप ही हैं
    आप की क्या बात है ?
    आप है तो मैं भी हूं
    और यह हसीन रात है ।
    आपकी हर अदाएं मन को लुभाती है।
    आपकी बातें दिल की प्यास बुझाती है।


    सुहाना मौसम है आज ,
    तू भी है अपने पास ।
    जी भरके तंग करेंगे तुझे ।
    हो चाहे आप उदास ।
    आपको छेड़ना शर्म से हमको झुकाती है ।
    आपका दीवानापन हमको पास बुलाती है ।।

    रिश्ता है हमारा आपसे दिल का
    चमकता तारा हो आकाश नील का ।
    तेरी खुशबू हो इन साँसों में ।
    उलझा रहे फूल जैसी बालों में ।
    आपकी हंसी अनजाने में आग लगाती है ।
    आपकी तजुर्बा बिगड़ी बात बनाती है ।
    आपका चेहरा रंगीला…..

    आज आसमां में दामिनी चमक रही

    आज आसमां में दामिनी चमक रही ।
    तू मेरे दिल की रानी बन रही।
    आज मुझे तो प्रेम दीवानी दिख रही ।
    तू मेरे लिए दिल की रानी बन रही ।


    उसकी चमक झपका देती है नैनों को ।
    उसकी खुशबू बढ़ा देती है धड़कनों को ।
    आज मेरी कहानी पूरी हो रही ।
    तू मेरे दिल की रानी बन रही ।
    आज आसमां में ….


    वह मुझे सारी दुनिया दिखाए ।
    उसकी आंखों में मुझे अपना दुनिया दिखा ।
    अब रब क्या करें हमारे लिए
    क्या हमारे भाग्य में लिखा ।
    आज की रात सुहानी हो रही ।
    तू मेरे दिल की रानी बन रही….

    अपना दिल तुम किसी से ना देना

    अपना दिल तुम किसी से ना देना
    मेरा दिल टूट जाएगा ।
    थोड़ा सा मेरा इंतजार करना
    तुझ पर जान लूट जाएगा ।
    यह मत सोचना दिल बर
    कि मैं तुमको भूल जाऊंगा ।


    जुदा रहना दो घड़ी
    फिर मैं तुम से जुड़ जाऊंगा ।
    आएगी एक दिन नई रोशनी
    तब बंधन टूट जाएगा ।
    जानता हूं यह सब होगी कठिन।
    पर आएंगे खुशियों के दिन।


    जाने जाना तू ना माना
    तो मन मेरा टूट जाएगा ।
    तकलीफ तुझे हो अगर ।
    थोड़ा सा इशारा कर देना ।
    खुशियां मेरा लेकर गम हमारा कर देना ।
    मुस्कुरा दे तुम ना तू दिल टूट जाएगा ।
    अपना दिल तुम…..

    अच्छा हुआ जो ठुकरा दिया

    अच्छा हुआ जो ठुकरा दिया तो
    नींदें ना मेरी खराब होगी ।।
    अच्छा हुआ जो बतला दिया तो ,
    हाथों में अब किताब होगी ।।


    पहले होता तेरे लिए बेचैन
    तकती रहती दरस को नैन ।
    बन गया था पागल दीवाना
    एक पल ना आता था रैन।
    अब तेरे लिए लबों में  ना जवाब होगी।


    माना कि तुम खूबसूरत बेमिसाल है ।
    पर दिल के मामले में बुरा हाल है।
    मेरा तुमसे यह आज सवाल है ।
    खुद के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है ।
    बड़े मदमस्त हो गए तुमने पी शराब होगी ।


    हम ना चाहे थे तुम से बैर
    पर जी लेंगे अब तेरे बगैर
    कभी तो जीवन में हरियाली आएगी
    लंबी रातों की अंधियारी जाएगी ।
    अब हाथों में मेरे किसी और के लिए गुलाब होगी ।

    मोहब्बत की क्या होती जादु

    मोहब्बत की क्या होती जादु,
    समझ ना पाया कोई इसे ।
    सबको कर जाती बेकाबू ,
    पुकार आया ये दिल से ।

    प्यार कैसी है बादल ?
    उड़ती रहती है आसमां में ।
    सब के दिलों में छाया रहता
    बरसे इस जहां में ।
    जब वह दिखे पल रुके
    हर लम्हा बीते मुश्किल से ।
    मोहब्बत की ….


    प्यार कैसी है आज?
    यह तो दिल जलाए ।
    धुआं निकले हैं सीने में
    जब वह दूरियां बढ़ाएं ।
    यह ना बुझे कुछ ना सुझे
    लगे कभी कातिल से ।
    मोहब्बत की ….


    प्यार कैसी है पानी ?
    होती इसमें जिंदगानी .
    हो जाए समां सुहानी
    छुपी है सबकी कहानी ।
    बढ़ जाये बाढ़ आए
    डुब जाये सलिल  से ।
    मोहब्बत की ……

    भीगे भीगे राहों में भीगे भीगे हम

    भीगे भीगे राहों में भीगे भीगे हम।
    हाथों में हाथ लेकर चले संग संग।
    ओ मेरे सनम …ओ मेरे सनम …
    भर रही रगों में मोहब्बत की रंग ।
    संभल कैसे पाऊं करें मुझको तंग
    ओ मेरे सनम …ओ मेरे सनम …


    आज बातें बन जायेगी वो अपनी हो जायेगी ।
    लगता है ऐसे वो बाहों में आ जायेगी ।
    देर ना कर हम पे मर निकला जाए दम।
    ओ मेरे सनम …ओ मेरे सनम ….


    कह तो रही है गिरती पानी ।
    तू मेरा राजा मैं तेरी रानी ।
    कैसे बताऊं हाल ए दिल
    ना कह सकूं मैं इसकी कहानी ।
    मैं डर जाऊं हां मर जाऊं क्या असर है कम ।
    ओ मेरे सनम… ओ मेरे सनम ….


    प्यार जो किया है तो इजहार करूंगा ।
    यह राज बताने में ना देर करूंगा ।
    साथ दे जो अगर तो आगे बढूंगा ।
    हां पहचान मिल गई वह मान गई , मिट गए हैं गम ।
    ओ मेरे सनम ….ओ मेरे सनम ….

    लबों से कह दे आज तू

    लबों से कह दे आज तू।
    दिल से कर दे प्यार तू।
    आंखों से कर दे इशारा तू
    कुछ भी कर ले हमारा तू।
    कब से कहा आज फिर कहता हूं ।
    मैं तो तेरे दिल में रहता हूं ।।

    मुझसे इस तरह बेरुखी हो जाएंगे ।
    कसम तुम्हारी हम तो चले जाएंगे ।
    आप जो दिल हमारे कर जाएंगे ।
    हम तेरे लिए कुछ भी कर जाएंगे ।
    जानेमन मैं तेरे हर अदा पर मरता हूं ।।

    तेरी हर जादू मुझ पर छाने लगा है ।
    तेरी हर बात में मुझे को भाने लगा है ।
    तेरी रंगरूप ख्वाब  दिखाने लगा है।
    अब हम दम मेरा मन गाने लगा है।
    मैं तुमसे ही मोहब्बत करता हूं ।।
    मैं तो तेरे दिल में रहता हूं ।।।

    लबों से कह दे आज तू

    तुम फिर मिले ऐसे

    तुम फिर मिले ऐसे ,
    जैसे नदियां समंदर
    धरती अंबर जैसे ।
    तुम फिर खिले ऐसे
    जैसे दिन से शाम रात
    इंद्रधनुषी रंग सात जैसे ।


    उजली सुबह की रोशनी तुमसे ।
    पगली पवन की खुशबू तुमसे ।
    तुम से ही यह बनी हो जैसे ।
    तुम फिर मिले ऐसे ।
    तुम फिर मिले ऐसे
    जैसे सुर से ताल
    फूल और बाल जैसे ।


    तुम फिर खिले हैं ऐसे
    जैसे भंवरे से कलियां
    धूप से छैइयां  जैसे।
    आसमा की आसमानी तुमसे ।
    मौसम की रवानी तुमसे।
    तुम से ही यह बनी हो जैसे ।

    तुम फिर मिले ऐसे ।
    तुम फिर मिले ऐसे
    जैसे प्यासे को पानी
    राजा को रानी जैसे ।
    तुम फिर खिले ऐसे ।
    जैसे होठों में मुस्कान ।
    मंदिर में भगवान हे जैसे ।
    अरमानों की बरसात तुमसे ।
    ख्वाबों की बारात तुमसे ।
    तुम से ही यह बनी हो जैसे
    तुम फिर मिले ऐसे

    धरती  से धुआं उड़े

    धरती  से धुआं उड़े ,छुले वो आसमां को ।
    मैं भी उड़ जाऊं छू लूं इस जहां को ।

    आज जागे हैं ऐसी तमन्ना ऐसी आशा ।
    आज भागे हैं मन से बहाना ,  निराशा ।
    अब  मैं ना ठहर पाऊं, फैलाके रख दूं अपनी बाहों को ।
    मैं भी उड़ जाऊं छू लूं इस जहां को ।

    सबसे आगे होकर सबको राहे बताऊं ।
    सबको संग  लेकर मंजिल तक जाऊं।
    अब ये कोशिश इरादा ।
    अब  ये ख्वाहिश वादा।
    कि मैं ना अब  बैठूं  रोककर अपनी आंहो को ।
    मैं भी उड़ जाऊं छू लूं इस जहां को ।

    धरती से धुआं उड़े ……

    मन ना लागे रे

    मन ना लागे रे ,लागे ना मन तुम बिन।
    खुदा ही जाने रे , जाने कैसे हुआ यह मुमकिन।
    कल तक जो मेरे,दिल को खटके।
    आज उसी के लिए मन मेरा भटके ।
    खो गया हूं मैं ,उसकी यादों में ,रहने लगा हूं लीन।
    होते रहते थे , हम दोनों में झगड़े।
    तू तू मैं मैं के ही,सारे होते लफड़े ।
    कहां गए वो सारे खींचातानी , दिखे ना कोई चिन्ह ।
    ऐसे ना  कभी वो दिखती थी।
    तड़पाकर दिल को ,ना चलती थी ।
    कहां सीख लिये ऐसी अदाएं, लगती है क्वीन ।
    मन ना लगे….

    मनीभाई नवरत्न

    चाहत में बड़ी ताकत है

    चाहत में बड़ी ताकत है।
    तुझे चाहना ही चाहत है ।
    तू ही है जरूरत मेरी
    तू ही मन की राहत है ।
    चाहत की दुनिया में आके
    दुनिया से अब क्या छुपाना ।
    यह चाहत छिपती नहीं
    कर लो चाहे जितना बहाना ।
    चाहत में तुझको ना चाहा तो लानत है ।
    चाहत में …


    जिया चलती नहीं चाहत के बिना ।
    जिया ढलती नहीं चाहत के बिना ।
    हर लम्हा अब मुश्किल है बड़ा
    पर चाहत सिखाती है मरना जीना।
    अब हर पल दिल में तेरे लिए दावत है।
    चाहत में बड़ी ताकत है….

    मनीभाई नवरत्न

    खो गई जो दोस्ती

    खो गई जो दोस्ती,खो जाएगी जिंदगी।
    यारा जब तक जियूं , करूं तेरी बंदगी ।
    हर लम्हा जब तन्हा रहूं तू याद आए।
    मेरे कानों में  तेरी ,आहट सुनाएं।
    तेरे विचार, सरहद पार होके भी ,
    देखो मुझे आज सिखाएं।
    फिर तुमसे मिलने की,  अरमां है जगी।
    यारा जब तक जियूं करूं तेरी बंदगी ।।


    तू मिलता , है खिलता ,लब पे मुस्कान।
    खुशी तुमसे हंसी तुमसे, तुमसे ही जान।
    तू दिलदार, ओ मेरे यार साथ यूं ही
    रहना मेरे हाथ को थाम।
    खुद को बदल दिया , देख तेरी सादगी।
    यारा जब तक जियूं करूं तेरी बंदगी ।
    ✍मनीभाई

    मस्ती कर मस्ताने दीवाने परवाने

    मस्ती कर मस्ताने दीवाने परवाने ।

    ये पल कल मिले कौन जाने कब जाने?

    धुनी रमा अपने मन की,
    छुले तारे गगन की ।
    आगे बढ़ सबसे ,बनके सयाने ।।

    समेट ले सारी खुशियां,
    बटोर ले सारी कलियां।
    चूम ले धारा को रिश्ते ये पुराने ।।

    नजरों से खेले मन की लड़ियां ।
    दिल में छाए प्रीत की छड़ियां ।।
    आये इस दुनिया में प्रेम के बहाने।।

    मनीभाई नवरत्न

    जीत होके भी मन निराश है

    निकल पड़े हैं सफर में ,
    मंजिल की ना तलाश है
    जो हमसफ़र हो तुमसा
    तो हर मंजिल पास है।।
    फिर क्यों नाराज है, ….
    क्यों उदास है….
    इस पल में जीत होके भी
    मन निराश है……

    ख्वाहिशों की भूलभुलैया नगरी में
    क्यों भटके हम जेठ दुपहरी में।।
    सांसों का , क्या भरोसा जिन्दगी में?
    ये कभी भी छोड़े दे ,दो घड़ी में।।
    फिर क्यों जाऊँ ? तुम्हें छोड़के
    जो नहीं यहाँ कोई, तुमसा खास है।।1।।
    फिर क्यों नाराज है, ….
    क्यों उदास है….
    इस पल में जीत होके भी
    मन निराश है……

    तू जो कहती है आगे बढ़ मेरे लिये
    नैनों से तुम कभी, गुम होना ना।
    पीछे मुड़कर ,मैं जो कभी तुम्हें देखूँ
    नैनों से नीर बहाते, तुम होना ना।
    मेरी जिन्दगी अब हो चुकी तेरी
    मुझे भी तेरी धड़कन का अहसास है।।2।।
    फिर क्यों नाराज है, ….
    क्यों उदास है….
    इस पल में जीत होके भी
    मन निराश है……

    हम तो लुट गये यारा बेफिक्री से

    ना अजनबी से,
    ना करीबी से,
    हम तो लुट गये,
    यारा, बेफिक्री से। ना अमीरी से,
    ना गरीबी से,
    हम तो लुट गये,
    यारा, बेफिक्री से। आज में जीये, कल को भुलाये।
    हम ना गये, किसी के बुलाये।
    मन ने जो चाहा, वही करते गये।
    जग के उसूल, कभी ना समझ पाये
    ना नसीब से, ना बदनसीबी से।
    हम तो लुट गये,
    यारा, बेफिक्री से।।

    ——–

    ——–(क्रमशः)

    -मनीभाई नवरत्न

    दिल्लगी है नहीं मेरा प्यार है

    हाये तेरी अदायें,कर लिया मुझपर अख्तियार है….
    खातिर जिसके दिल तो, अब तो मरने को तैयार है …
    दिल्लगी है नहीं ,मेरा प्यार है …..
    आज इस पल मेरा इकरार है….
    इकरार है….
    Oh…Love is life….Love is great…
    For love’s sake, I won’t wait…..

    ख्वाहिश है मुझे , किसी सांझ सकारे
    मिलने को जाऊं तुझे ,नदिया किनारे
    रखके सर, तेरी जुल्फों के तले
    नैनों से अपने, तेरी रूप निहारे
    गर ऐसा हो कभी …..तो चमत्कार है.

    दिल्लगी है नहीं ,मेरा प्यार है …..
    आज इस पल मेरा इकरार है….
    इकरार है….

    तू ही मेरा मस्जिद

    तू ही मेरा मस्जिद
    तू ही मेरा मंदिर
    तू ही दरगाह
    तू ही मेरा रब्बा
    तू ही मेरी दुआ
    तू ही चाह
    अजकार मेरे लिए तेरा प्यार
    कदमों में तेरे जानिसार

    तुझे कैसे बताऊं तुम मेरे लिए क्या है
    रब की रहमत मिले तुझे मेरी यही रजा है
    सरकार मेरे लिए तेरा प्यार
    कदमों में तेरे जानिसार.

    जो हुकुम दे दे तू मर जाए उस पर
    तसल्ली होगी खुद को कुछ किया तुझ पर
    संसार मेरे लिए तेरा प्यार
    कदमों में तेरे जानिसार.

    हुजूर तुम हो

    हुजूर तुम….
    हुजूर तुम हो….
    हुजूर तुम हो मेरे रहबर । पास आए ….
    पास आए तुम….
    पास आए तुम मेरे इस कदर।
    कि जीने की ख्वाहिश मुझे हो चली।
    कि ढूंढूं तुझे मैं गली गली । तुमसे हूं …
    तुमसे हूं जिंदा ….
    तुमसे हूं जिंदा मेरे परवर
    पाके तुझे …
    पाके तुझे मैं …..
    पाके तुझे मैं गई नहीं निखर। आजकल खुद से ज्यादा ,
    तेरी फिक्र होने लगी है ।
    सपनों में भी ,अपनों में भी
    तेरी जिक्र होने लगी है । मेरी आरजू तू …मेरी चारसू तू …
    तू ही जुस्तजू मेरी…  गुप्तगूं तू अब तो….
    अब तो तुम…..
    अब तो तुम मेरे हमसफर ।
    पास आए……
    पास आए तुम ….
    पास आए तुम मेरे इस कदर। कर लिया , खुद से वादा
    चाहूंगा तुझे मरते दम तक ।
    आफतो में भी, राहतों में भी
    रहूंगा संग मरते दम तक । मेरी आशिकी तू , मेरी ऐयारी तू।
    तू ही बेखुदी ..मेरी , बेदारी तू । जान लो …
    जान लो तुम …
    जान लो तुम मेरी खबर ।
    पास आए ..
    पास आए तुम …
    पास आए तुम मेरे इस कदर।

    बैठे हैं आकाशतल में- मनीभाई नवरत्न

    बैठे हैं आकाशतल में, टूटे ना कोई सितारा ।

    जो कभी टूटेंगे तारे, हाथ मांग लेंगे तुम्हारा।।

    कोई तो मुलाकात होगी, जो पिया साथ होगी ।
    कोई तो रात होगी ,जिसमें तुझसे बात होगी ।।
    कोई तो बरसात होगी जिसमें मन भीग जाएंगे ।
    कोई तो हालात होगी जिसमें वो दिख जाएंगे।।
    यह लमहे ना गुजरे तो फलक मेरा अंधियारा ।।


    जीवन मेरा राग है, जिसे तुम सुन लेना ।
    जीवन में सुराग है ,जिसे तुम बून लेना ।
    जीवन मेरा दाग है, जिसे तुम धो लेना ।
    जीवन में आग है, जिसे तुम बुझा देना ।
    जीवन बाग बाग हो जाएंगे जो मिले तेरा सहारा।।

    मनीभाई नवरत्न

    माना हम तेरे लायक नहीं

    माना हम तेरे लायक नहीं
    मनचाहा फल दायक नहीं ।
    तो भी हमसे मुख मोड़ो ना
    तन्हा छोड़ो ना ।।
    यूं तो रिश्ता अपना हर रिश्तों से बढ़कर है ।
    फिर क्यों ये फासला हर फासलों से बढ़कर है।
    तू रह कर भी रहता नहीं
    और ना रह कर भी रहता है ।
    मेरा दिल नाजुक शीशे का
    गिरा के तोड़ो ना
    तन्हा छोड़ो ना ।।
    तुमको पाकर पा लिया
    मैंने अपना हमसफ़र ।
    कतरे कतरे को है पता
    बस तुझे ही ना खबर ।
    तू कह कर भी कहता नहीं ।
    और ना कहकर भी कहता है।
    यह जहां है खुदगर्जो का
    जिनके पीछे दौड़ो ना
    तन्हा छोड़ो ना।।

  • मनीभाई नवरत्न के दोहे

    मनीभाई नवरत्न के दोहे

    manibhai Navratna
    मनीभाई पटेल नवरत्न

    मनीभाई नवरत्न के दोहे

    1)
    मित सुख दे भ्राता- पिता , सपूत भी सुख दे मित।
    सुखी होती  वो नारी ,   जो सुख दे पति नित।।
    2)
    धन संचय कर ना साधु ,धन का नहि होती ठौर।
    आज इसके पास है ,कल हो जाए किसी और।।
    3)
    धन की महिमा है बड़ी, धन से ही विपदा टरे।
    धन नहीं आज तेरे संग ,कल को तू भूख मरे।।
    4)
    आगे बढ़ने की चाह में, टांग खींचे जो कोय।
    आगे बढ़ लें कोई औरन और वो पीछे होय।।
    5)
    जो दिखे सो बिके हैं ,अजब खेल रे माया का ।
    मन को देखे ना कोई, ध्यान रहे सबको काया का ।
    6)
    सब चाहै उड़ने आसमां में, चाहे ना कोई जमीं ।
    जिस दिन पर टूटेंगे , गिरेंगे इसी जमी।
    7)

    तन के सुखै सुख है मन के सुख है सुख।
    धन के सुखै  सुख नहि मिटे कभी ना भूख ।

    8)
    जस पावे तन खावै जस खावै तस गावै।
    कपटी मन गावै नहि, पर के ही नित खावें ।

    9)
    समय जो आया सो जाएगा, समय की ना यारी ।
    आज तेरे जो संग है , कल रहेगी उसकी बारी ।

    10) खुदा खुदा तो सब कहे, खुदा को जाने ना कोय।
    जब मन खुदा जान गया, दीन कभी ना रोय।