गीता एक जीवन धर्म

गीता एक जीवन धर्म

गीता महज ग्रंथ नहीं, है यह जीवन धर्म ।
अमल कर उपदेश को,जान ले ज्ञान मर्म।
गीता से मिलती , जीने का नजरिया।
सुखमय बनाती जो अपनी दिनचर्या।
ज्ञान झलके व्यवहार में।
सहारा बने मझधार में ।
कहती गीता, फल मिलेगी , कर लो निस्वार्थ कर्म।
गीता महज ग्रंथ नहीं…….

मनीभाई नवरत्न

मनीभाई नवरत्न

यह काव्य रचना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लाक क्षेत्र के मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित है। अभी आप कई ब्लॉग पर लेखन कर रहे हैं। आप कविता बहार के संस्थापक और संचालक भी है । अभी आप कविता बहार पब्लिकेशन में संपादन और पृष्ठीय साजसज्जा का दायित्व भी निभा रहे हैं । हाइकु मञ्जूषा, हाइकु की सुगंध ,छत्तीसगढ़ सम्पूर्ण दर्शन , चारू चिन्मय चोका आदि पुस्तकों में रचना प्रकाशित हो चुकी हैं।

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